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रविवार, अक्टूबर 05, 2025

ज्‍योतिष कक्षा: पहला दिन - ज्‍योतिष और कर्म

इस साल वास्‍तु के साथ ज्‍योतिष की कक्षा लेने का मौका मिला है। आज कक्षा का पहला दिन था। कक्षा की शुरूआत में वास्‍तु की कक्षा की ही तरह मैंने विद्यार्थियों से पूछा कि उन्‍होंने अब तक अपने विषय में क्‍या ज्ञान हासिल किया है। ताकि एक स्‍तर तक का ज्ञान होने पर उससे आगे की बात की जा सके। आश्‍चर्य की बात यह है कि करीब डेढ़ दर्जन विद्यार्थियों ने एक स्‍वर में कहा कि इस विषय में अपनी राशि पढ़ने से अधिक कोई ज्ञान नहीं है। सो कक्षा का स्‍तर शुरू हुआ शून्‍य से। चूंकि लाइव पढ़ाना एक अलग अनुभव है और ब्‍लॉग पर ज्‍योतिष लेख लिखना जुदा बात। सो मैंने निर्णय किया कि अठारह दिन तक चलने वाली कक्षाओं में विद्यार्थियों से रूबरू होने के साथ इस ब्‍लॉग पर भी रोजाना एक पोस्‍ट ठेलने का प्रयास करूंगा। ताकि लाइव अनुभव के साथ ऑनलाइन सीखने वालों को भी अच्‍छा कंटेंट मिल जाए। तो आज से शुरू करते हैं ज्‍योतिष की कक्षा का पहला दिन---

ज्‍योतिष की जरूरत क्‍यों ?
(यह सवाल मैंने खुद ने खड़ा किया। ताकि विद्यार्थियों को स्‍पष्‍ट हो सके कि जिस विषय को पढ़ना है उसे क्‍यों पढ़ा जा रहा है।)
इसके लिए मैंने अपने ही एक पुराने विचार का सहारा लिया। जिस पर मैं इसी ब्‍लॉग पर एक लेख भी ठेल चुका हूं। स्‍वंतत्रता की संभावना शीर्षक से अपने निजी विचारों वाले ब्‍लॉग में इस पर चर्चा कर चुका हूं। ज्‍योतिषीय दृष्टिकोण से इस पर कभी लेख प्रस्‍तुत नहीं कर पाया। कक्षा में कही मेरी बात कुछ इस तरह थी... 
यह सृष्टि ईश्‍वर की बनाई है। चाहे कपिल मुनि के सांख्‍य दर्शन की बात करें या शंकराचार्य के अद्वैत वेदांत की। हमें ईश्‍वरवादी धर्म एक बात स्‍पष्‍ट कर देते हैं कि जो कुछ हो रहा है वह ईश्‍वर द्वारा तय है। सबकुछ पूर्व नियत है। कोई घटना या मनुष्‍य के दिमाग में उपजा विचार तक ईश्‍वर द्वारा पूर्व निर्धारित किया गया है। सृष्टि का एक भाग बनकर हम केवल उसे जी रहे हैं।
ऐसे में इच्‍छा स्‍वातंत्रय (freedom of will) की कितनी संभावना शेष रह जाती है, यह सोचने का विषय है। क्‍योंकि या तो सबकुछ पूर्व नियत हो सकता है या हमारे कर्म से बदलाव किया जा सकता है। अगर कर्म से पत्‍ता भी हिलाया जा सकता है, जो ईश्‍वर की इच्‍छा नहीं है तो सबकुछ परिवर्तित किया जा सकता है। यह कर्म आधारित सिद्धांत बन जाएगा। यानि जैसा कर्म करेंगे वैसा भोगेंगे।
तो कुछ भी पूर्व नियत नहीं रह जाता है। इस बात का यह अर्थ हुआ कि ज्‍योतिष भी समाप्‍त हो जाएगी। अब ग्रह नक्षत्रों के बजाय यह देखना होगा कि जातक ने अब तक क्‍या कर्म किए हैं। कुछ प्रश्‍न फिर अनुत्‍तरित रह जाते हैं कि जातक की पैदा होने की तिथि, परस्थिति, माता-पिता, परिजन आदि उसका खुद का चुनाव नहीं हैं, ना ही अन्‍य परिस्थितियों का चुनाव वह कर पाता है। इसका जवाब फिर से प्रारब्‍ध में आ जुड़ता है।
अगर सबकुछ पूर्व नियत है तो हमें कुछ भी करने की जरूरत ही नहीं है या जो कर रहे हैं उसका पुण्‍य और पाप भी हमारा नहीं बल्कि सृष्टिकर्ता का ही हुआ और अगर कुछ भी पूर्व नियत नहीं है तो बिना चुनाव के हमें मिले जीवन के खेल के पत्‍तों का सवाल अनुत्‍तरित रह जाता है।
अब तीसरी स्थिति सामने आती है कि ईश्‍वर ने कुछ पूर्व में ही नियत कर रखा है और कुछ इच्‍छा स्‍वातंत्रय की संभावना शेष रखी है। यहां यह स्‍पष्‍ट नहीं है कि हमें कितनी स्‍वतंत्रता मिली हुई है।”

बात दृढ़ और अदृढ़ कर्मों की
कक्षा में एक छात्र ने कहा कि हमें कर्मों का फल भी तो भुगतना है। इस पर मैंने ज्‍योतिष मार्तण्‍ड प्रोफेसर के.एस. कृष्‍णामूर्ति को ज्‍यों का त्‍यों कोट कर दिया। उन्‍होंने अपनी पुस्‍तक फण्‍डामेंटल प्रिंसीपल ऑफ एस्‍ट्रोलॉजी में स्‍पष्‍ट किया है कि कर्म तीन प्रकार के होते हैं। पहला प्रकार है दृढ़ कर्म। ये ऐसे कार्य है तो तीव्र मनोवेगों के साथ किए जाते हैं। चाहे चोरी हो या हत्‍या। पूर्व जन्‍म के इन कर्मों का फल भी तीव्रता से मिलता है। दूसरा है अदृढ़ कर्म। इस प्रकार के कर्मों के प्रति व्‍यक्ति सचेत नहीं होता है, लेकिन कर्म तो होता ही है। जैसे अनचाहे किसी का नुकसान कर देना अथवा दिल दुखा देना। ऐसे कर्मों का फल हल्‍का होता है। तीसरा प्रकार है दृढ- अदृढ़ कर्म। ये कार्य तीव्र अथवा हल्‍के मनोभावों से किए जा सकते हैं, लेकिन इनकी परिणीति से इतर भावों के स्‍तर पर कर्मों का फल मिलता है।
इन तीन अवस्‍थाओं के साथ चौथी स्थिति मैंने अपनी तरफ से जोड़ी निष्‍काम कर्म की। कर्मयोग में बताया गया है कि अगर हम किसी भी कार्य को बिना आसक्ति के भाव से करते हैं तो वे कर्म बंधन पैदा नहीं करते। कर्मयोग की ऊंची अवस्‍थाओं में ही व्‍यक्ति ऐसे कर्म कर पाता है। ऐसे जातक जन्‍म और मृत्‍यु के बंधन से मुक्‍त होकर कैवल्‍य या मोक्ष प्राप्‍त कर लेते हैं।

कल बात करेंगे ज्‍योतिष की कक्षा के दूसरे दिन की... हालांकि कक्षा शुरू हुए तीन दिन हो चुके हैं लेकिन पोस्‍ट लिखने में कुछ अधिक समय लग रहा है। ऐसे में किन्‍हीं दो दिनों को मैं एक साथ पेश कर दूंगा, ताकि आगे नियमितता बनी रह सके।

ज्‍योतिष कक्षा: दूसरा दिन - ग्रह, तारा, नक्षत्र, राशि

ज्‍योतिष की कक्षा के दूसरे दिन कुछ महत्‍वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा हुई। ज्‍योतिष का अध्‍ययन शुरू करने से पहले मैंने नए विद्यार्थियों को विद्या का परिचय कराना जरूरी समझा। इस क्रम में पहले मैंने यह स्‍पष्‍ट किया कि पूर्व नियतता कहां है और ज्‍योतिष कैसे पूर्व नियति को समझकर फलादेश करने का प्रयास करती है। दूसरे दिन बातचीत का मुख्‍य बिंदु रहा ज्‍योतिष की पुस्‍तकें। हालांकि मैंने अपने ब्‍लॉग के ही एक पेज पर इस पर विस्‍तार से लिखने का प्रयास कर रहा हूं। इसी क्रम में केवल इतना बता देता हूं कि मैंने प्रोफेसर कृष्‍णामूर्ति की एक से छह रीडर, हेमवंता नेमासा काटवे की ज्‍योतिष विचार माला और देवकी नन्‍दन सिंह की ज्‍योतिष रत्‍नाकर पुस्‍तकें लाने के लिए कहा है। इसके अलावा दूसरे दिन बातचीत हुई लग्‍न, ग्रह, नक्षत्र और राशि की टर्मिनोलॉजी की। इसी बहाने इस पोस्‍ट में मैं इन चारों के बारे में विस्‍तार से बताने का प्रयास करता हूं।

ग्रह : सिद्धांत ज्‍योतिष अथवा एस्‍ट्रोनॉमी के अनुसार सूर्य (जो कि एक तारा है) के चारों ओर चक्‍कर लगाने वाले पिण्‍डों को ग्रह कहते हैं। इसी तरह पृथ्‍वी के चारों ओर चक्‍कर लगा रहे चंद्रमा को उपग्रह कहते हैं। पर, फलित ज्‍योतिष में सूर्य और चंद्रमा को भी ग्रह माना गया है। इस तरह सूर्य, बुध, शुक्र, मंगल, वृहस्‍पति और शनि के अलावा हमें चंद्रमा ग्रह के रूप में मिल जाते हैं। इसके अलावा सूर्य और चंद्रमा की अपने पथ पर गति के फलस्‍वरूप दो संपात बनते हैं। इनमें से एक को राहू और दूसरे को केतू माना गया है। इनकी वास्‍तविक उपस्थिति न होकर केवल गणना भर से हुई उत्‍पत्ति के कारण इन्‍हें आभासी या छाया ग्रह भी कहा जाता है।
तारा : अपने स्‍वयं के प्रकाश से प्रकाशित पिण्‍ड को तारा कहते हैं। जैसा कि एस्‍ट्रोनॉमी बताती है कि हमारा सौरमण्‍डल आकाशगंगा में स्थित है। यह 61.3 साल में भचक्र में एक डिग्री आगे निकल जाता है। चूंकि सभी ग्रह सौरमण्‍डल के इस मुखिया को चारों ओर चक्‍कर निकालते हैं। अत: पृथ्‍वी से देखने पर यह अपेक्षाकृत स्थिर नजर आता है।
नक्षत्र : तारों का एक समूह नक्षत्र कहलाता है। आकाश को 360 डिग्री में बांटा गया है। इन्‍हीं के बीच तारों के 27 समूहों को 27 नक्षत्रों का नाम दिया गया है। हर नक्षत्र का स्‍वामी तय कर दिया गया है। पहले से नौंवे नक्षत्र तक के स्‍वामी क्रमश: केतू, शुक्र, सूर्य, चंद्र, मंगल, राहू, गुरु, शनि और बुध होते हैं। इसी तरह यह क्रम 27वें नक्षत्र तक चलता है। हर नक्षत्र के चार चरण होते हैं।
राशि : आकाश का तीस डिग्री का भाग एक राशि का भाग होता है। राशियां कुल बारह हैं। ये क्रमश: मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्‍या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन हैं। सवा दो नक्षत्र की एक राशि होती है। यानि एक राशि में नक्षत्रों के कुल नौ चरण होते हैं।

इसके अलावा कक्षा के बाकी समय में विद्यार्थियों ने अपनी कई जिज्ञासाओं पर बातचीत की। उन पर अलग पोस्‍ट बना सकते हैं। सबसे रोचक सवालों में बच्‍चे का जन्‍म कब माना जाए और कम से कम कितने समय में ज्‍योतिष सीखी जा सकती है। ये सवाल भले ही रोचक न लगें, लेकिन इनके जवाब खासे रोचक बन पड़े थे। तीसरी कक्षा में हम राशियों का परिचय प्राप्‍त करेंगे।

ज्‍योतिष कक्षा: 3सरा दिन - राशियां, भाव और भावेश

तीसरे दिन की कक्षा तक दो या तीन छात्र ही किताबें लेकर आए। शेष ने बारह दिन की कक्षा के दौरान ही सारी ज्‍योतिषी बोर्ड पर ही समझने की ठान ली थी। इसके चलते उन्‍होंने किताबें खरीदने के बजाय केवल मुझसे सुनकर जितना हासिल हो सके उतना ही हासिल करने का मानस बनाया है। तीसरे दिन कक्षा के बाद मैं पोस्‍ट नहीं लिख पाया। अब कई दिन बाद पोस्‍ट लिख रहा हूं। सो इस बीच छात्रों को किताबें खरीदने के लिए तैयार करने की कोशिश करता रहा। इसका सुखद परिणाम यह हुआ कि कक्षा के बारह छात्रों में से आठ ने किताबें खरीद ली हैं। इनमें से दो ने देवकीनन्‍दन सिंह की ज्‍योतिष रत्‍नाकर खरीदी तो शेष छह पुस्‍तक महल की फलित ज्‍योतिष रेडीरेकनर खरीद लाए हैं। ठीक है एलीमेंट्री ज्‍योतिष के लिए यह किताब भी बुरी नहीं है। कक्षा में पढ़ाए विषय की बात से पहले स्‍पष्‍ट करना चाहूंगा कि ज्‍योतिष अध्‍ययन बहुत शादी अंदाज है। इसे तब तक पढ़ा नहीं जा सकता जब तक आप समय और धन खर्च करने के लिए मानसिक रूप से पर्याप्‍त तैयार नहीं हो जाते। वरना गद्दी तपने वाले ज्‍योतिषी से अधिक नहीं बन पाएंगे। गद्दी तपने के अंदाज पर एक जुदा पोस्‍ट फिर कभी....
फिलहाल तो ज्‍योतिष की कक्षा का एक फोटो... अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर के फोटोग्राफर अजीज भुट्टा ने अपने कैमरे की नजरे इनायत की और हमारा एक फोटो खींचकर हमें मेल कर दिया। हालांकि एक फोटो अखबार में भी छपा था, लेकिन समाचार पत्र की पॉलिसी की वजह से उसमें फैकल्‍टी का फोटो नहीं दिया गया था।

भचक्र की बारह राशियां
तारों और उससे बने नक्षत्रों के बारे में हम पहले पढ़ चुके हैं। हर नक्षत्र के चार चरण होते हैं। नक्षत्रों के नौ चरणों से एक राशि बनती है। यानि सवा दो नक्षत्रों की एक राशि होती है। राशियां कुल बारह हैं। पहली राशि मेष, द्वितीय वृष, तृतीय मिथुन, चतुर्थ कर्क, पंचम सिंह, छठी कन्‍या, सातवीं तुला, आठवीं वृश्चिक, नौंवी धनु, दसवीं मकर, ग्‍यारहवीं कुंभ और बारहवीं राशि मीन है। हर राशि का अधिपति होता है। सूर्य और चंद्रमा के आधिपत्‍य में एक-एक राशि है और शेष अन्‍य ग्रहों के अधिकार में दो-दो राशियां हैं। मेष और वृश्चिक राशि का अधिपति मंगल है। वृष और तुला का शुक्र, मिथुन और कन्‍या का बुध अधिपति है। चंद्रमा का कर्क राशि पर अधिकार है और सूर्य का सिंह राशि पर। धनु और मीन राशि का अधिपति गुरु है और मकर व कुंभ राशि का शनि अधिपति है।
भाव और भावेश क्‍या है?

भचक्र के 360 अंशों को 12 भागों में बांटा गया है। इनमें से हर भाग 30 डिग्री का है। इस भाग को भाव कहते हैं। जब कोई कुण्‍डली हमारे सामने आती है तो उसमें बारह खाने बने हुए होते हैं। इनमें से सबसे ऊपर वाला पहला भाव होता है। कुण्‍डली के भावों को कुछ इस तरह से बताया जा सकता है। जिस भाव में जो संख्‍या लिखी है वह भाव की संख्‍या है। पहला भाव कुण्‍डली का सबसे महत्‍वपूर्ण भाव होता है। इसे लग्‍न कहते हैं। जातक के जन्‍म के समय यही भाव पूर्व दिशा में उदय हो रहा होता है। लग्‍न से जातक की आत्‍मा, मूल स्‍वभाव, उसका स्‍वास्‍थ्‍य देखा जाता है। अन्‍य विषयों के विश्‍लेषण के दौरान भी लग्‍न की स्थिति प्रमुखता से देखी जाती है। यदि लग्‍न मजबूत होता है तो कुण्‍डली अपने आप दुरुस्‍त हो जाती है। अगर किसी जातक की कुण्‍डली में लग्‍न खराब हो रहा हो तो पहले उसी का उपचार किया जाता है।
जहां दो लिखा है वह द्वितीय भाव है। यहां से जातक का परिवार और धन देखा जाता है। तीसरा भाव भाई बंधु और छोटी यात्राएं देखने के लिए है। चौथा भाव माता और घर की शांति बताता है, पांचवा भाव जातक की उत्‍पादकता और संतान के बारे में बताता है। छठा भाव ऋण, रोग और शत्रुओं की जानकारी देता है। सातवां भाव पत्‍नी और व्‍यापार में साझेदार के बारे में बताता है। आठवां भाव आयु और गुप्‍त कार्यों, नौंवा भाव भाग्‍य, दसवां कर्म, ग्‍यारहवां आय और बारहवां भाव व्‍यय की जानकारी देता है। आय, व्‍यय और कर्म किसी भी प्रकार के हो सकते हैं।

लग्‍न में कोई भी राशि हो सकती है। बारह राशियों में से जो राशि लग्‍न में होगी जातक का लग्‍न उसी राशि के अनुरुप कहा जाएगा। यदि जातक के जन्‍म के समय मिथुन या तुला राशि का उदय हो रहा है तो कहेंगे कि जातक का लग्‍न मिथुन या तुला का है। फर्ज कीजिए कि एक जातक 7 जून 2011 को रात 8 बजकर 19 मिनट पर बीकानेर में पैदा होता है तो उसकी कुण्‍डली कुछ इस तरह होगी। (दाएं ओर के चित्र में दर्शाए अनुसार)
इसमें कुण्‍डली के लग्‍न में धनु राशि है। ऐसे में कहेंगे कि धनु लग्‍न की कुण्‍डली है। धनु राशि का स्‍वामी गुरु है। ऐसे में कहेंगे कि लग्‍न का अधिपति गुरु है। दूसरे व तीसरे भाव का अधिपति शनि। चौथे का फिर से गुरु, पांचवें व बारहवें का मंगल, छठे व ग्‍यारहवें का शुक्र, सातवें और दसवें का बुध, आठवें का चंद्र, नौंवे का सूर्य अधिपति होगा। ज्‍योतिषीय शब्‍दावली में इसे कहेंगे कि लग्‍नेश गुरु, द्वितीयेश व तृतीयेश शनि, चतुर्थेश गुरु, पंचमेश मंगल, षष्‍ठेश शुक्र, सप्‍तमेश बुध, अष्‍टमेश चंद्र, नवमेश सूर्य, दशमेश बुध, एकादशेश शुक्र, द्वादशेश मंगल है।
ज्‍योतिष की कक्षा में तीसरे दिन हम करेंगे राशियों से परिचय। इसमें हम मेष से मीन तक की बारह राशियों की विशेषताओं पर चर्चा करेंगे।

ज्‍योतिष कक्षा:4था दिन - राशियों का परिचय - मेष, वृष व मिथुन राशि

राशियों से परिचय
जब हम किसी कुण्‍डली या टेवे में लग्‍न कुण्‍डली देखते हैं तो हमें तीन चीजें प्राथमिक तौर पर दिखाई देती हैं। कुण्‍डली के बारह भाव, बारह राशियां और नौ ग्रह। पिछले कुछ सालों में यूरेनस, नेप्‍च्‍यून और प्‍लेटो को भी शामिल किया जाता रहा है, लेकिन प्राचीन भारतीय ज्‍योतिष में इनका उल्‍लेख नहीं मिला है। आगामी कक्षाओं में हम पहले राशियों, फिर ग्रहों और अंत में भावों से परिचय प्राप्‍त करेंगे। जब हम किसी कुण्‍डली का विश्‍लेषण करते हैं तो हम भाव से देखेंगे कि पूछे गए प्रश्‍न का आधार क्‍या है, राशि से देखेंगे कि प्रश्‍न का स्‍वभाव क्‍या है और ग्रहों से देखेंगे कि प्रश्‍न पर किन ग्रहों का अधिकार या प्रभाव है।
आकाश को बारह बराबर हिस्‍सों में बांटकर बारह राशियां बना दी गई हैं। पहली राशि मेष, दूसरी वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्‍या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और बारहवीं मीन राशि है। हर राशि का अपना स्‍वभाव है। आज की कक्षा में हम केवल तीन राशियों का परिचय प्राप्‍त करेंगे।


भचक्र की पहली राशि “मेष”

इस राशि पर मंगल का आधिपत्‍य है। प्रकृति से यह राशि उष्‍ण और अग्नितत्‍वीय है। यह चर और धनात्‍मक राशि है। मानव शरीर पर इसका सिर और चेहरे पर आधिपत्‍य होता है। जब मैं मेष लग्‍न या मेष राशि से प्रभावित जातक को देखता हूं तो वह मुझे मझले कद का गठे हुए शरीर का दिखाई देता है। लड़ाकू लोगों की तरह मेष राशि के लोगों का जबड़ा कुछ चौड़ा होता है। ये लोग एक जगह टिककर नहीं बैठते। मेष राशि का एक बालक अगर आपके घर में आता है तो वह पहले कमरे में घूमकर देखेगा। इधर-उधर सामान छेड़ेगा। तब तक उसके अभिभावक उसे रोकने का निष्‍फल प्रयत्‍न करते रहेंगे। आप भी परेशान रहेंगे। आखिर निरीक्षण पूरा होने के बाद वह अपनी सीट पर आकर बैठेगा। तब भी उसकी टांगे हिलती रहेंगी। मेष राशि से प्रभावित जातकों की रोग प्रतिरोधक क्षमता अपेक्षाकृत अधिक होती है। मेष राशि की दिशा पूर्व है, उत्‍पाद बम, आतिशबाजी का सामान, तीखे और नुकीले साधन हैं, जब लिखते हैं तो तीखी लिखावट होती है।


प्रेरणादायी वृष राशि

भचक्र की दूसरी राशि है वृष। आकाश के 31वें से 60वीं डिग्री तक इस राशि का विस्‍तार होता है। पृथ्‍वी तत्‍व, स्थिर, स्‍त्रैण, नम राशि के लोग दूसरों के लिए प्रेरणादायी सिद्ध होते हैं। ये सहनशील, दृढ़, मंद, परिश्रमी, रक्षक और परिवर्तन का विरोध करने वाले होते हैं। ये लोग एक ही काम में जुटे रहते हैं और परिणाम आने की प्रतीक्षा करते हैं। दीर्धकालीन निवेशक इस राशि से प्रभावित माने जा सकते हैं। इन जातकों की इच्‍छाशक्ति प्रबल होती है और विचारों में दृढ़ता और कट्टरता होती है। शुक्र के आधिपत्‍य वाली वृष राशि से प्रभावित जातक महत्‍वाकांक्षी होते हैं और साधनों का संचय कर उनका उपभोग भी करते हैं। कला, संगीत, प्रतिमा निर्माण, सिनेमा, नाटक जैसे आमोद प्रमोद और विलासी कार्यों में शुक्र का प्रभाव देखा जा सकता है। इनकी सदैव सुखी जीवन जीने की कामना होती है। ये लोग तभी तक काम में जुटते हैं जब तक कि इन्‍हें इच्छित की प्राप्ति नहीं हो जाती। अपने साधनों को जुटा लेने के बाद ये लोग उसका उपभोग करने के लिए अवकाश ले लेते हैं। सुंदर लिखावट, प्रवाह के साथ लेखन और स्त्रियों के प्रति सम्‍मान इन लोगों में विशेष रूप से देखने को मिलता है। शुभ रंग गुलाबी, हरा और सफेद और शुभ रत्‍न नीलम, हीरा और पन्‍ना होता है।


यादों में खोए मिथुन राशि के जातक

आकाश के टुकड़ों का तीसरा 30 डिग्री का टुकड़ा मिथुन राशि है। इस पर बुध का आधिपत्‍य है। वायव्‍यीय राशि के जातक यादों के साथ अपनी जिंदगी बिताते हैं। इन्‍हें आप बचपन की कोई बात पूछ लीजिए, चालीस साल की उम्र में भी तीन साल की उम्र की यादें ऐसे ताजा होंगी जैसे कल ही की बात हो। हाथ पैर लम्‍बे, शिराएं दिखती हुई, लम्‍बा और सीधा शरीर, रंग गेहुंआ, दृष्टि तीव्र और क्रियाशील तथा लम्‍बी नासिका वाले ये जातक अलग से ही पहचान में आ जाते हैं। ये लोग चपल, अध्‍ययनशील, व्‍यग्र और परिवर्तन के लिए तैयार रहने वाले लोग होते हैं। द्विस्‍वभाव राशि के ये जातक नौकरी के साथ व्‍यवसाय करते देखे जा सकते हैं। कई बार केवल व्‍यवसाय करते हैं तो दो तरह के व्‍यवसाय में लगे दिखाई देते हैं। दूसरों की सहायता करते वक्‍त इनका कौशल देखते ही बनता है। परिवर्तनशीलता एक ओर जहां इनका सद्गुण है वहीं दूसरी और दुर्गुण भी। ये काम को छोड़कर दूसरा हाथ में ले लेते हैं। स्‍वास्‍थ्‍य के प्रति जागरुकता के चलते ये लोग बीमार कम पड़ते हैं। अगर रोग होते भी हैं तो अधिकांशत: फेफड़ों से संबंधित। बुध के संबंधित व्‍यवसाय ये आसानी से कर लेते हैं। दलाली इनका खास गुण होता है। शीघ्रता से मित्रता करते हैं और उतनी ही शीघ्रता से अपने साथी की कमियां भी निकाल लेते हैं। इसलिए इन्‍हें परफेक्‍ट मैच कम ही मिल पाता है। ये लोग जब लिखते हैं तो इनका वायव्‍यीय गुण उभर आता है। लिखते समय पंक्तियों के ऊपर निकल जाते हैं। हरा और पीला रंग इनके लिए शुभ है, नीले और लाल रंगों से बचना चाहिए। पन्‍ना और पुखराज भाग्‍य को उत्‍तम बनाएंगे। अगर सफल होना है तो मिथुन राशि वालों एकाग्र होना सीख लो।



अगली कक्षा में हम बात करेंगे कर्क, सिंह और कन्‍या राशि की...

ज्‍योतिष की कक्षा - पांचवां दिन

अब तक हमने पढ़ा है ज्‍योतिष की जरूरत क्‍यों है, ग्रह, नक्षत्र और राशियां क्‍या है और पिछली पोस्‍ट में हमने राशियों से परिचय प्राप्‍त करना शुरू किया था। मेष, वृष और मिथुन राशि के बाद आज हम पढ़ेंगे कर्क राशि के बारे में। हालांकि मैं इन राशियों के बारे में छोटी छोटी जानकारी ही दे रहा हूं, लेकिन ये वह जानकारी है जिसे पढ़ने के बाद आप जातक को देखकर अनुमान लगा सकते हैं कि यह किस राशि का जातक हो सकता है। या किस राशि का प्रभाव जातक पर अधिक है। इस बारे में विशद जानकारी के लिए आपको ज्‍योतिष रत्‍नाकर और फण्‍डामेंटल प्रिंसीपल ऑफ एस्‍ट्रोलॉजी पुस्‍तकें भी पढ़नी चाहिए। अगर आप पढ़ेंगे नहीं तो... अब क्‍या कहें।

सर्वाधिक राजयोग बनाने वाली कर्क राशि

दरअसल मुझे पहली बार इस राशि का परिचय ऐसे ही प्राप्‍त हुआ था। आप गौर कीजिए कि कर्क लग्‍न होने पर कुण्‍डली क्‍या बनेगी।

इस कुण्‍डली में चारों केन्‍द्र ऐसे हैं जिनमें ग्रह उच्‍च के होते हैं। लग्‍न में कर्क राशि में गुरु आएगा तो उच्‍च का होगा, चौथे भाव में शनि उच्‍च का होगा, सातवें भाव में मंगल और दसवें भाव में सूर्य उच्‍च का होगा। इसके अलावा लग्‍न से ग्‍यारहवां भाव आय का है। चंद्रमा अगर उच्‍च का हुआ तो इस भाव में होगा। सूर्य, बुध और शुक्र के सर्वाधिक संबंध बनते हैं। ऐसे में कर्क लग्‍न वालों के धन और आय के संबंध के योग भी कमोबेश अधिक बनते हैं। शुक्र बेहतर होने पर पैसा और प्रसिद्धि साथ साथ मिलते हैं। किसी भी लग्‍न में पाया जाने वाला यह दुर्लभ योग है जो कर्क में सहजता से उपलब्‍ध होता है। इन सभी बिंदुओं के चलते कर्क लग्‍न को राजयोग का लग्‍न कहा गया है।

कर्क राशि की विशेषताएं

यह पृष्‍ठ से उदय होने वाली राशि है। इनका बेढंगा शरीर, दुर्बल अवयव और शक्तिशाली पंजा होता है। इनके शरीर का ऊपर हिस्‍सा बड़ा होता है। उम्र बढ़ने के साथ इनकी तोंद भी बढ़ती जाती है। केश कत्‍थई और भूरापन लिए होते हैं। अस्थिर चेतना वाले इन जातकों की जिंदगी में कई उतार चढ़ाव आते हैं। चंद्र का आधिपत्‍य इन्‍हें उर्वर कल्‍पनाशीलता होती है। धन संपन्‍नता या सम्‍मान की स्थिति पाने के लिए ये लोग दक्षता से जन समूह को प्रेरित कर देते हैं। ये लोग घर परिवार औ सुख की कामना करते हैं। उपहास और समालोचना का भय इन्‍हें विचारशील, कूटनीतिज्ञ और लौकिक बना देता है। जातक का स्‍वास्‍थ्‍य जवानी में खराब रहता है लेकिन उम्र बढ़ने के साथ स्‍वास्‍थ्‍य सुधरता जाता है। इस राशि वाले जातकों के लिए मंगलवार का दिन शुभ होता है। हस्‍तलेखन अस्थिर होता है, शुभ रंग श्‍वेत, क्रीम और लाल है। शुक्रवार को ये लोग आनन्‍द और लाभ अर्जित कर सकते हैं।

कर्क राशि से प्रभावितों के उदाहरण

भारतीय राज व्‍यवस्‍था में कर्क राशि का बड़ा महत्‍व रहा है। आजानुभुज राम कर्क लग्‍न के थे। उनकी कुण्‍डली में सूर्य, मंगल, गुरु, शनि, शुक्र और चंद्रमा उच्‍च के थे। वर्तमान दौर में इंदिरा गांधी, अटलबिहारी वाजपेयी और अब सोनिया गांधी की कुण्‍डली कर्क लग्‍न की बताई जाती है। मैंने खुद ने अब तक ये कुण्‍डलियां देखी नहीं है इसलिए मैंने लिखा बताई जाती हैं, अटल बिहारी वाजपेयी की कुण्‍डली तो जिस ज्‍योतिषी ने देखी उन्‍होंने ही मुझे बताया कि उनके कर्क लग्‍न और लग्‍न में शनि है।

लेख बड़ा हो गया इसलिए इस बार केवल कर्क राशि का ही विश्‍लेषण करेंगे। अगली कक्षा में हम बात करेंगे सिंह और कन्‍या राशि की...