ज्योतिष की कक्षा के दूसरे दिन कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा हुई। ज्योतिष का अध्ययन शुरू करने से पहले मैंने नए विद्यार्थियों को विद्या का परिचय कराना जरूरी समझा। इस क्रम में पहले मैंने यह स्पष्ट किया कि पूर्व नियतता कहां है और ज्योतिष कैसे पूर्व नियति को समझकर फलादेश करने का प्रयास करती है। दूसरे दिन बातचीत का मुख्य बिंदु रहा ज्योतिष की पुस्तकें। हालांकि मैंने अपने ब्लॉग के ही एक पेज पर इस पर विस्तार से लिखने का प्रयास कर रहा हूं। इसी क्रम में केवल इतना बता देता हूं कि मैंने प्रोफेसर कृष्णामूर्ति की एक से छह रीडर, हेमवंता नेमासा काटवे की ज्योतिष विचार माला और देवकी नन्दन सिंह की ज्योतिष रत्नाकर पुस्तकें लाने के लिए कहा है। इसके अलावा दूसरे दिन बातचीत हुई लग्न, ग्रह, नक्षत्र और राशि की टर्मिनोलॉजी की। इसी बहाने इस पोस्ट में मैं इन चारों के बारे में विस्तार से बताने का प्रयास करता हूं।
ग्रह : सिद्धांत ज्योतिष अथवा एस्ट्रोनॉमी के अनुसार सूर्य (जो कि एक तारा है) के चारों ओर चक्कर लगाने वाले पिण्डों को ग्रह कहते हैं। इसी तरह पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगा रहे चंद्रमा को उपग्रह कहते हैं। पर, फलित ज्योतिष में सूर्य और चंद्रमा को भी ग्रह माना गया है। इस तरह सूर्य, बुध, शुक्र, मंगल, वृहस्पति और शनि के अलावा हमें चंद्रमा ग्रह के रूप में मिल जाते हैं। इसके अलावा सूर्य और चंद्रमा की अपने पथ पर गति के फलस्वरूप दो संपात बनते हैं। इनमें से एक को राहू और दूसरे को केतू माना गया है। इनकी वास्तविक उपस्थिति न होकर केवल गणना भर से हुई उत्पत्ति के कारण इन्हें आभासी या छाया ग्रह भी कहा जाता है।
तारा : अपने स्वयं के प्रकाश से प्रकाशित पिण्ड को तारा कहते हैं। जैसा कि एस्ट्रोनॉमी बताती है कि हमारा सौरमण्डल आकाशगंगा में स्थित है। यह 61.3 साल में भचक्र में एक डिग्री आगे निकल जाता है। चूंकि सभी ग्रह सौरमण्डल के इस मुखिया को चारों ओर चक्कर निकालते हैं। अत: पृथ्वी से देखने पर यह अपेक्षाकृत स्थिर नजर आता है।
नक्षत्र : तारों का एक समूह नक्षत्र कहलाता है। आकाश को 360 डिग्री में बांटा गया है। इन्हीं के बीच तारों के 27 समूहों को 27 नक्षत्रों का नाम दिया गया है। हर नक्षत्र का स्वामी तय कर दिया गया है। पहले से नौंवे नक्षत्र तक के स्वामी क्रमश: केतू, शुक्र, सूर्य, चंद्र, मंगल, राहू, गुरु, शनि और बुध होते हैं। इसी तरह यह क्रम 27वें नक्षत्र तक चलता है। हर नक्षत्र के चार चरण होते हैं।
राशि : आकाश का तीस डिग्री का भाग एक राशि का भाग होता है। राशियां कुल बारह हैं। ये क्रमश: मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन हैं। सवा दो नक्षत्र की एक राशि होती है। यानि एक राशि में नक्षत्रों के कुल नौ चरण होते हैं।
इसके अलावा कक्षा के बाकी समय में विद्यार्थियों ने अपनी कई जिज्ञासाओं पर बातचीत की। उन पर अलग पोस्ट बना सकते हैं। सबसे रोचक सवालों में बच्चे का जन्म कब माना जाए और कम से कम कितने समय में ज्योतिष सीखी जा सकती है। ये सवाल भले ही रोचक न लगें, लेकिन इनके जवाब खासे रोचक बन पड़े थे। तीसरी कक्षा में हम राशियों का परिचय प्राप्त करेंगे।
रविवार, अक्टूबर 05, 2025
ज्योतिष कक्षा: दूसरा दिन - ग्रह, तारा, नक्षत्र, राशि
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ANAND AAYA JYOTISH KI ELEMANTRAY BATON KO PADKAR................
जवाब देंहटाएंडॉ. सत्यजीत जी मेरे ब्लॉग के बहुत से पाठक शुरूआती बातें भी पढ़ना चाहते हैं। इस बार ज्योतिष की कक्षा के बहाने कुछ ब्लॉग पोस्ट मिल रहे हैं तो मैंने भी सोचा कि चलो शुरूआती ज्ञान ठेल दिया जाए।
जवाब देंहटाएंआपने पसंद किया इसके लिए आभार...
फिर से पुरानी यादें तजा हुई !
जवाब देंहटाएंबहुत कथिन हे यह विद्धया जी,्फ़िर भी कोशिश करते हे साथ चलने की, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंtisra din ka class kab hoga
जवाब देंहटाएंSri Joshi Ji,
जवाब देंहटाएंMeri ek jigyasha hai, asha hai ki aap uska samadhan karenge....
Jaisak ki apne grahon ke barem main likha, surya ka chakkar prathvi bhi lagati hai, aur prathiv bhi ek grah hai.
Hum prathvi ki gadna graho main kyon nahi karte?