ऐसा मैं अभी कल ही एक लेख के हैडिंग में पढ़ चुका हूं। इसमें बताया गया था कि नौ सितम्बर को शनि तीस साल बाद कन्या राशि में लौटेगा। मुझे किसी ने यह लेख लाकर दिखाया तो हंसी छूट गई। हैडिंग करीब साठ प्वाइंट के फोंट में थी। आमतौर पर किसी रहस्योद्याटन के समय ऐसे फोंट इस्तेमाल किए जाते हैं। जो मुझे दिखा रहा था, उसके चेहरे का नूर गायब था। क्योंकि उसकी राशि में शनि के इस परिवर्तन को खराब बताया गया था। स्थिति हद से ज्यादा हास्यास्पद थी। लेकिन क्या किया जाए। जिस विधा को परम्परागत और बोगस करार देकर किनारे फेंक दिया जाएगा उसके परिणाम ऐसे ही आएंगे। ऐसा क्या है, कि ज्योतिष की प्राथमिक जानकारियों से भी लोग दूर रहते हैं। इसी कारण चाहे हल्के साहित्य वाली किताबें, ज्योतिष की मैग्जीन हो या भले ही इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इन प्राथमिक जानकारियों को सनसनीखेज खुलासे के रूप में पेश करते हैं। और लोग जो वास्तव में डरना चाहते हैं और अपनी असफलताओं का ठीकरा ग्रहों पर डालना चाहते हैं इनसे जबरदस्त प्रभावित होते हैं। हर तरफ यही चर्चा होने लगती है। सोचने की बात है कि क्या आम आदमी की जिंदगी को वास्तव में शनि इस कदर प्रभावित करेगा कि सारा वातावरण ही बदल जाए। क्या शनि पहली बार इस राशि में आया है। क्या शनि इतना खतरनाक है। क्या हर राशि इससे प्रभावित होगी।
वाह शनि को अल्टीमेट विलेन हो गया है ग्रेट इंडियन एस्ट्रोलॉजिकल सर्कस में :)
सही कहूं तो आम आदमी जो इस प्रकार के खुलासों और सनसनीखेज से प्रभावित होता है इस सर्कस का कॉमेडियन है।
गोचर के ग्रहों की अपनी नियमित चाल है और दुनिया में छह अरब लोग इन ग्रहों और नक्षत्रों की छांव में आराम से अपनी जिंदगी व्यतीत कर रहे हैं। सूर्य के चारों और ग्रहों की गति और पृथ्वी से उनका सापेक्ष घूर्णन विभिन्न राशियों में ग्रहों की उपस्थिति को बताता है। ऐसे में ग्रहों का गोचर भ्रमण आम जिंदगी को बहत अधिक प्रभावित नहीं कर सकता। दूसरी बात राशियों की। कुछ लोग सूर्य राशि से देखते हैं, कुछ चंद्र राशि से और जिन्हें थोड़ा अधिक ज्ञान है वे लग्न से देखते हैं। वास्तव में कहां से कहां तक मार होगी कहीं स्पष्ट नहीं है। न ही कोई करना चाहता है। क्योंकि ऐसे गोचर का प्रभाव मण्डेन पर तो स्पष्ट हो सकता है लेकिन किसी व्यक्ति विशेष पर हो ऐसा मुझे तो नहीं लगता। क्योंकि इन ग्रहों की चाल निश्चित है। इतनी अधिक कि दस हजार साल बाद इनकी क्या स्थिति होगी, आज बताया जा सकता है। ऐसे में फलादेश निकालते समय ग्रहों के गोचर का परिणाम भी इसमें शामिल हो सकते हैं।
अब देखें कहां से आया शनि और कहां जा रहा है
हर ग्रह की अपनी चाल होती है। सूर्य एक माह में, चंद्रमा ढाई दिन में, मंगल डेढ महीने में, शुक्र सत्ताईस दिन में, गुरू तेरह महीने में, बुध तीस दिन में, राहू और केतू डेढ़ साल में और शनि ढाई साल में एक बार अपनी राशि बदलता है। यानि एक साल में सूर्य बारह राशियां बदल लेता है तो इतनी ही राशियां बदलने में शनि को पूरे तीस साल लगते हैं। अब आपको समझ में आ गया होगा कि तीस साल तक शनि कहां था। अरे कहीं नहीं गया था यहीं था अभी कन्या में आया है, इससे पहले सिंह में था, उससे पहले कर्क में। हर ढाई साल में एक-एक राशि बदलता हुआ आखिर वापस कन्या में आ पहुंचा है। इसमें अटपटा कुछ भी नहीं है।
साढ़ेसाती, कंटक और ढैय्या
इसके बारे में मैं एक लेख में पहले दे चुका हूं। किसी जातक की जिंदगी में कम से कम तीन बार साढ़े साती आती है। यानि जन्म राशि के पैंतालीस डिग्री के अन्दर शनि का प्रवेश और पैंतालीस डिग्री बाहर निकलने तक। कब तक डरते रहेंगे साढ़े साती से लेख में आप इस बारे में अधिक विस्तार से पढ़ सकते हैं।
लेख पढ़कर काफी हद तक शनि का डर दूर हो गया है . आभार.
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी.
जवाब देंहटाएंमेरी तो सचमुच कन्या राशी है और ९ सितम्बर पास आ रहा है -दिल धड़क धड़क जाये !
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया आलेख है, पहले भी पढा था, याद दिलवाने का शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंसुबह से मिडिया वाले तो ऐसे डराए जा रहे हैं जैसे कल हो न हो :) शुक्रिया इस जानकारी के लिए
जवाब देंहटाएंयह ग्रह की मूल प्रवति है,इससे डरना नहीं चाहिये ज्योतिषियों को इस भय को दूर करना चाहिये ,न की टीवी मैं विभिन् चैनल मैं आने वाले ज्योतिषियों की तरह डरना चाहिये
जवाब देंहटाएंआपका सकारात्मक दृष्टिकोण पसंद आया!
जवाब देंहटाएंआपका कार्य समाज को सही दिशा दिखाएगा!
सिद्धार्थ जी मुझे एक बात बताये ,कन्या राशिः में शनि क्या फल देगा. जब शनि और बुध का मेल होता है तो कहा जाता है पढाई में सीरियस नेस आजाती है. क्या यह सच है ...और भी जो आप को मालूम हो
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