रविवार, अक्टूबर 05, 2025
ज्योतिष कक्षा: पहला दिन - ज्योतिष और कर्म
ज्योतिष की जरूरत क्यों ?
(यह सवाल मैंने खुद ने खड़ा किया। ताकि विद्यार्थियों को स्पष्ट हो सके कि जिस विषय को पढ़ना है उसे क्यों पढ़ा जा रहा है।)
इसके लिए मैंने अपने ही एक पुराने विचार का सहारा लिया। जिस पर मैं इसी ब्लॉग पर एक लेख भी ठेल चुका हूं। स्वंतत्रता की संभावना शीर्षक से अपने निजी विचारों वाले ब्लॉग में इस पर चर्चा कर चुका हूं। ज्योतिषीय दृष्टिकोण से इस पर कभी लेख प्रस्तुत नहीं कर पाया। कक्षा में कही मेरी बात कुछ इस तरह थी...
“यह सृष्टि ईश्वर की बनाई है। चाहे कपिल मुनि के सांख्य दर्शन की बात करें या शंकराचार्य के अद्वैत वेदांत की। हमें ईश्वरवादी धर्म एक बात स्पष्ट कर देते हैं कि जो कुछ हो रहा है वह ईश्वर द्वारा तय है। सबकुछ पूर्व नियत है। कोई घटना या मनुष्य के दिमाग में उपजा विचार तक ईश्वर द्वारा पूर्व निर्धारित किया गया है। सृष्टि का एक भाग बनकर हम केवल उसे जी रहे हैं।
ऐसे में इच्छा स्वातंत्रय (freedom of will) की कितनी संभावना शेष रह जाती है, यह सोचने का विषय है। क्योंकि या तो सबकुछ पूर्व नियत हो सकता है या हमारे कर्म से बदलाव किया जा सकता है। अगर कर्म से पत्ता भी हिलाया जा सकता है, जो ईश्वर की इच्छा नहीं है तो सबकुछ परिवर्तित किया जा सकता है। यह कर्म आधारित सिद्धांत बन जाएगा। यानि जैसा कर्म करेंगे वैसा भोगेंगे।
तो कुछ भी पूर्व नियत नहीं रह जाता है। इस बात का यह अर्थ हुआ कि ज्योतिष भी समाप्त हो जाएगी। अब ग्रह नक्षत्रों के बजाय यह देखना होगा कि जातक ने अब तक क्या कर्म किए हैं। कुछ प्रश्न फिर अनुत्तरित रह जाते हैं कि जातक की पैदा होने की तिथि, परस्थिति, माता-पिता, परिजन आदि उसका खुद का चुनाव नहीं हैं, ना ही अन्य परिस्थितियों का चुनाव वह कर पाता है। इसका जवाब फिर से प्रारब्ध में आ जुड़ता है।
अगर सबकुछ पूर्व नियत है तो हमें कुछ भी करने की जरूरत ही नहीं है या जो कर रहे हैं उसका पुण्य और पाप भी हमारा नहीं बल्कि सृष्टिकर्ता का ही हुआ और अगर कुछ भी पूर्व नियत नहीं है तो बिना चुनाव के हमें मिले जीवन के खेल के पत्तों का सवाल अनुत्तरित रह जाता है।
अब तीसरी स्थिति सामने आती है कि ईश्वर ने कुछ पूर्व में ही नियत कर रखा है और कुछ इच्छा स्वातंत्रय की संभावना शेष रखी है। यहां यह स्पष्ट नहीं है कि हमें कितनी स्वतंत्रता मिली हुई है।”
बात दृढ़ और अदृढ़ कर्मों की
कक्षा में एक छात्र ने कहा कि हमें कर्मों का फल भी तो भुगतना है। इस पर मैंने ज्योतिष मार्तण्ड प्रोफेसर के.एस. कृष्णामूर्ति को ज्यों का त्यों कोट कर दिया। उन्होंने अपनी पुस्तक फण्डामेंटल प्रिंसीपल ऑफ एस्ट्रोलॉजी में स्पष्ट किया है कि कर्म तीन प्रकार के होते हैं। पहला प्रकार है दृढ़ कर्म। ये ऐसे कार्य है तो तीव्र मनोवेगों के साथ किए जाते हैं। चाहे चोरी हो या हत्या। पूर्व जन्म के इन कर्मों का फल भी तीव्रता से मिलता है। दूसरा है अदृढ़ कर्म। इस प्रकार के कर्मों के प्रति व्यक्ति सचेत नहीं होता है, लेकिन कर्म तो होता ही है। जैसे अनचाहे किसी का नुकसान कर देना अथवा दिल दुखा देना। ऐसे कर्मों का फल हल्का होता है। तीसरा प्रकार है दृढ- अदृढ़ कर्म। ये कार्य तीव्र अथवा हल्के मनोभावों से किए जा सकते हैं, लेकिन इनकी परिणीति से इतर भावों के स्तर पर कर्मों का फल मिलता है।
इन तीन अवस्थाओं के साथ चौथी स्थिति मैंने अपनी तरफ से जोड़ी निष्काम कर्म की। कर्मयोग में बताया गया है कि अगर हम किसी भी कार्य को बिना आसक्ति के भाव से करते हैं तो वे कर्म बंधन पैदा नहीं करते। कर्मयोग की ऊंची अवस्थाओं में ही व्यक्ति ऐसे कर्म कर पाता है। ऐसे जातक जन्म और मृत्यु के बंधन से मुक्त होकर कैवल्य या मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं।
कल बात करेंगे ज्योतिष की कक्षा के दूसरे दिन की... हालांकि कक्षा शुरू हुए तीन दिन हो चुके हैं लेकिन पोस्ट लिखने में कुछ अधिक समय लग रहा है। ऐसे में किन्हीं दो दिनों को मैं एक साथ पेश कर दूंगा, ताकि आगे नियमितता बनी रह सके।

ज्योतिष कक्षा: दूसरा दिन - ग्रह, तारा, नक्षत्र, राशि
ग्रह : सिद्धांत ज्योतिष अथवा एस्ट्रोनॉमी के अनुसार सूर्य (जो कि एक तारा है) के चारों ओर चक्कर लगाने वाले पिण्डों को ग्रह कहते हैं। इसी तरह पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगा रहे चंद्रमा को उपग्रह कहते हैं। पर, फलित ज्योतिष में सूर्य और चंद्रमा को भी ग्रह माना गया है। इस तरह सूर्य, बुध, शुक्र, मंगल, वृहस्पति और शनि के अलावा हमें चंद्रमा ग्रह के रूप में मिल जाते हैं। इसके अलावा सूर्य और चंद्रमा की अपने पथ पर गति के फलस्वरूप दो संपात बनते हैं। इनमें से एक को राहू और दूसरे को केतू माना गया है। इनकी वास्तविक उपस्थिति न होकर केवल गणना भर से हुई उत्पत्ति के कारण इन्हें आभासी या छाया ग्रह भी कहा जाता है।
तारा : अपने स्वयं के प्रकाश से प्रकाशित पिण्ड को तारा कहते हैं। जैसा कि एस्ट्रोनॉमी बताती है कि हमारा सौरमण्डल आकाशगंगा में स्थित है। यह 61.3 साल में भचक्र में एक डिग्री आगे निकल जाता है। चूंकि सभी ग्रह सौरमण्डल के इस मुखिया को चारों ओर चक्कर निकालते हैं। अत: पृथ्वी से देखने पर यह अपेक्षाकृत स्थिर नजर आता है।
नक्षत्र : तारों का एक समूह नक्षत्र कहलाता है। आकाश को 360 डिग्री में बांटा गया है। इन्हीं के बीच तारों के 27 समूहों को 27 नक्षत्रों का नाम दिया गया है। हर नक्षत्र का स्वामी तय कर दिया गया है। पहले से नौंवे नक्षत्र तक के स्वामी क्रमश: केतू, शुक्र, सूर्य, चंद्र, मंगल, राहू, गुरु, शनि और बुध होते हैं। इसी तरह यह क्रम 27वें नक्षत्र तक चलता है। हर नक्षत्र के चार चरण होते हैं।
राशि : आकाश का तीस डिग्री का भाग एक राशि का भाग होता है। राशियां कुल बारह हैं। ये क्रमश: मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन हैं। सवा दो नक्षत्र की एक राशि होती है। यानि एक राशि में नक्षत्रों के कुल नौ चरण होते हैं।
इसके अलावा कक्षा के बाकी समय में विद्यार्थियों ने अपनी कई जिज्ञासाओं पर बातचीत की। उन पर अलग पोस्ट बना सकते हैं। सबसे रोचक सवालों में बच्चे का जन्म कब माना जाए और कम से कम कितने समय में ज्योतिष सीखी जा सकती है। ये सवाल भले ही रोचक न लगें, लेकिन इनके जवाब खासे रोचक बन पड़े थे। तीसरी कक्षा में हम राशियों का परिचय प्राप्त करेंगे।

ज्योतिष कक्षा: 3सरा दिन - राशियां, भाव और भावेश
भचक्र के 360 अंशों को 12 भागों में बांटा गया है। इनमें से हर भाग 30 डिग्री का है। इस भाग को भाव कहते हैं। जब कोई कुण्डली हमारे सामने आती है तो उसमें बारह खाने बने हुए होते हैं। इनमें से सबसे ऊपर वाला पहला भाव होता है। कुण्डली के भावों को कुछ इस तरह से बताया जा सकता है। जिस भाव में जो संख्या लिखी है वह भाव की संख्या है। पहला भाव कुण्डली का सबसे महत्वपूर्ण भाव होता है। इसे लग्न कहते हैं। जातक के जन्म के समय यही भाव पूर्व दिशा में उदय हो रहा होता है। लग्न से जातक की आत्मा, मूल स्वभाव, उसका स्वास्थ्य देखा जाता है। अन्य विषयों के विश्लेषण के दौरान भी लग्न की स्थिति प्रमुखता से देखी जाती है। यदि लग्न मजबूत होता है तो कुण्डली अपने आप दुरुस्त हो जाती है। अगर किसी जातक की कुण्डली में लग्न खराब हो रहा हो तो पहले उसी का उपचार किया जाता है।

ज्योतिष कक्षा:4था दिन - राशियों का परिचय - मेष, वृष व मिथुन राशि
आकाश को बारह बराबर हिस्सों में बांटकर बारह राशियां बना दी गई हैं। पहली राशि मेष, दूसरी वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और बारहवीं मीन राशि है। हर राशि का अपना स्वभाव है। आज की कक्षा में हम केवल तीन राशियों का परिचय प्राप्त करेंगे।
अगली कक्षा में हम बात करेंगे कर्क, सिंह और कन्या राशि की...

ज्योतिष की कक्षा - पांचवां दिन
अब तक हमने पढ़ा है ज्योतिष की जरूरत क्यों है, ग्रह, नक्षत्र और राशियां क्या है और पिछली पोस्ट में हमने राशियों से परिचय प्राप्त करना शुरू किया था। मेष, वृष और मिथुन राशि के बाद आज हम पढ़ेंगे कर्क राशि के बारे में। हालांकि मैं इन राशियों के बारे में छोटी छोटी जानकारी ही दे रहा हूं, लेकिन ये वह जानकारी है जिसे पढ़ने के बाद आप जातक को देखकर अनुमान लगा सकते हैं कि यह किस राशि का जातक हो सकता है। या किस राशि का प्रभाव जातक पर अधिक है। इस बारे में विशद जानकारी के लिए आपको ज्योतिष रत्नाकर और फण्डामेंटल प्रिंसीपल ऑफ एस्ट्रोलॉजी पुस्तकें भी पढ़नी चाहिए। अगर आप पढ़ेंगे नहीं तो... अब क्या कहें।
सर्वाधिक राजयोग बनाने वाली कर्क राशि
दरअसल मुझे पहली बार इस राशि का परिचय ऐसे ही प्राप्त हुआ था। आप गौर कीजिए कि कर्क लग्न होने पर कुण्डली क्या बनेगी।
इस कुण्डली में चारों केन्द्र ऐसे हैं जिनमें ग्रह उच्च के होते हैं। लग्न में कर्क राशि में गुरु आएगा तो उच्च का होगा, चौथे भाव में शनि उच्च का होगा, सातवें भाव में मंगल और दसवें भाव में सूर्य उच्च का होगा। इसके अलावा लग्न से ग्यारहवां भाव आय का है। चंद्रमा अगर उच्च का हुआ तो इस भाव में होगा। सूर्य, बुध और शुक्र के सर्वाधिक संबंध बनते हैं। ऐसे में कर्क लग्न वालों के धन और आय के संबंध के योग भी कमोबेश अधिक बनते हैं। शुक्र बेहतर होने पर पैसा और प्रसिद्धि साथ साथ मिलते हैं। किसी भी लग्न में पाया जाने वाला यह दुर्लभ योग है जो कर्क में सहजता से उपलब्ध होता है। इन सभी बिंदुओं के चलते कर्क लग्न को राजयोग का लग्न कहा गया है।
कर्क राशि की विशेषताएं
यह पृष्ठ से उदय होने वाली राशि है। इनका बेढंगा शरीर, दुर्बल अवयव और शक्तिशाली पंजा होता है। इनके शरीर का ऊपर हिस्सा बड़ा होता है। उम्र बढ़ने के साथ इनकी तोंद भी बढ़ती जाती है। केश कत्थई और भूरापन लिए होते हैं। अस्थिर चेतना वाले इन जातकों की जिंदगी में कई उतार चढ़ाव आते हैं। चंद्र का आधिपत्य इन्हें उर्वर कल्पनाशीलता होती है। धन संपन्नता या सम्मान की स्थिति पाने के लिए ये लोग दक्षता से जन समूह को प्रेरित कर देते हैं। ये लोग घर परिवार औ सुख की कामना करते हैं। उपहास और समालोचना का भय इन्हें विचारशील, कूटनीतिज्ञ और लौकिक बना देता है। जातक का स्वास्थ्य जवानी में खराब रहता है लेकिन उम्र बढ़ने के साथ स्वास्थ्य सुधरता जाता है। इस राशि वाले जातकों के लिए मंगलवार का दिन शुभ होता है। हस्तलेखन अस्थिर होता है, शुभ रंग श्वेत, क्रीम और लाल है। शुक्रवार को ये लोग आनन्द और लाभ अर्जित कर सकते हैं।
कर्क राशि से प्रभावितों के उदाहरण
भारतीय राज व्यवस्था में कर्क राशि का बड़ा महत्व रहा है। आजानुभुज राम कर्क लग्न के थे। उनकी कुण्डली में सूर्य, मंगल, गुरु, शनि, शुक्र और चंद्रमा उच्च के थे। वर्तमान दौर में इंदिरा गांधी, अटलबिहारी वाजपेयी और अब सोनिया गांधी की कुण्डली कर्क लग्न की बताई जाती है। मैंने खुद ने अब तक ये कुण्डलियां देखी नहीं है इसलिए मैंने लिखा बताई जाती हैं, अटल बिहारी वाजपेयी की कुण्डली तो जिस ज्योतिषी ने देखी उन्होंने ही मुझे बताया कि उनके कर्क लग्न और लग्न में शनि है।
लेख बड़ा हो गया इसलिए इस बार केवल कर्क राशि का ही विश्लेषण करेंगे। अगली कक्षा में हम बात करेंगे सिंह और कन्या राशि की...
