तीसरे दिन की कक्षा तक दो या तीन छात्र ही किताबें लेकर आए। शेष ने बारह दिन की कक्षा के दौरान ही सारी ज्योतिषी बोर्ड पर ही समझने की ठान ली थी। इसके चलते उन्होंने किताबें खरीदने के बजाय केवल मुझसे सुनकर जितना हासिल हो सके उतना ही हासिल करने का मानस बनाया है। तीसरे दिन कक्षा के बाद मैं पोस्ट नहीं लिख पाया। अब कई दिन बाद पोस्ट लिख रहा हूं। सो इस बीच छात्रों को किताबें खरीदने के लिए तैयार करने की कोशिश करता रहा। इसका सुखद परिणाम यह हुआ कि कक्षा के बारह छात्रों में से आठ ने किताबें खरीद ली हैं। इनमें से दो ने देवकीनन्दन सिंह की ज्योतिष रत्नाकर खरीदी तो शेष छह पुस्तक महल की फलित ज्योतिष रेडीरेकनर खरीद लाए हैं। ठीक है एलीमेंट्री ज्योतिष के लिए यह किताब भी बुरी नहीं है। कक्षा में पढ़ाए विषय की बात से पहले स्पष्ट करना चाहूंगा कि ज्योतिष अध्ययन बहुत शादी अंदाज है। इसे तब तक पढ़ा नहीं जा सकता जब तक आप समय और धन खर्च करने के लिए मानसिक रूप से पर्याप्त तैयार नहीं हो जाते। वरना गद्दी तपने वाले ज्योतिषी से अधिक नहीं बन पाएंगे। गद्दी तपने के अंदाज पर एक जुदा पोस्ट फिर कभी....
फिलहाल तो ज्योतिष की कक्षा का एक फोटो... अंतरराष्ट्रीय स्तर के फोटोग्राफर अजीज भुट्टा ने अपने कैमरे की नजरे इनायत की और हमारा एक फोटो खींचकर हमें मेल कर दिया। हालांकि एक फोटो अखबार में भी छपा था, लेकिन समाचार पत्र की पॉलिसी की वजह से उसमें फैकल्टी का फोटो नहीं दिया गया था।
भचक्र की बारह राशियां
तारों और उससे बने नक्षत्रों के बारे में हम पहले पढ़ चुके हैं। हर नक्षत्र के चार चरण होते हैं। नक्षत्रों के नौ चरणों से एक राशि बनती है। यानि सवा दो नक्षत्रों की एक राशि होती है। राशियां कुल बारह हैं। पहली राशि मेष, द्वितीय वृष, तृतीय मिथुन, चतुर्थ कर्क, पंचम सिंह, छठी कन्या, सातवीं तुला, आठवीं वृश्चिक, नौंवी धनु, दसवीं मकर, ग्यारहवीं कुंभ और बारहवीं राशि मीन है। हर राशि का अधिपति होता है। सूर्य और चंद्रमा के आधिपत्य में एक-एक राशि है और शेष अन्य ग्रहों के अधिकार में दो-दो राशियां हैं। मेष और वृश्चिक राशि का अधिपति मंगल है। वृष और तुला का शुक्र, मिथुन और कन्या का बुध अधिपति है। चंद्रमा का कर्क राशि पर अधिकार है और सूर्य का सिंह राशि पर। धनु और मीन राशि का अधिपति गुरु है और मकर व कुंभ राशि का शनि अधिपति है।
भाव और भावेश क्या है?
भचक्र के 360 अंशों को 12 भागों में बांटा गया है। इनमें से हर भाग 30 डिग्री का है। इस भाग को भाव कहते हैं। जब कोई कुण्डली हमारे सामने आती है तो उसमें बारह खाने बने हुए होते हैं। इनमें से सबसे ऊपर वाला पहला भाव होता है। कुण्डली के भावों को कुछ इस तरह से बताया जा सकता है। जिस भाव में जो संख्या लिखी है वह भाव की संख्या है। पहला भाव कुण्डली का सबसे महत्वपूर्ण भाव होता है। इसे लग्न कहते हैं। जातक के जन्म के समय यही भाव पूर्व दिशा में उदय हो रहा होता है। लग्न से जातक की आत्मा, मूल स्वभाव, उसका स्वास्थ्य देखा जाता है। अन्य विषयों के विश्लेषण के दौरान भी लग्न की स्थिति प्रमुखता से देखी जाती है। यदि लग्न मजबूत होता है तो कुण्डली अपने आप दुरुस्त हो जाती है। अगर किसी जातक की कुण्डली में लग्न खराब हो रहा हो तो पहले उसी का उपचार किया जाता है।
जहां दो लिखा है वह द्वितीय भाव है। यहां से जातक का परिवार और धन देखा जाता है। तीसरा भाव भाई बंधु और छोटी यात्राएं देखने के लिए है। चौथा भाव माता और घर की शांति बताता है, पांचवा भाव जातक की उत्पादकता और संतान के बारे में बताता है। छठा भाव ऋण, रोग और शत्रुओं की जानकारी देता है। सातवां भाव पत्नी और व्यापार में साझेदार के बारे में बताता है। आठवां भाव आयु और गुप्त कार्यों, नौंवा भाव भाग्य, दसवां कर्म, ग्यारहवां आय और बारहवां भाव व्यय की जानकारी देता है। आय, व्यय और कर्म किसी भी प्रकार के हो सकते हैं।
लग्न में कोई भी राशि हो सकती है। बारह राशियों में से जो राशि लग्न में होगी जातक का लग्न उसी राशि के अनुरुप कहा जाएगा। यदि जातक के जन्म के समय मिथुन या तुला राशि का उदय हो रहा है तो कहेंगे कि जातक का लग्न मिथुन या तुला का है। फर्ज कीजिए कि एक जातक 7 जून 2011 को रात 8 बजकर 19 मिनट पर बीकानेर में पैदा होता है तो उसकी कुण्डली कुछ इस तरह होगी। (दाएं ओर के चित्र में दर्शाए अनुसार)
इसमें कुण्डली के लग्न में धनु राशि है। ऐसे में कहेंगे कि धनु लग्न की कुण्डली है। धनु राशि का स्वामी गुरु है। ऐसे में कहेंगे कि लग्न का अधिपति गुरु है। दूसरे व तीसरे भाव का अधिपति शनि। चौथे का फिर से गुरु, पांचवें व बारहवें का मंगल, छठे व ग्यारहवें का शुक्र, सातवें और दसवें का बुध, आठवें का चंद्र, नौंवे का सूर्य अधिपति होगा। ज्योतिषीय शब्दावली में इसे कहेंगे कि लग्नेश गुरु, द्वितीयेश व तृतीयेश शनि, चतुर्थेश गुरु, पंचमेश मंगल, षष्ठेश शुक्र, सप्तमेश बुध, अष्टमेश चंद्र, नवमेश सूर्य, दशमेश बुध, एकादशेश शुक्र, द्वादशेश मंगल है।
ज्योतिष की कक्षा में तीसरे दिन हम करेंगे राशियों से परिचय। इसमें हम मेष से मीन तक की बारह राशियों की विशेषताओं पर चर्चा करेंगे।
सिद्दार्थ जी मुझे भी बचपन से ही ज्योतिष मे बड़ी गहरी रूची थी लेकिन अपनी ही कुंडली के विष्लेषण मे मुझसे गंभीर चूक हुई । पिछले दस वर्षो मे अपूर्व परेशानिया झेल विश्वास कुछ उठ सा चला है कभी आपसे चर्चा होगी तो कारण समझने का प्रयास करूंगा ।
जवाब देंहटाएंजानकारी भरा लेख है, इस कक्षा में हम भी है।
जवाब देंहटाएंचौथी कक्षा कब लगेगी गुरुदेव !
जवाब देंहटाएंभ्राता श्री साष्टांग दण्ड्वत् ,मुझे ज्योतिष में विशेष रुचि है ! मैं भी आपकी कक्षा में शामिल होना चाहता हुं,मुझे क्या करना होगा ?
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