इस साल एक बार फिर वास्तु की कक्षाएं लेने का मौका मिला। पिछली बार जहां पहले से वास्तु के जानकार लोगों से लेकर छोटी बालिका तक के विद्यार्थी थे वहीं इस बार सभी युवा या अधेड़ थे, और मेरी लगातार परीक्षा लेने की फिराक में थे। कुछ ने इधर उधर कुछ पढ़ भी रखा था। एक चिकित्सक, दो इंजीनियर, एक वास्तुप्रेमी और बाकी लोग ऐवेंई कुछ सीखने आ गए थे। डांस क्लास और पेंटिंग क्लास में एक घंटे के अंतर के कारण।
पहला दिन ऊर्जा का प्रवाह और दूसरा दिन ग्रहों की स्थिति बताने में बीता। इसके साथ ही शुरू हुई बहस कि मंदिर कहां होना चाहिए, किस कोने में किस देवता का वास होता है, किस वास्तु में बुरी आत्माओं का दोष हो सकता है आदि आदि...
इन ढ़ेर सारे सवालों के जवाब में एक बात मैंने वापस पूछी कि अगर किसी हिन्दू का घर देखा जाए तो वहां एक मंदिर होना आवश्यक है, लेकिन क्या एक ईसाई के घर के वास्तु में भी ऐसा ही होगा, या इससे कुछ अलग हो सकता है। एक ने जवाब दिया उत्तरी पूर्वी कोने में जीजस की मूर्ति लगा दी जाए, इसी तरह एक मुसलमान उसी कोने में मोहम्मद साहब ही मूर्ति लगा देगा। बाकी लोग अपने अपने धर्म की आराधना इसी कोने में कर लें। ऐसे में नई समस्या यह कि फिर उत्तरी पूर्वी या ईशान कोण में आखिर होगा कि देवता का वास। काफी देर तक बहस चलने के बाद मैंने इस बिंदू पर बहस बढ़ाने से मना कर दिया और अपनी ओर से निर्णय किया कि वास्तु की कक्षा के दौरान आगे से केवल ऊर्जा के प्रवाह पर ही चर्चा होगी। अगर ऊर्जा बाधित हो रही है तो उसे ठीक करने का प्रयास किया जाएगा। यकीन मानिए बस इसी एक ट्रिक के जरिए सभी लोगों के दिमाग की खिड़की एक साथ खुल गई।
आइए आपको भी बताता हूं कि ऊर्जा के प्रवाह के बारे में मैंने क्या बताया और इसे आप खुद कैसे देख सकते हैं। हालांकि मैं यहां कोई लाइन या डायग्राम नहीं बना पा रहा हूं लेकिन शब्दों से ही इसे स्पष्ट करने का प्रयास करूंगा।
- किसी घर के वास्तु में तीन चीजों का प्रमुखता से ध्यान रखा जाए : हवा, पानी और रोशनी
- ऊर्जा के प्रवाह को रोशनी, हवा और पानी के बहाव से देखेंगे।
- ऊर्जा का प्रवाह उत्तर और पूर्व से आता है और दक्षिण तथा पश्चिम की ओर जाता है।
- उत्तरी पूर्वी कोने में सर्वाधिक ऊर्जा होती है।
- दक्षिणी पश्चिमी कोने में सबसे कम ऊर्जा होती है।
- परिवार के जिस सदस्य की जितनी ऊर्जा है उसे उतनी ही ऊर्जा के स्थान पर बैठाया जाए।
- उत्तरी पूर्वी कोना न केवल साधना बल्कि बच्चों के लिए भी बेहतर होगा
- दक्षिणी पश्चिमी कोना भण्डार के अलावा धैर्य के लिए परिवार के मुखिया का होगा
- उत्तरी पश्चिमी कोना दादा-दादी अथवा जो भी ग्रांड पेरेंट्स हों उनके लिए होगा।
- दक्षिण पूर्व में रसोई होगी।
- आंगन खाली होगा।
- भूमि भी अधिक ऊर्जा प्रवाह वाले स्थान पर नीची और कम ऊर्जा प्रवाह वाले स्थान पर ऊंची होगी।
- दुकान की वास्तु ऊर्जा का प्रवाह घर के ऊर्जा प्रवाह से ठीक उल्टा होगा।
- घर के अंदर दुकान होगी तो दोनों का ऊर्जा प्रवाह एक-दूसरे को प्रभावित करेगा।
- तीनों कारकों में से जो कारक प्रभावित हो रहा है उसी का ईलाज किया जाए। बाकी दोनों कारकों को छेड़ने की जरूरत ही नहीं है।
आईये जाने .... प्रतिभाएं ही ईश्वर हैं !
जवाब देंहटाएंआचार्य जी
सिद्धार्थ जी, मेरा घर दक्षिण मुखी है. कृपया उसके लिए भी कुछ बताइयेगा.
जवाब देंहटाएंजानकारीपूर्ण.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा ये आलेख ..तुम पर गर्व है मेरे प्यारे जोशी.. भविष्य में भी ऐसी ही लाभदायक जानिकारी की उम्मीद है.. साधुवाद !!
जवाब देंहटाएंnice flow......................energy flow.................
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर जानकारी,एक भुल की ओर ध्यान दिलाना चाहता हुं, बुरा लगे तो माफ़ करे..... ""मोहम्मद साहब ही मूर्ति"" नही मुस्लिम कुरान को रख सकते है, क्योकि मुस्लिम धर्म मै मुर्ति पुजन नही होता, मना है, शायद आप ने गलती से लिख दिया.
जवाब देंहटाएंजानकारीपूर्ण.भविष्य में भी इसी प्रकार जानकारी देते रहिएगा.....
जवाब देंहटाएंभाटिया जी मैं ही नहीं मेरी कक्षा का एक भी विद्यार्थी मुस्लिम समुदाय का नहीं था। इसलिए कोई भी यह कयास नहीं लगा रहा था।
जवाब देंहटाएंआपकी बात सही है कि मुस्लिम धर्म में मूर्ति पूजा नहीं है, लेकिन मक्का मदीना और कुरान की आयतों वाले पोस्टर खूब देखे हैं। और मजे की बात यह है कि मुस्लिम घरों में आमतौर पर ये उत्तरी पूर्वी कोने में भी दिख जाते हैं।
सिद्धार्थ!
जवाब देंहटाएंआप ने बहुत अच्छी तरह अपनी बात को समझाया है और अब यह ज़रूरी सा लगता है कि आप न केवल एक श्रृंखला लिखें इस विषय पर, बल्कि अपनी एक पुस्तक या पुस्तिका भी उपलब्ध कराएँ, जो गंभीरता से अध्ययन करने वालों के लिए अत्यंत सहायक होगी। इस लेख से प्रेरित होकर मैं इतना ही बताना चाहता हूँ कि मैं भी भारतीय-विद्या-भवन से जुड़ा हूँ और महसूस कर सकता हूँ कि किन परिस्थितियों से गुज़रना पड़ता है एक गंभीर अध्येता को, शौक़िया और पेशेवर - दोनों तरह के "कोर्स-इच्छुक" या कहें "सर्टीफ़िकेट-इच्छुक" लोगों के बीच।
बधाई, अच्छे आलेख और गहरी समझ के लिए।
Siddarth ji
जवाब देंहटाएंNamaskar,
Excellent , mind Blowing
aap ne bade hi vishleshanaatmak tarike se vaastu me dishaao ko spasht kiyaa is naye drishtikon ke liye aapkaa aabhaar
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