ज्योतिष में ईलाज की महत्वपूर्ण भूमिका है। एक सफल ज्योतिषी वही है जो न केवल समस्या को पहचान ले बल्कि समस्या के निदान के लिए पुख्ता उपाय भी बता दे। हर ज्योतिषी के पास ईलाज का अपना तरीका है। मैंने अलग-अलग गुरुओं से सीखा, सो मैं कई तरह के उपचार काम में लेने की कोशिश करता हूं। इसका मुझे यह फायदा होता है कि उपचार की लम्बी फेहरिस्त हमेशा मेरे पास होती है और जातक के पास एक नहीं तो दूसरा उपचार चुनने की स्वतंत्रता बची रहती है।
उपचार का एक महत्वपूर्ण भाग है वनस्पतियां, वेदों और पुराणों में ग्रह शांति का सबसे सशक्त माध्यम यज्ञ को बताया गया है। बाद के विद्वानों ने स्पष्ट भी किया है कि कौनसी वनस्पति के काष्ठ की आहूति देने पर क्या उपचार हो सकता है। यज्ञ के बारे में मेरा ज्ञान बहुत कम है, लेकिन जो पहले दिया जा चुका है उसे यहां शामिल किया जा सकता है। इसके साथ ही वास्तु में वनस्पति के उपचार भी इस लेख में शामिल करने का प्रयास करता हूं। मुझे यह तैयार माल पिछले दिनों बीकानेर में राष्ट्रीय स्तर की संगोष्ठी में मिला। गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार के प्रोफेसर डी.आर. खन्ना ने अपने पत्रवाचन में यह तैयार सामग्री परोसी।
- यज्ञाग्नि प्रज्वलित रखने के लिए प्रयोग किए जाने वाले काष्ठ को समिधा अथवा इध्म कहते हैं।
- प्रत्येक लकड़ी को समिधा नहीं बनाया जा सकता।
- आह्निक सूत्रावली में ढाक, फल्गु, वट, पीपल, विकंकत, गूलर, चन्दन, सरल, देवदारू, शाल, खैर का विधान है।
- वायु पुराण में ढाक, काकप्रिय, बड़, पिलखन, पीपल, विकंकत, गूलर, बेल, चन्दन, पीतदारू, शाल, खैर को यज्ञ के लिए उपयोगी माना गया है।
- दयानन्द सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश में यज्ञ के लिए पलाश, शमी, पीपल, बड़, गूलर, आम व विल्व को उपयोगी बताया है। उन्होंने चन्दन, पलाश और आम को सर्वश्रेष्ठ बताया है।
- सूर्य के लिए अर्क, चंद्र के लिए ढाक, मंगल के लिए खैर, बुध के लिए अपामार्ग, गुरू के लिए पीपल, शुक्र के लिए गूलर, शनि के लिए शमी और राहू के लिए दूर्वा व केतू के लिए कुश वनस्पतियां उपचार में ली जा सकती हैं।
वास्तु से जुड़ी वनस्पतियां
घर के आगे नवग्रहों के वृक्षों की स्थापना के लिए भी सिद्धांत बताए गए हैं। इसके लिए स्पष्ट किया गया है कि पूर्व में गूलर, पश्चिम में शमी, उत्तर में पीपल, दक्षिण में खैर और मध्य में आक का वृक्ष लगाना लाभदायी है। इसके अलावा उत्तर पूर्व में लटजीरा, उत्तर पश्चिम में कुश, दक्षिण पश्चिम में दूब और दक्षिण पूर्व में ढाक का वृक्ष लगाना चाहिए।
यह प्रोफेसर खन्ना के पत्रवाचन का ज्यों का त्यों सार दिया गया है। इसमें मैंने अपनी ओर से कोई विचार नहीं दिया है। आगे किसी लेख में वनस्पतियों के उपचार में इस्तेमाल के तरीके एवं अन्य वनस्पतियों के रोल के बारे में स्पष्ट करने का प्रयास करूंगा।
यथा...
रोचक जानकारी.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर जानकारी जी धन्यवाद
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