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रविवार, अक्तूबर 04, 2009

मानव निर्मित उपग्रहों का असर मानव जीवन पर?

अभी संगीताजी का ब्‍लॉग पढ़ रहा था वहां गिरिजेश रावजी का एक सवाल मिला। मुझे लगा कि मैं जवाब दे सकता हूं सो उठा लिया। हो सकता है इससे संगीता दी नाराज हों लेकिन मैं यह रिस्‍क उठाने को तैयार हूं। अब कुछ तो विषय हो जो मन का हो, तो कुछ लिखें भी...

 

ठीक है सवाल है मान‍व निर्मित उपग्रहों का मानव जीवन पर कोई प्रभाव होता है क्‍या

जवाब है नहीं।

वास्‍तव में तो ग्रहों का भी मानव जीवन पर कोई प्रभाव नहीं होता। क्‍योंकि वे अपनी ओर से कोई ऊर्जा या किरणें उत्‍सर्जित नहीं करते हैं। चंद्रमा के अलावा किसी अन्‍य ग्रह का अगर कोई प्रभाव गुरुत्‍वाकर्षण के कारण होता भी है तो वह इतना कम है कि उसकी वास्‍तविक गणना नहीं की जा सकती।

अब आप कहेंगे कि अब तक तो आप कहते रहे हैं कि इस ग्रह का यह प्रभाव है उस ग्रह का वह प्रभाव है और अब कह रहे हैं कि ग्रह का प्रभाव ही नहीं है।

सही बात है यह समझने की चूक है। जहां ग्रहों की बात कही जा रही है वह वास्‍तव में ग्रहों के अधिकार क्षेत्र की बात है न कि ग्रहों के खुद के प्रभाव की। इसके बारे में पहली बार केएस कृष्‍णामूर्ति ने बहुत अधिक स्‍पष्‍ट किया। हालांकि उनसे सैकड़ों साल पहले महर्षि पाराशर भी बहुत अधिक विस्‍तार से अपनी बात कह गए थे लेकिन बाद के लोगों ने केवल लकीर पीटी।

ध्‍यान दीजिए, कुण्‍डली में बारह खाने होते हैं, हर खाना तीस डिग्री का होता है, ग्रह उन खानों में घूमते रहते हैं, हर खाने की एक निश्चित राशि होती है, हर ग्रह एक निश्चित राशि में निश्चित प्रभाव देता है। यानि भाव और राशियों में घूम रहे ग्रहों का प्रभाव भी बदल जाता है। बारह खाने और बारह राशियों में एक ग्रह के 144 तरह के प्रभाव होते हैं।

तो ग्रह अपना प्रभाव कहां दे रहा है वह तो स्‍थान का प्रभाव समझा रहा है।

बात कुछ स्‍पष्‍ट हुई, नहीं,

ठीक है, इसे इस तरह समझिए कि जो पिण्‍ड ऊर्जा का उत्‍सर्जन करेगा वही हम तक प्रभाव पहुंचाने में सफल होगा। अब प्रभावों की गणना करने के लिए हमें टैग्‍स की भी जरूरत होगी। जैसे इंटरनेट पर सर्च इंजन को किसी टॉपिक को ढूंढने के लिए टैग्‍स की जरूरत पड़ती है, ठीक उसी तरह। तो अध्‍ययन के लिहाज से पूरे आकाश को बारह भागों में बांटा गया और उसमें विचरण कर रहे ग्रहों को (इसमें सूर्य और चंद्रमा को भी ग्रह मान लिया गया, वास्‍तव में इनमें से एक तारा है और दूसरा उपग्रह) प्रभावों के अध्‍ययन का आधार। पूरी गणनाएं इन्‍हीं को आधार मानकर की गई हैं।

अब सवाल यह कि पृथ्‍वी से छोड़े गए उपग्रहों के प्रभावों को इनमें शामिल किया जा सकता है क्‍या।

अपवर्तन और परावर्तन के सिद्धांतों को देखें तो जब तक चालीस या पचास हजार या इससे भी अधिक उपग्रह पृथ्‍वी के चारों ओर फैल नहीं जाते और किरणों की  राह में प्रभावी बाधा नहीं बन जाते, उनका प्रभाव इतना कम ही रहेगा कि गणना नहीं की जा सकती।

हो सकता है 2100 या 2200 के बाद यह नौबत भी आ जाए।

12 टिप्‍पणियां:

  1. इसे और विस्तार देना था सिद्धार्थ जी ,दरअसल फलित ज्योतिष को बुद्धिगम्य तरीके से समझाने वाले बहुत कम है ,इसलिए आपका उत्तरदायित्व बहुत बढ़ जाता है ! संगीता जी से तो हम अनुरोध करने से रहे !

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  2. आपने समझाया तो बहुत बढ़िया है लेकिन जैसा कि अरविन्द जी ने कहा इसे ज्यादा विस्तार देते तो और बढ़िया होता |

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  3. आपके ब्लॉग पर आने से हर बार एक नई जानकारी मिलती है!
    आपका प्रस्तुत करने का तरीक़ा अच्छा है,
    पर रोचकता के साथ अंत तक कौतूहल भी बना रहे,
    तो आलेख पढ़ने में अधिक आनंद आता है!
    मुझे तो ऐसा लगा कि यह आलेख
    इन तीन शब्दों "जवाब है नहीं।"
    के बाद ही खत्म हो गया है!

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  4. Just because we don't have instruments which can measure irrespective of relativity of strength doesn't mean their is no power of celestial objects. If that has been the case why distant planet are still attached to solar system? Why
    Sun is traveling in a path in galaxy?

    Our earth is moving at the speed of approximately 65,000 miles per hour in space. Did you ever noticed the speed?

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  5. बहुत ही वैज्ञानिक तरीके से समझाया आपने!छात्रों को जरूर बताऊंगा,धन्यवाद!!!

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  6. आशीष जी आपके सवाल के जवाब में एक बात ध्‍यान आती है वह यह कि उष्‍मागतिकी के निय‍म मैक्रो पार्टीकल्‍स पर लगते हैं न कि छोटे अणुओं पर। ऐसा क्‍यों। अगर विज्ञान के नियम हैं तो हर एक पर एक जैसे लगने चाहिए।

    आपका सवाल भी कुछ ऐसा ही लगता है। गुरुत्‍वाकर्षण का अगर कुछ प्रभाव है भी तो उसे मेजर कैसे करेंगे।
    प्रत्‍येक व्‍यक्ति पर और व्‍यक्तियों के समूह पर और किसी पर्वत पर खड़े व्‍यक्ति पर जहां इलेक्‍ट्रोमैग्‍नेटिक घनत्‍व बढ़ जाता है और किसी द्वीप पर और किसी समुद्री किनारे पर और बरमूडा ट्राइएंगल पर और किसी खदान में।

    आप दोबारा सोचिएगा कि इसका रेलेवेंस कितना बैठेगा। :)

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  7. और पृथ्‍वी की रफ्तार के बारे में मैंने साइफन में पढ़ा था।

    आजकल कहीं वह किताब दिखाई नहीं देती।

    उस जमाने में मैंने एक चींटी को मेरी प्‍लास्टिक की बड़ी बॉल पर बैठाकर घुमाया भी था, कमाल का प्रेक्टिकल था..... :)

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  8. सिद्दार्थ जी विज्ञान अपने नियम नयी खोजों के साथ बदलता रहता है | कोई वक़्त था जब हनुमान जी के शरीर का आकार बढाने को असंभव माना जाता था और सिर्फ सांकेतिक माना जाता था | अब नयी रिसर्च बता रहीं हैं की हमारे विचार भी अस्तित्व रखते हैं और उन्हें मापा भी जा सकता है वे हमारे डीएनए तक को बदल सकते हैं| ये बात भी लोग जानते हैं की मुर्गी के डीएनए और dianosaur के DNA में ज्यादा अंतर नहीं होता लेकिन शरीर के आकार में बहुत अंतर होता है | तो क्या यह संभव नहीं है की अपनी विचार शक्ति के प्रभाव से हनुमान जी अपने शरीर का डीएनए बदल कर अपनी लम्बाई कई सौ फीट कर लेते थे?

    कहना ये चाहता हूँ की सिर्फ इसीलिए की अभी हमारे पास ऐसे यंत्र नहीं है जो इतनी सूक्ष्म माप कर सकें, सिर्फ इस बात के आधार पर किसी बात को खारिज करना क्या सही है?

    विषय बहुत गहराई का है, हो सके तो इन किताबों पे नजर मारिएगा:

    http://www.brucelipton.com/store/the-biology-of-belief

    http://www.theintentionexperiment.com/the_book

    http://www.dreammanifesto.com/fractal-time-secret-2012-world-age.html

    क्षमा चाहूँगा पर पूरे विचार कमेन्ट में डालना संभव नहीं है | आप बुद्धिजीवी हैं एवं मेरे विचार से खुद इसे पढें तो ज्यादा बेहतर होगा |

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  9. शायद मेरा लिखा कमेंट आपको नहीं मिला .. मैने लिखा था कि गिरिजेश राव जी के प्रश्‍न का सटीक जबाब देने से मुझे तकलीफ क्‍यूं होगी .. इस काम को कर आपने मेरा ही बोझ हल्‍का किया है .. इस प्रश्‍न पर आपका मौलिक और वैज्ञानिक चिंतन कर दिया गया जबाब अच्‍छा लगा !!

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  10. पर पहली पंक्ति ही ज्‍योतिष को विवादास्‍पद बनाती है ...
    ग्रहों का भी मानव जीवन पर कोई प्रभाव नहीं होता। क्‍योंकि वे अपनी ओर से कोई ऊर्जा या किरणें उत्‍सर्जित नहीं करते हैं।

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  11. ग्रहों के 12*12 = 144 प्रकार के प्रभाव तो जन्‍मकुंडलियों के लिए है .. पर गोचर .. घडी घडी की मन:स्थिति बदलने में जिसका प्रभाव काफी महत्‍व रखता है !!

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  12. dear i do not k.p system so detil me . parshar main falt good nahi hai.

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