The Astrology Online

सोमवार, जुलाई 16, 2012

Astrology : Specification of Jatakas Kundali and limitations

ज्‍योतिष : जातक कुण्‍डली की विशेषताएं (और सीमाएं)

Parasharas Astro Consultancy






जातक (Jatak) के सामने कुण्‍डली लेकर बैठे ज्‍योतिषी (Astrologer) के सामने दो चुनौतियां एक साथ होती हैं। एक तो उसे यह प्रदर्शित करना होता है कि वह दुनिया में सबकुछ जानने वाला बंदा है, दूसरा उसका परमात्‍मा से सीधा संबंध है, ऐसे में वह आपके सभी पुराने कर्मों का लेखा-जोखा “सैट” कर देगा। 

एक अकेला ज्‍योतिषी इतनी बड़ी इमेज नहीं बना सकता। जाहिर सी बात है दुनिया के हजारों ज्‍योतिषियों ने मिलकर इस धारणा का पोषण किया होगा और लाखों जातकों ने सहमति में सिर धुने होंगे, तब कहीं जाकर यह धारणा बैठ पाई होगी कि ज्‍योतिषी जातक के भाग्‍य के साथ जैसे चाहे खेल सकता है। सोते को खड़ा कर सकता है, रोते को हंसा सकता है और भी बहुत कुछ। 

जातक कुण्‍डली से कई प्रकार की गणनाएं संभव हैं। आमतौर पर प्रसिद्ध सवालों का विश्‍लेषण जातक कुण्‍डली से किया जाता है। देवकीनन्‍दन सिंह की पुस्‍तक ज्‍योतिष रत्‍नाकर ने बहुत खूबसूरती के साथ इन सवालों को प्रवाह नाम दिया और जीवन के आठ प्रवाह बनाकर यह तय कर दिया कि कौनसी वय का व्‍यक्ति कौनसे सवाल पूछ सकता है और उनके हल कैसे निकाले जाएंगे। 

जीवन की प्रथम तरंग बाल्‍यावस्‍था (Childhood) है। तब अधिकांश सवाल बालारिष्‍ट यानी बचपन में किसी हादसे से मृत्‍यु अथवा अंग भंग की आशंका तो नहीं है, बालक का स्‍वास्‍थ्‍य कैसा रहेगा। फिर पढ़ाई को लेकर सवाल होते हैं, इसके बाद नौकरी, विवाह, संतान, धन, मकान, संतति का विवाह, वृद्धावस्‍था के रोग और आखिर में मृत्‍यु। 

यकीन मानिए अधिकांश जातकों को जो सवाल निहायत निजी (Personal) लगते हैं, वे सबसे कॉमन (Common) सवाल होते हैं। इन्‍हें देखने के लिए निश्चित सिद्धांत हैं। अगर तरतीब से सिद्धांतों का अनुसरण किया जाए और ज्‍योतिषी की अंत:प्रज्ञा सही काम करे तो जवाब भी सटीक आते हैं।

कई बार सही तरीके से चल रही गाड़ी पटरी से उतर जाती है। आमतौर पर ऐसी स्थिति राहू की दशा, अंतरदशा, सूक्ष्‍म अंतर के दौरान आती है। इसके अलावा केतू, चंद्रमा, शनि और मंगल के योग, दुर्योग और दशा-अंतरदशा का क्रम भी ऐसी स्थितियां पैदा करते हैं। यह स्थिति जीवन की किसी भी तरंग के दौरान हो सकती है। पारम्‍परिक भारतीय ज्‍योतिष जिसमें पाराशर से जैमिनी तक के विश्‍लेषण उपलब्‍ध हैं, बताती है कि समस्‍या कहां से शुरू हुई है। 

उपचारों की भूमिका (Role of remedy)

आमजन में यह मान्‍यता बन गई है कि ज्‍योतिषी खराब ग्रहों का उपचार बताने वाला होता है। सही मायनों में देखा जाए तो ज्‍योतिषी भूमिका जातक को उसके अच्‍छे और खराब ग्रहों के बारे में जानकारी देने के साथ ही खत्‍म हो जाती है। पर, जातक इतने भर से संतुष्‍ट नहीं हो सकता। एक बार उसे बता दिया जाए कि अमुक समय से जातक का खराब समय चल रहा है, फलां प्रकार की समस्‍याएं सामने आ रही हैं और आने वाले इतने दिनों तक समस्‍या बनी रहने की आशंका है। 

अब जातक चाहता है कि खराब समय को दुरुस्‍त करने का उपचार ज्‍योतिषी ही बता दे। पारम्‍परिक भारतीय ज्‍योतिष  (Traditional hindu astrology) में जातक के खराब समय को पूर्व जन्‍मों के कर्मों का फल माना गया है। उस काल में जातकों को पूर्व जन्‍मों के कर्मफलों के खराब प्रभाव को कम करने के लिए प्रायश्चित का प्रावधान किया गया। इसके तहत पूजा-पाठ, यज्ञ, हवन और दान का प्रावधान किया गया। 

ऐसा माना गया कि इससे जातक के पिछले जन्‍मों के बंधन छूटते जाते हैं। आज भी अन्‍य किसी उपचार की तुलना में ये उपचार कहीं अधिक प्रभावी नजर आते हैं। हालांकि उपचार की पद्धतियां और इनके प्रभावों का मूल ज्‍योतिष विश्‍लेषण से सीधा संबंध नहीं है, फिर भी जातक का आग्रह दोनों को एक ही श्रेणी में ला खड़ा करता है। 

किसी ऑर्गेनिक रिएक्‍शन (Organic reaction) की तरह ये उपचार भी धीरे धीरे काम करते हैं और जातक की स्थिति में नियमित सुधार करते हुए उसे जीवन में बेहतरी की ओर ले जाते हैं। कुछ जातक अधिक जल्‍दी में होते हैं, वे चाहते हैं कि जिस दिन उपचार बताया जाए, उसी दिन से अब तक हुई समस्‍याओं का समाधान हो जाए। ऐसे में कालान्‍तर में तांत्रिक और लाल किताब जैसे फौरी उपचार प्रचलन में आए।

3 टिप्‍पणियां: