The Astrology Online

सोमवार, मार्च 30, 2009

बेसिकली मूर्ख बनाने का धंधा है

अब ज्‍योतिष का ब्‍लॉग है और मैं यह बात लिख रहा हूं तो आप सोचेंगे कि आखिर आ ही गया अपनी औकात पर। आप कुछ ऐसा समझ सकते हैं। क्‍योंकि मैंने सीखने में कभी कंजूसी नहीं बरती सो हर ऐसे इंसान से सीखने की कोशिश की जिसके बारे में कहा जाता था कि इसे कुछ आता है। सही कहूं तो आज भी यही स्थिति है। जिस तरह कला के जवान होने तक कलाकार बूढा हो जाता है वैसे ही ज्‍योतिष की समझ आने तक फलादेश करने का महत्‍व भी खो सा जाता है। 
खैर में आता हूं विषय पर: बेसिकली मूर्ख बनाने के धंधे पर। 

दरअसल मेरे दो अलग-अलग गुरूओं ने मुझे यह ज्ञान दिया। सही कहूं तो दोनों ही लोग अपने अपने क्षेत्र के माने हुए ज्‍योतिषी हैं। एक रमल ज्‍योतिषी हैं तो दूसरे थाई अंक ज्‍योतिष के प्रकाण्‍ड ज्ञाता। मैं दोनों का ही नाम और चरित्र का वर्णन नहीं करूंगा। वरना आज नहीं तो कल कोई न कोई उन्‍हें  पहचान लेगा। मुख्‍य बात है कि दोनों ने एक ही बात एक ही अंदाज में क्‍यों कही और उसके लिए क्‍या दलीलें दी यह मेरे और अन्‍य नए साधकों के लिए बहुत जरूरी है। 

पहले ज्‍योतिषी जिन्‍हें मैं महाराज से संबोधित करूंगा। महाराज के बारे में कहा जाता है कि वे किसी से नहीं घबराते। न अपने भविष्‍य से न वर्तमान के भूत से। उन्‍होंने भय को जीत लिया है। इसी कांफिडेंस के साथ महाराज ने बीकानेर, जयपुर, दिल्‍ली, मुम्‍बई, कलकत्‍ता, सूरत और दर्जनों महानगरियों में अच्‍छों अच्‍छों को घुटने टिकाए हैं। महाराज किसी से ढंग से बात नहीं करते थे। मैंने दो तीन बार बात करने की कोशिश की तो उन्‍होंने बुरी तरह झिकड़ कर भगा दिया। उन दिनों टीन एजर था सो भागने में मैं भी जल्‍दी दिखाता था। 
एक दिन अपने गुरूजी (जो मेरे हार्ड कोर गुरू हैं) के साथ शनि महाराज के मंदिर गया था। गुरूजी ने कहा तेरी शनि की दशा आने वाली है चल आज शनि महाराज का हैप्‍पी बर्थ डे है। चलकर उनके दरबार में हाजिरी लगा देते हैं। सो हम पहुचे शनि मंदिर। अभी मंदिर में घुसे ही नहीं थे कि महाराज सामने आते मिल गए। महाअक्‍खड़ महाराज को देखते ही मैंने कहा गुरूजी यह महाराज अभी हम दोनों को हड़काएगा। लेकिन गुरूजी मुस्‍कुराए बोले इसकी कुण्‍डली तो मैं देखता हूं देखना अभी करीब आते ही रोने लगेगा कि गुरूजी मर रहा हूं कुछ करो। मुझे यकीन नहीं हुआ। भीड़ के बीच में महराज संयत बने रहे और थोड़ी देर में किनारे आते ही महाराज गुरूजी के पैरों में। बाकायदा गिड़गिड़ा रहे थे। चंद्रास्‍वामी से सीधे पंगा लेने वाले महाराज गुरुजी के चरणों में थे। मुझे देखकर भी यकीन नहीं हो रहा था। गुरूजी ने संबल दिलाया तो महाराज वापस अपने पैरों पर खड़े हुए। मैंने माजरा पूछा तो गुरूजी ने बताया कि महाराज की सूर्य की दशा बीत गई है अब चंद्रमा की दशा में इनकी हालत खराब हो रही है। सो इलाज के लिए घूम रहे हैं। मैं अड़ गया, मैंने कहा ऐसा कैसे हो सकता है कि रमल पद्धति का प्रकाण्‍ड विद्वान, जो रोजाना दो सौ से अधिक लोगों के दुख दूर कर रहा है खुद कैसे परेशानी में आ सकता है। 
अपनी आदत के अनुसार गुरुजी बस मुस्‍कुराते रहे। 
अब मैंने देख लिया कि महाराज गुरूजी के आगे नतमस्‍तक हैं तो मैंने अपने चोटीकट चेला होने का फायदा उठाया और सीधे सीधे बात करनी शुरू कर दी। महाराज जो अब तक मुझे हड़काते रहे थे गुरूजी के सामने मुझसे प्रेमपूर्वक बातें कर रहे थे। मैंने पूछा महाराज आप अपना इलाज खुद क्‍यों नहीं कर लेते। 
महाराज बोले पगले कभी नाई को अपनी हजामत करते हुए देखा है। 
मेरे दिमाग में बात बैठ गई। 
फिर पूछा कि आप दूसरों का ईलाज कैसे करते हैं 
यहां महाराज अटक गए बोले यह तो ट्रेड सीक्रेट है। तुझे बता दूंगा तो तूं मेरी दुकान ही ठण्‍डी करेगा। 
तो गुरूजी बीच में बोले नहीं महाराज यह परम्‍परागत पद्धति से सीख रहा है। आपकी पद्धति में यह रुचि नहीं लेगा। 
तो महाराज हल्‍के हुए 
बोला बेटा ईलाज दो ही तरीके से होता है या तो जातक पैसे से जाएगा या शरीर से जाएगा 
यह बात मेरी समझ में नहीं आई। 
तो महाराज ने एक्‍सप्‍लेन किया कि देख कुण्‍डली में बारहवां भाव मोक्ष का होता है। हर कोई परमआनन्‍द की अवस्‍था में पहुंचना चाहता है। ऐसे में जातक का बारहवां भाव ऑपरेट कराना जरूरी है। बारहवां भाव ऑपरेट नहीं होता है तो आदमी मैदे में मुठ्ठियां मारने लगता है। यानि बिना बात दुखी होने लगता है। ऐसे जातक का ईलाज भी जल्‍दी होता है। 
मैंने पूछा बारहवां भाव कैसे ऑपरेट कराते हैं। 
महाराज ने कहा या तो उसका पैसा खर्च कराता हूं या फिर शरीर। दोनों स्थितियों में खर्चा होता है। इसे रेचन की तरह समझ सकते हो। दिमाग पड़े पड़े भरने लगता है। अब उसे खाली कैसे किया जाए। जो जातक पैसा खर्च करने को राजी हो जाता है उसका इतना पैसा दान और पूजा में खर्च कराता हूं कि वह कई महीनों के लिए ठण्‍डा हो जाता है। खाली हुए बैंक बैंलेंस को भरने में ध्‍यान बंट जाता है और तात्‍कालिक समस्‍याएं गौण नजर आने लगती है। 
दूसरा तरीका है शरीर खर्च कराने का। कुछ लोग इतने मूंझी यानि कंजूस होते हैं कि दुख सह लेते हैं लेकिन अंटी ढीली नहीं करते। कोई बात नहीं उन लोगों के लिए दर्शन डेरे की व्‍यवस्‍था है। ऐसे मंदिर में दर्शन करने का उपाय बताता हूं जो उसके घर से कम से कम पांच किलोमीटर दूर हो। कईयों को तो दस या पंद्रह किलोमीटर दूर का म‍ंदिर भी बताया है। साथ में शर्त जोड़ देता हूं कि जाना पैदल ही है और रास्‍ते में किसी से बात नहीं करनी। जातक अगर ईमानदारी से उपाय करता है तो इतनी लम्‍बी दूरी तक बिना बोले चलने से समस्‍याओं के समाधान खुद ही ढूंढ लेता है या फिर कुछ दिन में उपाय करना बंद कर देता है। समस्‍या दूर हो जाती है तो ठीक वरना उपाय में कसर रहने का जुमला तो है ही। 
मैंने कहा ऐसे तो लोग आपसे दूर हो जाएंगे। 
महाराज ने कहा ऐसा नहीं होता। रोज दो सौ लोग आते हैं। बीस लोग भी ठीक हो जाते हैं तो वे मेरे भोंपू बन जाते हैं। बाकी के पौने दो सौ लोग वापस बोलते ही नहीं है। सो दिन दूनी रात चौगुनी ख्‍याती बढ़ रही है। 
मैंने पूछा कि फिर आप कांफिडेंस कैसे रख लेते हैं। 
इस पर महाराज खिलखिलाकर हंस पड़े। बोले बेटा मेरे पास खोने के लिए है ही क्‍या जो डरूं। 
मैंने कहा महाराज यह तो ज्‍योतिष ही नहीं है। 
तो महाराज ने कहा हां यह बेसिकली मूर्ख बनाने का धंधा है। 


हो सकता है आपको लगे यह बातचीत मैंने अपनी कल्‍पना से बनाई है। जब मैं खुद ही यकीन नहीं कर पा रहा हूं तो आप लोगों का यकीन करना और भी मुश्किल है। लेकिन यकीन मानिए यह वास्‍तविक बातचीत थी। 
अब जब भी महाराज को देखता हूं तो मैं मुस्‍कुराता हूं और महाराज हंसकर जवाब देते हैं। दो एक बार उन्‍होंने अपनी कुण्‍डली देखने के लिए भी कहा लेकिन मैं टाल गया। मैं बोला आप तो गुरूजी के क्‍लाइंट हैं।


अगली पोस्‍ट में बताउंगा थाई अंक ज्‍योतिष से उपचार करने वाले बाबू से बातचीत। 

2 टिप्‍पणियां:


  1. विद्यार्थी जी, आज इस ब्लाग का लिंक टटोलता हुआ आया..
    आश्चर्य है, कि आपको यह मौलिक आइडिया कैसे आया..
    और जानकारियाँ कहाँ से समेटीं ?
    सत्य वचन.. मैं निराश नहीं हुआ,
    आप एक नेक कार्य कर रहे हैं..
    रत्न विज्ञान (?) को लेकर आपके अनुभव जानना चाहूँगा !
    आभार !

    जवाब देंहटाएं
  2. सही है ... हर व्‍यक्ति के लिए और हर गुरू के द्वारा इलाज करने का अलग अलग ढंग होता है ... जातक के ग्रह तो बदलते नहीं हैं ... उनकी मन:स्थिति बदलनी पडती है।

    जवाब देंहटाएं