पूर्व में अपने दो या तीन लेखों में अलग अलग तरीके से संकेतों की चर्चा कर चुका हूं। इस बार सीधे संकेत पर ही चर्चा करनी पड़ेगी। लेख के शुरू में ही मैं बता देना चाहता हूं कि मैं संकेतों का विशेषज्ञ नहीं हूं। हालांकि मेरी कुण्डली के योग और वंशक्रम में पाराशर गोत्र का होने के कारण मुझे विरासत में संकेतों को समझने की नेमत मिली है। इन्हें समझ लेना और इनका विशेषज्ञ होना दोनों अलग-अलग बातें हैं। मेरे लेख को पढ़ने वाले गुणीजनों में कोई विशेषज्ञ भी हो तो मेरा आग्रह है कि वे मेरा मार्गदर्शन करें। अब भगवान गणेश को नमन करते हुए मैं अपनी बात रखता हूं।
संकेतों से मेरा परिचय कब का है पता नहीं लेकिन जब ज्योतिष सीखी तो इसे समझने का क्रम भी शुरू हुआ। गुरूजी प्रदीप पणियाजी ने मुझे बताया कि मैं अपनी विशेषता का कैसे इस्तेमाल कर सकता हूं। इसके लिए पहले जरूरत है ओमेन को समझने की। हमारे चारों ओर का वातावरण हम पर और हम अपने वातावरण पर नियमित रूप से प्रभाव डालते हैं। भले ही हम इसके लिए सक्रिय रूप से सोच रहे हों या नहीं। यह देखने में ऐसी बात लगती है जैसा कि चण्डूछाप तांत्रिक कहते हैं या फिर बहुत सिद्ध योगी। ईश्वर ने किसी भी एक को विशेषाधिकार देकर नहीं भेजा है। उसकी नजर में सब बराबर हैं। हां कभी कभार लगता है कि वह खुद तक एप्रोच बनाने के रास्ते सभी को अलग-अलग देता है। कोई बात नहीं पहुंचेंगे तो वहीं। तो जब ईश्वर ने सभी को एक जैसी शक्तियां दी हैं तो हर कोई उसे इस्तेमाल भी कर सकता है, निर्भर करता है कि अपनी सोई शक्तियों को जगाने के लिए हमने कितना प्रयास किया।
चाहे हेमवंता नेमासा काटवे हों या के.एस. कृष्णामूर्ति सभी यही कहते हैं कि जब हम अपने आस-पास के वातावरण के प्रति संवेदनशीलता खो देते हैं तो आगामी घटनाओं की जानकारी लेने के लिए ज्योतिष का सहारा लेना पड़ता है। कई साल ज्योतिष के साथ जुड़े रहने के बाद अब यह बात समझ में आने लगी है। कैसे हम घटनाओं और वस्तुओं के साथ तारतम्य बना लेते हैं और कैसे पूर्व की घटनाएं, वस्तुएं और अन्य संकेत आने वाले समय की सूचना देने लगते हैं।
एक उदाहरण देना चाहूंगा। यह मेरा सुना हुआ है। हो सकता है इसमें अतिरंजना हो लेकिन समझने के लिए अच्छा है। सामान्य बातें धीरे-धीरे समझ में आती है और अतिरंजना बड़ी तस्वीर का काम करती है।
एक वणिक था। उसे एक पंडित ने कहा कि रोजाना किसी ने किसी भूखे या अतृप्त को भोजन कराओगे तो तुम्हारा व्यवसाय दिन दूना रात चौगुना बढ़ेगा। वणिक ने भोजन कराना शुरू भी कर दिया। कुछ दिन में उसका व्यवसाय फलने फूलने लगा। एक दिन ऐसा हुआ कि उसे सुबह से दोपहर तक कोई अतृप्त नहीं मिला। यह बात सुनने में अजीब लग सकती है लेकिन नहीं मिला। सो वह ढूंढता हुआ पहाड़ी की ओर निकल गया। वहां एक सांड जैसा आदमी सोया हुआ दिखा। उसके होठों पर भी पपड़ी जमी हुई थी। वणिक ने सोचा यही सही व्यक्ति है। उसने पालकी मंगवाई और उस बलिष्ठ दिखने वाले व्यक्ति को घर ले आया। उसे पानी पिलाकर होश में लाया और भरपेट खाना खिलाया। थोड़ी ही बातचीत में पता चल गया कि वह शरीर से तो तंदुरुस्त है लेकिन अकल से गूंगा है। जैसे ही उस आदमी ने खाना खाया उसे जोश आ गया। खाना खिलाने के बाद वणिक ने तो उस आदमी को विदा कर दिया लेकिन रास्ते में उस मेंटली रिटार्टेड आदमी ने सड़क पर पड़ा लठ्ठ लेकर एक गाय पर भीषण प्रहार किया। इस प्रहार से गाय की मौत हो गई। उधर गाय मरी और इधर वणिक की हालत खराब होने लगी। एक जहाज विदेश से माल लेकर आ रहा था वह पानी में डूब गया। राजा ने शास्ति लगा दी। व्यापार में घाटा आने लगा। अब वणिक भागा वापस ज्योतिषी के पास। ज्योतिषी से पूछा कि आपके बताए अनुसार उपचार किए लेकिन मेरी तो हालत खराब हो रही है। कहां चूक हुई। ज्योतिषी ने पिछले कुछ दिनों का हाल पूछा और पता लगाने की कोशिश की कि कहां गड़बड़ हुई है। काफी देर की कसरत के बाद पता लगा लिया गया कि गाय की मौत का ठीकरा वणिक के सिर फूटा है। इसके दो कारण हैं। गाय को मारते वक्त उस आदमी के पेट में वणिक का अन्न था। तो उस आदमी के सिर दोष होना चाहिए। हो भी सकता था लेकिन वह आदमी को मेंटली रिटार्टेड था सो उसे इस बात का विवेक ही नहीं था। यानि वह केवल वणिक और गाय की मौत के बीच माध्यम भर बना था। इसके बाद ज्योतिषी ने गाय की हत्या के कुछ उपचार वणिक को बताए। उन्हें करने के बाद वणिक की स्थिति वापस सुधरने लगी।
इसमें अतिरंजना तो यह हुई कि उपचारों पर ही पूरा व्यापार खड़ा कर दिया गया है, दूसरा यह कि गणना से यह पता लगा लिया गया कि गाय की मौत हुई है। जो भी हो कहानी है...
मैं यह बताने का प्रयास कर रहा हूं कि हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में कई काम ऐसे करते हैं जिनका मंतव्य अच्छा होता है और काम भी अच्छे दिखते हैं लेकिन उनके परिणाम कितनी दूरी पर जाकर क्या रंग लाते हैं इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता। वणिक नहीं चाहता था कि गाय की मौत हो लेकिन हुई और वणिक उसका एक बड़ा कारण बना। न वह उस आदमी को घर लेकर आता और न उसे खाना खिलाता तो गाय की मौत नहीं होती।
तो हमारी रोजमर्रा की जिंदगी के कामों का क्या परिणाम निकलेगा इसका पता कैसे लगाया जाए। जैसा कि मस्तिष्क पर शोध करने वाले लोग कुछ साल पहले तक कहते थे कि हम अपने दिमाग का केवल दस प्रतिशत हिस्सा काम में लेते हैं, कुछ दिन पहले तक कहने लगे कि एक प्रतिशत ही काम में लेते हैं और कुछ समय पहले तो सुना कि एक प्रतिशत से भी कम काम में लेते हैं। इसीलिए मुझे विज्ञान और इसमें शोध कर रहे लोगों पर कभी पूरा भरोसा नहीं होता। खैर जो भी है...
शेष 99 प्रतिशत भाग अवचेतन का है। वह हमारे लिए गणना करता है कि आपकी गतिविधियों, आपके व्यवहार, मौसम, आपके घर का सामान, आपके दोस्तों, उनके द्वारा बोली गई बातों, रास्ते में बज रहे संगीत, बस में आपकी सीट के पास बैठे व्यक्ति की हरकतों, पशु पक्षियों की मुद्राएं और आवाजों और हजारों संकेतों के क्या मायने हो सकते हैं। चूंकि हम एक विशिष्ट भाषा और शैली से बोलना, चलना और समझना सीखते हैं। जिंदगी के पहले पांच सालों में इसकी जबरदस्त ट्रेनिंग होती है। बस वही भाषा हमें आती है। बाकी संकेतों को हम उतने बेहतर तरीके से समझ नहीं पाते। एलन पीज ने अपनी पुस्तक बॉडी लैंग्वेज में इसी अवचेतन के संकेतों को समझने की कोशिश करते हैं। स्टीफन आर कोवे इसी अवचेतन को सक्रिय करने के लिए सात आदतें डालने का आग्रह करते नजर आते हैं।
अब फिर से बात करता हूं कि जिन लोगों ने भविष्य देखने या इंट्यूशन की प्रेक्टिस नहीं की है उन्हें यह सब कैसे और क्यों दिखाई देता है। ज्योतिषीय दृष्टिकोण से कुण्डली का आठवां भाव और बारहवां भाव तथा राहू और कमजोर चंद्रमा हमें ऐसे दृश्य देखने और सोचने में सहायता करते हैं। आम चिकित्सक के पास जाने पर वह आपको खुद को व्यस्त रखने की सलाह देता है। अल्पनाजी को यह पता है। उन्होंने इसके अलावा कोई और उपाय हो तो बताने के लिए कहा है। ठीक है एक सवाल के साथ...
अब यहां एक और गंभीर सवाल है जो आमतौर पर नए ज्योतिषीयों के समक्ष आता है वह यह कि इंट्यूशन और कल्पना में क्या अन्तर है। मैंने अपने लेख इंट्यूशन और कल्पना में अन्तर में इस मुद्दे पर चर्चा शुरू की थी। इसमें मैंने कुछ हद तक स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि दोनों में क्या अन्तर है। कई बार हमारे भय, चिंताएं, विचारों की शृंखला, भीषण घटनाएं हमारे दिमाग में अनिष्ट या ईष्ट की इच्छा के बुलबुले बनाने लगते हैं। नए ज्योतिषियों के साथ तो ऐसा होता है कि वे जातक की आर्थिक स्िथति और पर्सनेलिटी तक से प्रभावित हो जाते हैं और उसके सुखद या दुखद भविष्य की कल्पना कर बैठते हैं। वे इतने जोश में होते हैं कि उसी कल्पना को इंट्यूशन समझकर फलादेश भी ठोंक देते हैं। जब जातक लौटकर आता है तो शर्मिंदगी ही उठानी पड़ती है।
इसी दौरान एक और बात आई वह थी एक ही अंक का बार बार दिखना। अखिल तिवारी जी कहते हैं कि पिछले कई सालों से एक विशेष समय को कभी घड़ी, कभी मोबाइल. कभी कंप्यूटर तो कभी कही भी, दीवाल पे, नही तो सामने जाती हुई गाड़ी के नम्बर पर.. एक विशेष combination (12:22) रोज दीखता है. हम किसी भी दो संयोगों को मिलाकर चार कर सकते हैं। और जब तक दो और दो चार होते रहें तब तक तो ठीक है लेकिन कई बार यही दो और दो पांच दिखने लगे तो कठिनाई आती है। अब इसी उदाहरण की बात की जाए तो मैं सोच सकता हूं कि इस विशेष नम्बर से कहीं उनका जुड़ाव होगा। अगर वे देखने की बजाय आब्जर्व करने लगें तो पता चलेगा कि केवल ये विशेष संख्याएं ही नहीं अनन्त संख्याएं उनके सामने आती हैं लेकिन जिंदगी में कही न कहीं इन संख्याओं से जुड़ी याद होने के कारण ये अधिक तेजी से उनके दिमाग में ब्लिंक करती हैं। अब संख्या तो आ रही है लेकिन उसके साथ जुड़ी याद अवचेतन में पीछे कहीं दूर धकेल दी गई है। सो उनका परेशान होना स्वाभाविक है। अगर मैं एक न्यूमरोलॉजिस्ट की तरह बात करूं यानि सिट्टा हाथ में उठा लूं, तो पहले तो इन संख्याओं को जोडकर सात बना लूंगा। फिर बताउंगा कि चूंकि ये संख्याएं दो भागों में बंटी है इसलिए पहले तीन का और बाद में चार का असर आएगा। यानि तीन की संख्या से गुरू और चार की संख्या से सूर्य आता है। इससे पता चलता है कि जब आप किसी प्रॉब्लम में उलझे होते हैं तो आपको किताबों और ऑथेरिटी की जरूरत होती है। अगर अखिल जी मेरी बात को सीरियस लेते हैं तो वे याद करेंगे और उन्हें याद भी आ जाएगा कि उन्होंने कई बार प्रॉब्लम में होने पर किताबों में जानकारी ली और अपने सीनियर्स की मदद भी। लेकिन एक सिस्टम एनालिस्ट ऐसे नहीं बनता है। यकीन मानिए। उसे समस्याओं को खुद ही हल करना होता है। चाहे किसी की भी सहायता ले लेकिन लगातार सामने आ रही समस्या उसकी निजी होती है और उससे लड़ने वाला भी वह खुद ही होता है। अब जिन बातों का जस्टिफिकेशन हमारे पास नहीं होता उन बातों के लिए हम उन लोगों पर निर्भर हो जाते हैं जिन्हें वास्तव में खुद कुछ नहीं मालूम। जैसा कि मेरे एक दोस्त कहते हैं दो अंधे मिलकर एक आंख से देखने लगते हैं। अब (12:22) संकेत तो है लेकिन भविष्य का हो जरूरी नहीं।
अब बात पराभौतिक कनेक्शन की: यह हर किसी का होता है। चाहे वह उसे प्रदर्शित कर पाए या नहीं। जब हाजिर दिमाग काम करना बंद कर देता है तब यह पराभौतिक कनेक्शन अधिक मुखरता से महसूस होने लगते हैं। हम किसी से कोई बात करते हैं, कोई जानकारी लेते या देते हैं, कोई गाना सुनते हैं, कोई समाचार देखते हैं तो दिमाग तत्काल जो रिएक्शन देता है वह हाजिर दिमाग की होती है। मान लीजिए कि आपने टीवी में एक सड़क दुर्घटना का दृश्य देखा। इससे आपके दिमाग में हाथों हाथ यह आएगा कि आजकल सड़क दुर्घटनाएं बढ़ गई हैं, लोग लापरवाही से गाड़ी चलाते हैं वगैरह वगैरह.. कुल मिलाकर तात्कालिक प्रतिक्रियाएं तत्काल आती हैं और समाप्त भी हो जाती हैं। इसी दौरान आपका अवचेतन गणना करने लगता है। (यह केवल उदाहरण के लिए है सिद्धांत नहीं) वह आपको याद दिला देता है कि आपका छोटा भाई भी लापरवाही से गाड़ी चलाता है। आजकल किसी बड़े शहर में है जहां उसके पास दुपहिया वाहन भी है। हालांकि दुपहिया वाहन कम चलाता है लेकिन चलाता तो है। अब दूसरा विचार कि आपके भाई का शहर और दुर्घटना वाला शहर कितना मिलता जुलता है। इस जैसे हजारों विचार दिमाग के बैकग्राउंड में चलते हैं। इसी दौरान आपके भाई का दोस्त भी यही देख रहा होता है और शायद उसका अवचेतन भी ऐसी ही कुछ चाल चलता है। अब आप और आपके दोस्त का भाई कहीं रास्ते में मिलते हैं। आपका दिमाग बात करता है गाड़ी को सही मेंनटेंन करने और सही तरीके से चलाने के बारे में यही आपके भाई के दोस्त के दिमाग में भी चल रहा होता है। दोनों मिलकर बात कर लेते हैं। और निष्कर्ष निकाल लेते हैं कि आपका भाई तो ढंग से गाड़ी चलाता है। इसके लिए कहीं भी आपके भाई या दुर्घटना का जिक्र नहीं होता। लेकिन मैसेज कन्वे हो गया। अब आपकी चिंता बढ़ रही है और आप अपने भाई को फोन लगाते हैं तो वह वही बातें कर रहा होता है जो आपने अब तक सोची थी। लेकिन वह यह बताना भूल जाता है कि उसके दोस्त का भी फोन आया था। आपकी सोच बदल जाती है। आप सोचने लगते हैं कि यह कैसे हुआ। जबकि तीनों लोगों के अवचेतन इस कांबिनेशन को बना रहे थे। यह एक उदाहरण है। लेकिन इससे स्पष्ट हो सकता है कि कैसे हम कोई बात सोचते हैं दूसरा उसी बात को बोलता है। इसे मैं दो लोगों के एक ही मानसिक स्तर में होना कहता हूं। साइकोलॉजिस्ट क्या कहते हैं मुझे पता नहीं। अब अल्पना वर्मा जी कहती हैं कि एक व्यक्ति को कभी कभी कोई घटना -अक्सर दुर्घटना - दिमाग में बार बार तब तक दिखायी देती रहे..और कुछ दिन में या कुछ घंटे या मिनटों के अन्तर पर वो सच हो जाए। कभी कोई मिलने आने वाला हो और घर के नज़दीक होने पर उस की तस्वीर दिमाग में स्पष्ट दिखायी दे। यह यकीनन कोई मनोरोग नहीं है। हां यह मनोरोग नहीं है बस आपके अवचेतन का एक ट्रेलर मात्र है। बिल्कुल वैसी की वैसी घटना न भी हो तो आपकी कल्पना की घटना और वास्तविक घटना की एकरूपता को जस्टिफाई आपका दिमाग ही तो करेगा। अगर वह क्रूर विश्लेषण करे तो दोनों घटनाओं में हजारों अन्तर ढूंढ निकालेगा और मनोविनोद की बात हो तो अंतर ढूंढने का कारण ही नहीं रह जाएगा। हम भविष्य तो देख भी लें तो वह वैसा हमारे सामने कभी नहीं आएगा जैसा कि वास्तव में है। बस संकेत आते हैं। आप जिनती कुशलता से इन संकेतों को समझ लेते हैं वही भविष्य की या दूरदृष्टि है।
शेष शुभम्
"इतनी विस्तार से जानकारी देने का आभार....कुछ जिज्ञासा जरुर शांत हुई है मगर पुरी तरह नही.....क्योंकि ऐसी कोई न कोई घटना रोज मेरे साथ भी होती रहती है.....जिनका कारण मुझे समझ नही आता...और कुछ तो ऐसे अनजान लोगो से जुड़ी होती हैं जिनको मै पुरी तरह जानती तक नही......"
जवाब देंहटाएंRegards
बहुत बढ़िया तरीके से आपने बताया सिद्दार्थ जी ...पर कुछ तो है जो अन्तकरण में इस तरह से हलचल मचाती है
जवाब देंहटाएंआपकी इस रोचक पोस्ट ने जिज्ञासा भाव जाग्रत किया है।
जवाब देंहटाएंविस्तार से यह सब समझाने के लिये आप का बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद इस प्रश्न का संतोषजनक उत्तर देने के लिए.
जवाब देंहटाएंमुझे आप की दी हुई व्याख्या समझ आ गयी है और सम्बंधित व्यक्ति तक इस की
जानकारी पहुंचा दी गयी है.
पूरी बात समझने के बाद भ्रम का एक जाला सा हट गया ऐसा लगता है.
मनुष्य के दिमाग की प्रक्रिया , सोच और मन सभी को समझना बहुत जटिल है.
क्षण भर को यही प्रतीत हुआ बस यही बात थी!और हम ना जाने किस डर में रहते हैं.
जब यह बात एक बार एक दूसरे धरम के व्यक्ति को बताई गयी थी तो उस ने यह कहा था की यह बात कभी किसी से नहीं कहना.नहीं तो पुरखे नाराज हो जाते हैं![हास्यप्रद बात लगी मगर अनजाने एक डर तो बैठ गया!]
लेकिन आप के पहले के लेख को भी पढ़ा और इस व्याख्या को भी ..मुझे आप की बातें एक ही तर्क सांगत और सुलझी हुई लगीं.पुनः धन्यवाद.
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जवाब देंहटाएंआपका यह लेख पढ़कर इस बात का तो बाखूबी अंदाज हो जाता है कि आपकी विज्ञान की शिक्षा ने आपके ज्योतिष ज्ञान को चार चांद लगा दिए हैं। रही मानव मन की बात तो मेरे मत से इसके तीन हिस्से होते हैं। पहला जो हम चेतन मन से चीजें देखते हैं, दूसरा जो हमारा अवचेतन मन अनजाने में ही पकड़ लेता है और तीसरे वो जो हम पिछले जन्मों से लाए हैं।
जवाब देंहटाएंइस जन्म के चेतन और अवचेतन बिंदु तो विज्ञान प्रयासों से पकड़ लेता है। समस्या आती है पिछले जन्म के मन में फंसे कांटों से। जिन्हें न तो देखना आसान है और न पकड़ पाना। काटवे ने अपनी पुस्तक दैव विचार में इस बात का खुलासा किया है कि किस तरह आठ ग्रह पिछले जन्मों के सुख-दुख इस जन्म में ले कर आते हैं।
इन अनुभवों को दूसरों को बताने से परेशानी यह आती है कि वो न तो इन बातों को समझ पाता है, इनका मतलब समझाना तो खैर दूर की एक कौड़ी ही है। इसके लिए एक थ्योरी काम करती है जिसमें हिप्नोटाईज कर पिछले जन्मों में ले जाया जाता है। दिल्ली में एक सज्जन इससे संबंधित कार्य कर रहे हैं। दूसरी चीज है जाती स्मरण ध्यान विधि। इसमें धीरे-धीरे सतत प्रयास करते हुए पिछले जन्म की अनसुलझी बातें जानने का प्रयास किया जाता है।
दिमाग के खेल यकीनन दुरूह होते हैं। इनसे पार पाना आसान नहीं है। कुछ कंस्लटेश्नस में ऐसे लोगों से मेरा भी पाला पड़ा है। मैं मानता हूं मानसिक समस्याऐं कुछ हद तक सबके साथ होती हैं। परेशानी तब पैदा होती है जब यह समस्याऐं अपने किनारे तोड़ कर बाहर आ जाती हैं।
बन्धु, इतने विस्तार से अपनी बात समझाने के लिए धन्यवाद. आपकी बातों ने जरूर बहुत सारी जिज्ञासाएं शांत की हैं, पर अभी भी कई बातें ऐसी हैं जिनपर तर्क हावी नहीं हो पा रहा है.
जवाब देंहटाएंआपका मेरे ऊपर किया गया विश्लेषण बहुत हद तक सही है. आपके ज्ञान और अलग अलग बातों को अपने ज्ञान की मदद से एक दुसरे से जोड़ने की क्षमता देख कर बहुत प्रभावित हुआ. जहाँ तक एक ही घटना बार बार देखने की बात है, अगर कभी कभी ऐसा हो तब तो दिल को तर्कों से समझाया जा सकता है. पर अगर एक ख़ास संकेत की बारंबारता इतनी बढ़ जाए की आप उससे परेशां होने लगें तब दिल तर्कों को परे करने लगता है. शायद ऐसा ही मेरे साथ भी हो लिए है पिछले कुछ वर्षों से.
आशा है आपकी आगे की पोस्ट्स में और विस्तार से इसी तरह की चर्चाएँ होती रहेंगी और हमलोग अपनी कुछ जिज्ञासाएं शांत कर पायेंगे. नितिन जी ने भी अच्चे बिंदु उठाये हैं. आशा है सिद्धार्थ जी भी इन पर प्रकाश डालें.
सहजता, मेरे विचार से भ्रांतिया और अशान्तिया केवल असहज मन-मस्तिष्क का परिणाम हैं. यदि सहजता से जीवन जीया जाए तो मानसिक परेशानिया, परलौकिक अनुभव, पूर्व जन्म की यादें आदि से छुटकारा पाया जा सकता है. मानव मन की सरंचना को समझना और उस पर अपना विवेक खर्च करना मेरे ख़याल से नासमझी है. मुझे यदि कोई अंक बार-बार दिखाई देता है तो इसका कोई मतलब नहीं की मैं अपना जीवन इसी का अर्थ ढूँढने में लगा दूं. यदि आपको कोई अंक बार-बार दीखता है तो कई अंक नहीं भी तो दीखते होंगे. जीवन को सहजता से जीना मेरे विचार में सबसे ज़रूरी है. मुझे याद आता है कहीं पढा था स्वामी विवेकानंद ने कहा था की 'जीवन में कुछ भी घटित हो सकता है इसलिए किसी भी बात से हैरान होने की कोई आवश्यकता नहीं है." जीवन को सहजता से जीना और प्राणी मात्र के लिए प्यार और सम्मान का भाव रखना ही शान्ति प्राप्त करने का एकमात्र साधन है. आगे आपकी मर्ज़ी -जय हिंद
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