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गुरुवार, मार्च 11, 2010

लाल किताब का प्रभाव यानि सिद्धांतों में घालमेल

लाल किताब प्राचीन नहीं है, जैसा कि लाल किताब के बहुत से विज्ञापनों में लिखा गया होता है 'असली प्राचीन लाल किताब।' बल्कि यह मध्‍ययुगीन है। मेरी जानकारी के अनुसार यवनों के भारत में प्रवेश के बाद भारत और पाकिस्‍तान के पंजाब वाले क्षेत्रों में इस ज्‍योतिष का तेजी से विकास हुआ। अनुमान लगा सकता हूं कि कोई छोटा ग्रुप रहा होगा, जिन्‍होंने मिलकर परम्‍परागत भारतीय ज्‍योतिष में शाबरी मंत्रों जैसे प्रयोग किए और ऐसे लोकरंजन के उपाय निकाल लिए जो अपनाने में आसान और कारगर हों।
लाल किताब के प्राचीन नहीं होने से इसकी महत्‍ता कम नहीं हो जाती। वर्तमान दौर में उपायों के लिए अगर कोई पुस्‍तक मदद करती है तो वह है लाल किताब, इसके अलावा पटियाला और चंडीगढ़ के कुछ लोगों ने, अगर सही कहूं तो एक युवा ज्‍योतिषी ने सुनहरी किताब भी प्रकाशित की। वह युवा बहुत कम उम्र में ही दुनिया छोड़ गया लेकिन जो सुनहरी किताब लिखकर गया है, वह लाल किताब को भी पीछे छोड़ती है,
लेकिन अभी बात उपचारों की
आप किसी भी पुराने ग्रंथ को उठाकर देख लीजिए। उसमें ग्रहों की गड़बड़ पर शांति के उपचार बताए गए हैं। दान, भेंट, पूजा, यज्ञ अथवा मंत्रोच्‍चार से समस्‍याओं का समाधान  पाया जा सकता है। फौरी तौर पर चंद्र राशियों के आधार पर ग्रहों के रत्‍नों की जानकारी भी कहीं-कहीं मिल जाती है, लेकिन वह भी ग्रह शांति उपचारों से ही संबंधित है।
उपचारों का बिंदू आने के साथ ही मेरे दिमाग में सबसे पहले लाल किताब आती है। इसके दो कारण हैं। पहला कि इस किताब में उपचारों की इतनी लम्‍बी रेंज दी गई है कि एक उपचार नहीं कर सको तो दूसरा कर लो, दूसरा नहीं तो तीसरा, इसी तर्ज पर लिखी गई सुनहरी किताब तो उपचारों की पूरी लिस्‍ट ही थमा देती है। अपनी इच्‍छा के अनुसार उपचार चुनो और कर लो। दूसरा कारण है कि मेरे गुरूजी ने मुझे बताया कि लाल किताब के उपचार तांत्रिक विधियों पर आधारित है। जातक जैनुइन है तो उसे लाल किताब का ही उपचार बताओ, जातक की जितनी अधिक आस्‍था होगी, उपचार उतनी ही तेजी से काम करेगा।
वर्तमान दौर में लोगों को प्रसव पीड़ा भोगने की बजाय लोगों को सिजेरियन ऑपरेशन अधिक सहज लगता है। इसलिए उन्‍हें वही दो, जो वे मांगते हैं। यह बात मुझे शुरूआती दौर में ही महसूस होने लगी थी। किसी को कोई उपचार बताओ और कहो कि पांच साल बाद सब‍कुछ दुरुस्‍त हो जाएगा तो, या तो वह ज्‍योतिषी को दिमागी रूप से दिवालिया समझेगा, वरना अपनी समस्‍याओं की लिस्‍ट बताकर तात्‍कालिक स्थितियों से तत्‍काल छुटकारा दिलाने की गुहार लगाएगा।
रत्‍नों की सीरीज में यह लाल किताब कहां घुस गई
हां, अभी तो रत्‍नों पर लगातार लिख रहा हूं, इस बीच यह लाल किताब कहां से घुस आई। जैसा कि मैंने अपने पुराने लेखों में लिखा है ज्‍योतिष की एक विधा में दूसरी विधा का घालमेल इतनी आसानी से होता है कि दोनों विधाओं के लिंक मिले जुले नजर आने लगते हैं। रत्‍नों से उपचार में एक ओर जहां हस्‍तरेखा शास्‍त्र घुसा हुआ है वहीं दूसरी ओर लाल किताब भी घुस चुकी है। लाल किताब का सूत्र है कि जो ग्रह किसी स्‍थान पर बैठकर खराब फल दे रहा हो उसे वहां से हटाकर दूसरी जगह पहुंचा दो। यह इतना आसान है, गुरू जैसे बड़े ग्रह को बिना उसके बारह चंद्रमा को छेड़े उठाकर एक स्‍थान से दूसरे स्‍थान पर पहुंचा दिया जाता है। यह ऐसे ही नहीं हो जाता है। इसके लिए कुछ नियम हैं। उसकी बात बाद में...


लाल किताब के अनुसार जिस ग्रह से संबंधित वस्‍तुओं को
- प्रथम भाव में पहुंचाना हो उसे गले में पहनिए
- दूसरे भाव में पहुंचाने के लिए मंदिर में रखिए
- तीसरे भाव में पहुंचाने के लिए संबंधित वस्‍तु को हाथ में धारण करें
- चौथे भाव में पहुंचाने के लिए पानी में बहाएं
- पांचवे भाव के लिए स्‍कूल में पहुंचाएं,
- छठे भाव में पहुंचाने के लिए कुएं में डालें
- सातवें भाव के लिए धरती में दबाएं
- आठवें भाव के लिए श्‍मशान में दबाएं
- नौंवे भाव के लिए मंदिर में दें
- दसवें भाव के लिए पिता या सरकारी भवन को दें
- ग्‍यारहवें भाव का उपाय नहीं
और बारहवें भाव के लिए ग्रह से संबंधित चीजें छत पर रखें।

हां, तो यह हुआ लाल किताब का हिसाब किताब।
अब बात मेरे एक अनुभव की। मैं एक जातक को परम्‍परागत पंडितजी के पास लेकर गया। उन्‍हें कुण्‍डली दिखाई। जातक कन्‍या लग्‍न का था। पंडितजी ने कहा चंद्रमा खराब है, इसे मोती पहनाना पड़ेगा। मैंने कहा ठीक है मैं अंगूठी बनवाने के लिए बोल देता हूं, तो पंडितजी ने मना कर दिया। कहां कि कन्‍या लग्‍न के जातक को लॉकेट में ही चंद्रमा बनवाकर पहनना होगा। क्‍यों... पंडितजी से पूछा नहीं...
मैं बताता हूं इसका कारण
लाल किताब के अनुसार चंद्रमा की अंगूठी बनाकर पहनने से चंद्रमा चला जाएगा तीसरे घर में, यानि वृश्चिक राशि में, इससे चंद्रमा नीच का हो जाएगा। अब एक तरफ लाल किताब राशियों को मानती ही नहीं है। वह हर कुण्‍डली को मेष लग्‍न की कुण्‍डली मानती है और हर घर को तयशुदा राशियां दे रखी हैं। ऐसे में परम्‍परागत ज्‍योतिष और लाल किताब का घालमेल रत्‍न को पहनने में एक और बाधा बन गया। परम्‍परागत ज्‍योतिष ने तो बस इतना कहा कि चंद्रमा के उपचार के लिए मोती पहनाना चाहिए, लेकिन लाल किताब बता रही है कि हाथ में नहीं गले में पहनो...
अब जिन लोगों ने मेरे पिछले लेख पढ़े हैं वे समझ रहे होंगे कि रत्‍न केवल टच करने या किरणों से ही उपचार नहीं करते बल्कि कैसे पहने हैं इससे भी फर्क पड़ता है। तो इस तरह किसी एक रत्‍न को पहनने के लिए मेरे पास तीन अलग-अलग आधार हो गए, जो कभी भी किसी भी स्थिति में एक-दूसरे का निषेध कर सकते हैं। कब और कैसे करेंगे यह तय नहीं है।
अगली पोस्‍ट में मैं चर्चा करूंगा कि इन सब बाधाओं के बावजूद रत्‍न क्‍यों पहनाया जाता है, क्‍या इसे पहनाए बिना काम नहीं चल सकता...

इंतजार कीजिए अगली कड़ी का...

17 टिप्‍पणियां:

  1. यह तो बड़ा ही रोचक परन्तु गहन विषय है.
    इस जानकारी के लिए धन्यवाद.
    अगले भाग की प्रतीक्षा रहेगी.

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  2. रोचक जानकारी के लिए धन्यवाद...

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  3. रोचक प्रस्तुति...लाल किताब हम भी खरीद लाये थे..पढ़ी कभी नही.

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  4. jis tarah se aap likh rahe hain aur man mein utsukta ubhar rahi hai lagta hai ab is vishay ko thoda aur gambheerta se dekhna hoga...
    main bhi kuch kitaabein padh hi lun..
    aapka dhanyawaad...

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  5. बड़ा ही रोचक परन्तु गहन विषय...शुक्रिया.

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  6. very good artical, congts remedies of all type must be discussed and they should be cost effective to the common man

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  7. सिद्धार्थ जी
    नमस्कार
    आपका रत्नों के बारे में गहन अध्ययन वाकई काबिलेतारीफ है। वैसे लाल किताब के बारे में ग्रहों को इच्छित भाव में पहुंचाना वर्ष कुंडली के लिए किया जाए तो अधिक बेहतर साबित होगा।
    यहां दो तरह की कुंडली बनती है एक जन्मकालीन कुंडली, दूसरी वर्ष कुंडली। लाल किताब कहती है कि अगर कोई ग्रह इस वर्ष तंग करने वाला है तो उसका उपाय कर लेना चाहिए।
    औऱ इन उपायों में वस्तुएं भी वह इस्तेमाल करनी चाहिऐं जो करीब एक साल में नष्ट हो जाती हों। प्रायः खाने पीने की चीजें। लाल किताब में दशा नहीं होती इसलिए वर्षकुंडली पर पूरा जोर दिया जाता है।

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  8. ये सुनहरी किताब क्या बाजार मे उपल्ब्ध है लाल किताब को समझना थोड़ी तेड़ी खीर है

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  9. अरुणेश जी सुनहरी किताब अब शायद आउट आफ प्रिंट हो चुकी है। कहीं मिलती हो तो पता नहीं। यहां बीकानेर में नहीं मिली और दिल्‍ली में पता किया तो नहीं मिली। मेरे पास एकमात्र कॉपी है। उसे कम से कम बीस लोग फोटोकॉपी करवा चुके हैं। ज्‍योतिष की कक्षा समाप्‍त होने के बाद सुनहरी किताब में से जो टोटके अनुभूत हैं उन्‍हें ब्‍लॉग पर डालने का प्रयास करूंगा...

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  10. बहुत ही रोचक जानकारी ,धन्यवाद ....

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  11. रोचक जानकारी के लिए धन्यवाद...

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