ज्योतिष की किताबों में आपको ग्रहों, राशियों और भावों के बारे में विस्तार से जानकारी मिल जाएगी। इससे अधिक देखने पर हम पाते हैं कि राशियों को नक्षत्रों के अनुसार विशिष्टता दी गई है। चंद्रमा भी नक्षत्रों पर से गुजरते हुए हमें रोज के बदलावों की जानकारी देता है। ज्योतिष की प्राचीन और नई पुस्तकों में यह तो दिया गया है कि अमुक नक्षत्र में चंद्रमा के विचरण का फलां फल है, लेकिन कहीं यह नहीं बताया गया है कि नक्षत्र का नैसर्गिक स्वभाव क्या है या उस पर किसी ग्रह के स्वामित्व का वास्तविक अर्थ क्या है।
पाराशर ऋषि ने नक्षत्र चार के आधार पर ही दशाओं का विभाजन किया लेकिन नक्षत्रों के बारे में विस्तार से जानकारी नहीं दी। इसी तरह प्रोफेसर केएस कृष्णामूर्ति ने केवल चंद्रमा के नक्षत्र चार से बाहर आकर हर भाव और ग्रह के नक्षत्रों तक उतरकर विशद् विश्लेषण पेश किया, लेकिन उन्होंने ने भी कहीं नक्षत्रों की निजी विशिष्टताओं के बारे में स्पष्ट नहीं किया गया है। जबकि वृहत्त संहिता और दूसरी एकाध प्राचीन पुस्तक में नक्षत्रों के स्वरूप का वर्णन तक मिलता है। इन नक्षत्रों के स्वरूप के आधार पर ही उनके गुण भी बताए गए हैं।
जब नक्षत्र के बारे में इतनी सटीक जानकारी उपलब्ध है तो उनके निजी या एकांगिक गुणों के बारे में कहीं स्पष्ट नहीं किया जाना कुछ खल जाता है। नक्षत्रों में विचरण को दौरान अगर चंद्रमा के स्वभाव में नियमित रूप से परिवर्तन आता है तो क्या अन्य ग्रहों पर भी ऐसे प्रभाव का अध्ययन जरूरी नहीं है।
पहले पता करते हैं कि नक्षत्र हैं क्या?
पहले हमने देखा कि बारह राशियां भचक्र के 360 डिग्री को बराबर भागों में बांटती हैं। इस तरह आकाश के हमने बारह बराबर टुकड़े कर दिए। तारों का एक समूह मिलकर नक्षत्र बनाता है। ऐसे सत्ताईस नक्षत्रों की पहचान की गई है। इससे आकाश को बराबर भागों में बांटा गया है। हर नक्षत्र के हिस्से में आकाश का 13 डिग्री 20 मिनट भाग आता है। जब हम चंद्रमा के दैनिक गति की बात करते हैं कि इसमें नक्षत्रों की विशेष भूमिका होती है। राशि वही हो और नक्षत्र बदल जाए तो चंद्रमा का स्वभाव भी बदल जाता है। इसी तरह हर ग्रह के स्वभाव में भी नक्षत्र चार के दौरान बदलाव आता है। चूंकि नक्षत्रों का स्वामित्व ग्रहों को ही दिया गया है। ऐसे में स्वभाव में परिवर्तन भी ग्रहों के अनुसार ही मान लिया जाता है। जबकि हकीकत में यह नक्षत्र की नैसर्गिक प्रवृत्ति के अनुसार होना चाहिए।
सत्ताईस नक्षत्र और उनका विभाजन
अश्विनी, भरणी, कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूला, पूर्वषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वभाद्रपद, उत्तरभाद्रपद तथा रेवती नक्षत्र बताए गए हैं। ये इसी क्रम में रहते हैं।
इन नक्षत्रों का स्वामित्व कुछ इस तरह दिया गया है कि केतू, शुक्र, सूर्य, चंद्र, मंगल, राहू, गुरु, शनि और बुध क्रमश: पहले से नौंवे नक्षत्र के अधिपति है। इसके बाद दसवें नक्षत्र का अधिपति फिर से केतू हो जाता है। नौ ग्रहों में से हर एक के हिस्से में तीन-तीन नक्षत्र आते हैं। राशियों ने नक्षत्रों के टुकड़ों को बांटा है। हर नक्षत्र के चार चरण होते हैं। इस तरह 27 नक्षत्र हर चरण के आधार पर आकाश के टुकड़े करे तो कुल 108 टुकड़े होंगे। एक राशि के तहत सवा दो नक्षत्र आते हैं। यानि नक्षत्र के नौ चरण।
नक्षत्रों का वर्गीकरण (वृहत्त संहिता के अनुसार)
ध्रुव नक्षत्र – उत्तराषाढ़ा, उत्तरा फाल्गुनी और उत्तरा भाद्रपद व रोहिणी
तीक्षण – मूल, आर्द्रा, ज्येष्ठा और आश्लेषा
उग्र – पूर्व फाल्गुनी, पूर्वषाढ़ा, पूर्वभाद्रपद, भरणी और मघा
क्षिप्र - हस्त, अश्विनी और पुष्य
मृदु - अनुराधा, चित्रा, रेवती और मृगशिरा
मृदु तीक्ष्ण – कृतिका और विशाखा
कारा - श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पुनर्वसु और स्वाति
एक बात बताइए सर, पुष्य नक्षत्र तो शनि का नक्षत्र हैं और शनि सूर्य का शत्रु, तो फिर अगर रविबार को पुष्य नक्षत्र पड़ जाये तो उसे रविपुष्य योग अर्थार्त सर्व कार्यो में उत्कृष्ट क्यों कहते हैं!
जवाब देंहटाएंअगर कोई क्रूर ग्रह क्षिप्र नक्षत्र का वेध गोचर में कर रहा हो, तो क्या हम क्षिप्र नक्षत्रसे सम्बंधित कार्य कर सकते हैं? या फिर उग्र नक्षत्रो में से जब शुभ ग्रहों का गोचर हो रहा हो तो क्या हम उग्र कार्य कर सकते हैं? क्या नक्षत्रो और महुर्तो में करा गया कार्य कुंडली में उपस्थित योगो से बढ़कर होता हैं जेसे अगर कुंडली में किसी कार्यो में सफलता के योग न हो परन्तु उस कार्य को नक्षत्रो और महुर्तो में करा जाये तो क्या कार्य सफल होगा ? सर्व शक्ति शाली क्या होती हैं कार्य करने का लग्न या फिर नक्षत्र ? अगर हम चार लग्न और चार नक्षत्र में कोई पेड़ लगाये तो क्या होगा ?
जवाब देंहटाएंकार्तिकेय कुमार जी वास्तव में आपका सवाल है कि मुहूर्त से बनाए गए संयोग महत्वपूर्ण है या कुण्डली में प्रारब्ध से होने वाली घटनाएं। दरअसल यह गूढ़ विषय है और लम्बी चर्चा मांगता है। कम से कम इस कमेंट में इस बात का उत्तर नहीं दिया जा सकता। मैंने अपनी पहले की कई पोस्टों में इस बारे में विस्तार से लिखा है और आगे भी कई बार इसे स्पष्ट करना पड़ेगा।
जवाब देंहटाएंसही कहूं तो इस मामले में अब तक कोई एक ठोस राय बना पाना न तो मेरे लिए संभव हो पाया है और न ही मुझसे पूर्व के ज्योतिषियों ने कुछ स्पष्ट लिखा है। फिर भी विश्लेषण हमारे दिमाग में एक सीमा तक इन दोनों अवस्थाओं की भूमिका स्पष्ट कर देता है।
सिद्धार्थ जी नमस्कार!ज्योतिष की दुनिया के इस कम्प्यूटर युग में पाँव रखा ही था,कि आपसे मुलाकात हो गयी!अच्छा लगा आपका ब्लॉग पढकर काफी नयापन है!वैसे आपको प्रत्येक नक्षत्र का विशिष्ट वर्गीकरण करना चाहिए जैसे'शतभिषा'नक्षत्र को ही लें'भिषक्'का अर्थ होता है वैद्य!जब कर्म का विस्तार करने वाला ग्रह इस नक्षत्र से सम्बन्ध करता है तो वैद्यक शास्त्र का काम किया जाता है!इस प्रकार नक्षत्रों के गूढ़ ज्ञान को आप बांटें तो ज्योतिष वर्ग के साथ-साथ साधारण जन मानस के लिए भी हितकर होगा!चर्चाओं का दौर आगे भी जारी रहेगा!जय शंकर!
जवाब देंहटाएंशंकराचार्य जी ब्लॉगिंग जगत में आपका स्वागत है। आपका स्वाद देखकर लगता है कि मुझे अच्छा साथ मिलने वाला है। उम्मीद है जल्द ही आपकी कई अच्छी पोस्टें और अच्छी जानकारियां पढ़ने को मिलेंगी।
जवाब देंहटाएंऑनलाइन मामलों में किसी तरह की सहायता की गरज हो तो जरूर याद कीजिएगा..
अवश्य सिद्धार्थ जी!धन्यवाद!
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