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शनिवार, अक्तूबर 10, 2009

तो चलें समय के उस फलक पर

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आइंस्‍टाइन का एक कोट पढ़ा। अभी कुछ देर पहले तो जैसे दिमाग के हजारों तार एक साथ झनझना गए। उन्‍होंने कहा 'कुछ भी घटित नहीं होता सबकुछ घटित हो चुका है। हम उसे देख सकते हैं अगर टाइम मशीन हो।' यह अंग्रेजी में था, और हो सकता है मूल रूप से जर्मन भाषा में रहा हो, तो इसका हिन्‍दी तक पहुंचते-पहुंचते गलत अर्थ निकल गया हो। लेकिन मुझे यही अर्थ सही लगा। क्‍योंकि वे प्रकाश से तेज रफ्तार होने पर समय से आगे निकल जाने यानि भविष्‍य में पहुंच जाने की बात करते थे। यह भी मैंने सुना ही है।

अब वापस बात करता हूं घटनाओं से पहले ही घटे होने और उनको भविष्‍य में पहुंचकर प्रत्‍यक्ष देखने की। यह तथ्‍य एक ओर भविष्‍य दर्शन की बात करता है तो दूसरी ओर सबकुछ पूर्व नियत होने की। दोनों ही स्थितियां भाग्‍यवाद को बढ़ावा देने वाली दिखाई देती हैं। कई पाठक समझ चुके होंगे फिर भी मैं अपने दिमाग के स्‍तर पर इस बात को और स्‍पष्‍ट करने की कोशिश करता हूं। पहला तथ्‍य कि भविष्‍य दर्शन। जहां हम ज्‍योतिषी भविष्‍य में झांकने की बात करते हैं वहीं आइंस्‍टाइन भविष्‍य को मैटीरियलिस्टिक तरीके से यानि अपने चर्म चक्षुओं से देखने की बात कर रहे हैं। उस भविष्‍य को जिसे हम सामान्‍य तौर पर अज्ञात के रूप में जानते हैं। इसका अर्थ हुआ कि एक निश्‍चत भविष्‍य भी है। और ऐसा कि जिसे देखा और महसूस किया जा सकता है। बस समय से तेज भागने की जरूरत है। हालांकि ज्‍योतिषी भी यही कोशिश करते नजर आते हैं। तरीका भिन्‍न है। ज्‍योतिषी आज के आधार पर गणनाएं करते हैं और भविष्‍य की खिड़की में झांककर देखने का प्रयास करते हैं। यह भी समय से तेज दौड़ने की ही एक प्रक्रिया लगती है। बस अंतर इतना है कि यह काम वर्चुअल होता है।

अब दूसरा पहलू यह कि दोनों ही स्थितियां तभी संभव है कि सबकुछ पूर्व नियत हो। यानि प्री सैट। कब क्‍या और कैसे होना है, किसे क्‍या करना है, किसे क्‍या भोगना है, किसे क्‍या देखना है, किसे क्‍या कहना है, किसे क्‍या काम करना है, किसे खाली बैठे रहना है, किसे घटनाओं का विश्‍लेषण करना है। यहां तक कि किसे खून करना है, किसे खबर बनानी है, किसे मुजरिम को पकड़ना है और किसे सजा देनी है....            सबकुछ।

ऐसे में अगर अपराधी यह कहकर हत्‍या करता है कि न तो मैं मरने वाला हूं न मारने वाला हूं जो करता है वही करता है, सारे सिस्‍टम को उखाड़ देगा। पर एक बंधन यहां फिर भी रह जाता है, वह यह कि गिरफ्तार होना और सजा देना भी पूर्व नियत स्थितियों की श्रेणी में आते हैं। मैं खुद को भी नहीं छोड़ना चाहता, किसी जातक द्वारा प्रश्‍न किया जाना और मेरा जवाब देना, उस जवाब का सही या गलत होना भी पूर्व नियत हो सकता है। ठीक उसी तरह जैसे अपराधी द्वारा अपराध करना और सजा पाना अथवा बचकर निकल जाना :)

ऐसे में मैं यही कह सकता हूं कि कभी चलें समय के उस फलक पर जहां भविष्‍य स्‍पष्‍ट दिखाई देता हो, जहां पता चले कि आज के किए या कराए कर्मों की क्‍या परिणिती हुई साफ दिखाई दे।

क्‍या ख्‍याल है चलें समय के उस फलक पर.... चाहें तो प्रकाश से तेज गति करके या वर्चुअल...

12 टिप्‍पणियां:

  1. आपका कहना सही है सिद्धार्थ. स्टीफन हॉकिंग ने भी अपनी पुसतक में सिद्ध किया है की विश्व में होने वाली (अतीत और भविष्य में भी) हर घटना को क्वांटम भौतिकी के नियमों के अनुसार बताया जा सकता है लेकिन उसका गणित इतना कठिन है की लगभग अनंत गणनाएं करनी पड़ेंगी. यह वर्तमान विज्ञानं के लिए संभव नहीं है.

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  2. आपकी पोस्ट पढ कर द बट्टर-फ़ाई इफ़्फ़ेक्ट नामक फ़िल्म याद आ गई - कभी देखियेगा [http://www.imdb.com/title/tt0289879/]

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  3. आइंस्टाईन का निष्कर्ष भी वर्चुअल ही था। अनंत गणनाएँ करना संभव ही नहीं था और न है।

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  4. यह एक बहुत ही आकर्षक संभावना है,,,,सच कुछ भी हो सकता है...अच्छा आलेख ...

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  5. जब बात प्राकॄतिक परिधटनाओं के संदर्भ में कही जा रही हो जैसा कि आईंस्टीन और बकौल निशांत मिश्र, स्टीफन हॉकिंग के निहितार्थ हैं, बात एकदम वाज़िब है।

    विज्ञान के अनुसार प्राकृतिक परिघटनाओं की नियमसंगतता को सिद्धांत के रूप में तभी निरूपित माना जा सकता है, जब यह नियमसंगीतियों के जरिए वस्तुगतता के संदर्भ में निश्चित भविष्यवाणी करने में समर्थ सिद्ध होता है।

    समस्या यह है कि व्यवस्थागत असुरक्षाओं के चलते, अपने व्यक्तिगत भविष्य को जानने की उत्कंठा में मनुष्य इन वैज्ञानिक प्रास्थापनाओं में प्रयुक्त हुए मिलते-जुलते अभीष्ट शब्दों को देखकर, उनका सही निहितार्थ समझे बगैर इनका मनमाफ़िक, अपने मंतव्यों के निहितार्थ उपयोग करने लगता है और समाज में विद्यमान भ्रमों की संपुष्टि के जरिए अपने अस्तित्व की प्रतिष्ठा और दोहन की जुंबिशों में जुट जाता है।

    वैज्ञानिक ज्ञान के जरिए अब तक समझ आई प्राकृतिक परिघटनाओं और दर्शन की ऐतिहासिक भौतिकवादी अवधारणाओं के जरिए सामाजिक परिघटनाओं की भाविष्यवाणियां की जा सकती हैं, और की भी जाती हैं।

    प्राकृतिक परिघटनाओं के सापेक्ष सामाजिक परिघटनाओं के मामले में सटीक भविष्यवाणियां थोड़ी मुश्किल होती हैं, क्योंकि यहां वस्तुगत यथार्थता के साथ, एक और तत्व जुड़ जाता है वह है चेतनागत यथार्थता। इनकी अन्योन्यक्रियाएं निरंतर नये-नये प्रभाव और निर्भरता पैदा करती रहती हैं, और वस्तुगत यथार्थ को निरंतर परिवर्तित करती रहती हैं।

    तो प्राकृतिक परिघटनाओं के मामले में नियमसंगतता को समझने के बाद उनकी नियमों के अंतर्गत तयशुदा नियति से ऐसे भ्रामिक वक्तव्य निकाले जा सकते हैं जिनसे सत्य का आभास भी होता है और जो भ्रमों को और बढा़कर काल्पनिक कपोल कल्पनाओं के नये नये द्वार खोल सकता हो, जैसे यह कथन या निष्कर्ष जो कि यहां निकाला गया है कि सब कुछ पूर्व नियत है और हर चीज़ का एक निश्चित भविष्य है।

    फिर यह संभावना पैदा हो सकती है कि इसे साधारणतयः मनुष्य अपने जीवन और समाज से जोड़कर देखने लगता है, और ऐसी ही चिंतन और निष्कर्षों की और उद्यत होता है जिसे कि आपने बाद में विवेचित किया है।

    और आपकी समझ भी इस घलमपेल को समझ पा रही है, इसीलिए आपके सामने यह अनुत्तरित प्रश्नों और कल्पनाओं को छोड जाती है।

    शुक्रिया।

    समय

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  6. It may be possible but i m not fully
    agree with it.In my aspect futurity comes with randomly means it is dynamic not a static.So no one can fully decide what's a that random number.Only can guess.I have also read the Einstein's statement, i think Einstein want to say knowledge is hide in universe so we have need to invent it.But here future knowledge is bit different.For example in the basis of knowledge you can say age of Earth,Human etc but can't say human activities day by day becoz it is randomly.So it difficult to say that what would be the next number of dice.

    Thanks
    Vinayak

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  7. आलेख रोचक है दिमाग के दरवाजे को किसी नयी दिशा में खोलता है

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  8. समय जी और जोशी जी को धन्यवाद,
    गीता मे कहा है कि कर्म पर तेरा अधिकार है,फल पर नही.और कर्म भी क्या बस options मै से एक चुनना होता है और उस चुनने यही सबसे महत्वपूर्ण है कि आप किस काल खण्ड मे है और आपका ग्यान का,श्री का और शक्ति का स्तर क्या है .अर्थात आप कितने चैतन्य हो,जागरुक हो....साक्षी हो..र्दष्टा हो.तो आप पायेगे कि यदि चैतन्ता नही होती तो पूरा ब्रह्माण एक निश्चित्ता की और ही जाता.अत: चैतन्ता जड-जड के बीच होने वाली क्रियाओ मे परिवर्तन लाकर परिणाम को बदल देती है.(और हा मन भी बदल देती है कारण मन भी जड है).परन्तु वास्तव मे मात्र बहुत लघु उर्जा परिवर्तन ही होता है,ब्रह्माण की तुलना मे.......आशा है आपको भविष्य की कु्छ झलक तो मिल गई होगी.

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  9. Yes it can be possible. I am giving on example how can scientists gives the idea about our future environment like weather forcasting,flood etc.. it's means it is allready happened but we are very back from the time.

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