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रविवार, अगस्त 23, 2009

इक्‍कीसिया गणेशजी : विशेष मांग पर

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ज्‍योतिष का यह ब्‍लॉग शुरू किया तो विषय पर लिखने के दौरान कई बार लगता कि ब्‍लॉग सूना-सूना लगता है। सो इस पर अपने ईष्‍टदेव इक्‍कीसिया गणेशजी का फोटो लगा दिया। शुरूआत में लोगों ने ध्‍यान दिया या नहीं लेकिन बाद में बहुत से लोगों ने पूछा कि ये इक्‍कीसिया गणेशजी कहां है, इनका क्‍या महत्‍व है।

शायद ज्‍योतिष के ब्‍लॉग पर  गणेशजी की तस्‍वीर होने के कारण कौतुहल का कारण बनी होगी। आज गणेश चतुर्थी है। गणेशजी का खास दिन है सो लगा आज ही इक्‍कीसिया गणेशजी के बारे में जानकारी देनी चाहिए। बीकानेर शहर के पश्चिमी कोने में किराडूओं की बगीची में स्थित गणेशजी के इस मंदिर की स्‍थापना का दिन तो मुझे नहीं पता लेकिन इसके साथ एक तथ्‍य जुड़ा है। वह यह कि इसे इक्‍कीस पुष्‍य नक्षत्रों के दिन बनाया गया था। जितनी देर तक पुष्‍य नक्षत्र चलता उतनी देर तक मूर्ति बनाने का काम होता और बाद में अगले नक्षत्र पर फिर से शुरू होता। इक्‍कीस पुष्‍य नक्षत्रों तक यह काम चला और मूर्ति बन गई। इसमें गणेशजी की गोद में सिद्धि भी विराजमान है। आमतौर पर मूर्ति का श्रृंगार इतना अधिक होता है कि पता ही नहीं चलता कि मूर्ति का वास्‍तविक स्‍वरूप क्‍या है। एक दिन हमारा फोटोग्राफर नौशाद अली मंदिर पहुंचा तो उसे बिना श्रृंगार के गणेशजी दिखाई दिए। वह उनकी फोटो ले आया। उसी फोटो को मैंने इस ब्‍लॉग पर लगा रखा है।

मन्‍नतें पूरी होती गई

इस मंदिर की खासियत यह है कि इक्‍कीस दिन तक रोजाना बिना बोले मंदिर जाने और गणेशजी की इक्‍कीस फेरी रोजाना लगाने पर मन की इच्‍छा पूरी हो जाती है। मैं जब पहली बार इस मंदिर में गया था तो यह छोटा सा मंदिर था। गर्भग्रह के पीछे इतनी कम जगह थी कि एक बार में दो जन फेरी नहीं लगा पाते थे। लेकिन गणेशजी का चमत्‍कार ही है कि उन्‍होंने लोगों की इच्‍छाएं इतनी तेजी से पूरी की कि मंदिर बड़ा होता गया। अब यह शहर का सबसे ग्‍लोरियस मंदिर बन गया। जब मैंने जाना शुरू किया था तो मैं डिप्रेशन में था और एकांत की खोज में वहां जाकर बैठता था। मन को बड़ा सुकून मिलता था। तीन साल तक रोज जाता रहा। कभी कुछ मांगा नहीं लेकिन मेरी स्थिति में तेजी से बिना मांगे सुधार होता गया। एकाध बार मैंने मन में इच्‍छा लेकर फेरी निकालनी शुरू की तो बाधा आ गई और फेरियां पूरी नहीं कर पाया। तो फिर से पुराने ढर्रे पर आ गया। जब भी बिना मांगे जाता था तो नियमित रूप से बिना नागा महीनों तक यह क्रम चलता रहता। मांगने पर ही बाधा आती।  बहुत से लोग  इक्‍कीस दिन फेरियां नहीं निकाल पाते हैं। कुछ लोग जो निकाल लेते हैं उन्‍हें पुत्र संपत्ति जैसी चीजें आसानी से मिल जाती है। कालान्‍तर में दूसरे लोगों की इच्‍छाएं पूरी हुई तो मंदिर में भीड़ बढ़ने लगी। अब तो हालात ये हैं कि बुधवार के दिन गणेशजी की परिक्रमा एक साथ चालीस या पचास लोग करते हैं। कई बार तो दर्शन भी मुश्किल से होते हैं। अब मैंने जाना कम कर दिया है। साल में एकाध बार ही जा पा रहा हूं। लेकिन मन में वही पुरानी वाली छवि है। कभी उपापोह में होता हूं तो गणेशजी को याद करता हूं और समस्‍या का समाधान हो जाता है। यह मेरी आस्‍था से अधिक जुड़ा है सो यही मेरे ईष्‍ट हुए।

बस इतनी सी बात है... :) 

9 टिप्‍पणियां:

  1. धन्यवाद सिद्धार्थ जी, आप जानते हैं न मैंने आपसे दो बार इस बारे में पूछा था.
    उनके दर्शन की कामना हमें वहां तक जल्द ही खींच लाएगी.
    जय गणेश.

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  2. ekdum sahi baat hai mannate puri hoti hai.
    इक्‍कीसिया गणेशजी naam kaise pada ye to mujhe bhi aapke blog se hi malum chala hai.
    गणेश चतुर्थी ki mangalkaamnaaye
    ganpati bappa moriya
    pudchya varshi lavkar ya

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  3. सिद़ार्थ जी धन्‍यवाद। पुष्‍य नक्षत्र वाली बात तो मुझे भी नहीं पता था। सोचता हूं कुछ मांगने के लिए मैं भी जाना शुरू कर दूं।

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  4. जानकारियों का शुक्रिया.
    चमत्कार को नमस्कार.
    धर्म के प्रति आस्था ऐसे ही प्रताप और चमत्कारों से ही तो आज भी जीवित है वर्ना लोगों ने तो मानना ही छोड़ दिया है.
    धर्म के प्रति आस्था की यह मशाल , आशा है आप अनवरत यूँ ही जलाते रहेंगें,
    सब मिल कर बोलो..........
    ।। ॐ गं गणपतये नम: ।।

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  5. thanks sir iss ganesh ji ke pic ke liye humeto is jagah ke bare me pata hi nhi tha hna hum kabhi ja sakenge bs is photo ko dekh kr hi darshan kr paye qki hamari aarthi istithi v nhi hai waha jane ki so sir thanks again for this

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