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रविवार, फ़रवरी 05, 2012

ज्‍योतिष और ज्‍योतिषी : अंतरराष्‍ट्रीय सेमीनार

पिछले दिनों भिवाड़ी में आई कास के बैनर तले हुई अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर की सेमीनार में भाग लेकर आया हूं। सेमीनार से लौटने के बाद एक महीने से लगातार व्‍यस्‍त रहा। आज कुछ लिखने का अवकाश मिला है सो सोच रहा हूं कि याददाश्‍त के आधार पर ही सही कुछ रिपोर्टिंग कर देता हूं। 

भिवाड़ी में ब्रह्माकुमारीज का ओम शांति रिट्रीट निश्‍चय ही शांति और सुकून देने वाला स्‍थान है। यहां हुई कांफ्रेंस में दुनियाभर से ज्‍योतिषी जुटे थे। देश के अधिकांश राज्‍यों के ज्‍योतिषियों को करीब से देखा। 

पहले दिन भजन

जयपुर से भिवाड़ी तक बस के जरिए पहुंचने में पूरा समय लगा, तकरीबन पूरा दिन। शाम पांच बजे हम पहुंचे तो हमारा स्‍वागत इत्र और चंदन के मिश्रण से बने टीकों और गेंदे की मोटी मालाओं से किया गया। इसके ठीक बाद भक्ति संध्‍या भजन शुरू हो गया। जयपुर से आए दो गायकों (इनमें से एक के बारे में दावा किया गया था कि वे गजल गायक जगजीत सिंहजी के शिष्‍य हैं) ने खूबसूरत भजन सुनाए। इसके बाद खाना और सोने के लिए रिट्रीट के शानदार कमरों में पहुंचना। 

बीकानेर से भिवाड़ी तक पहुंचने में कहीं ज्‍योतिष या इसका संदर्भ नहीं आया, लेकिन लॉटरी खुली रात को। पता चला कि जिन लोगों को साथ मुझे कमरा शेयर करना है, उनमें से एक आई कास पूना के निदेशक सुहास डोंगरे हैं। डोंगरे साहब के सामान के साथ पड़ी एक ज्‍योतिष मैग्‍जीन देखी तो पता चला कि आईकास पूना ही उसे प्रकाशित कर रहा है। उसी मैग्‍जीन के आखिरी पृष्‍ठों पर करीब दो दर्जन किताबों के बारे में भी पता चला जिन्‍हें सुहास डोंगरेजी ने मराठी भाषा में ही लिखा है। वे वर्ष 1983 से केपी सिस्‍टम का अभ्‍यास भी कर रहे हैं। पेशे से इंजीनियर रहे सुहासजी ने पहले ही परिचय में मुझसे पूछा कि क्‍या करते हो सिद्धार्थ, तो मेरा जवाब था कि ज्‍योतिष करता हूं। 

सुहासजी ने कहा वो तो ठीक है, लेकिन करते क्‍या हो?

खैर, रात आठ बजे हम कमरों में थे और मैं देर तक जागने की मुद्रा में। मेरे उत्‍साह को देखते हुए वृद्ध (कृपया बुरा न मानें) ज्‍योतिषी ने मेरे आग्रह अनुसार चर्चा का दौर शुरू कर दिया। अब तक जितनी सरलता दिख रही थी, वह ज्‍योतिष विषय पर आते ही पांडित्‍य के ओज में तब्‍दील हो गई। बातचीत का जो दौर शुरू हुआ वह इतना तकनीकी है कि यहां चर्चा करने के लिए मुझे दस बारह पोस्‍ट अलग से लिखने पड़ेंगे। इस तरह रात साढ़े बारह बजे सोने से पहले तक हम पर्याप्‍त चर्चा कर चुके थे। आखिर में मैं बोल रहा था और डोंगरेजी के खर्राटों की आवाज सुनाई दे रही थी। 

ध्‍यान करो ध्‍यान

हमें भजन संध्‍या में ही ताकीद कर दी गई थी कि सुबह साढ़े आठ बजे ध्‍यान कक्ष में पहुंचना है जहां सभी ज्‍योतिषी ध्‍यान करेंगे। मैंने अपनी राय रात को ही जाहिर कर दी थी। सो सुबह रजाई के अंदर ही समाधि लगाए रखी। सुहासजी ने मुझे छेड़ा भी नहीं। जागा तो एक और सरप्राइज मेरा इंतजार कर रहा था। एक दिन के अंतर से आईकास हैदराबाद के निदेशक सोमनाथजी आए तो उन्‍हें लेकर सतीशजी हमारे ही कमरे में आ गए। 

स्‍वागत और सम्‍मान रजाई ओढे हुए ही किया। पर्याप्‍त देरी करने के बाद तेजी से तैयार होकर हम मीटिंग हॉल की तरफ रवाना हो गए। हॉल से ठीक पहले एक खुले स्‍थान पर चाय और नाश्‍ते की अनवरत आपूर्ति का प्रबंध किया गया था। सो नाश्‍ता कर हम मीटिंग में पहुंचे। पूरे दिन ज्‍योतिष के तकनीकी सत्र चले। 

शोध पर शोध की जरूरत

om shanti retreatआईकास में ज्‍योतिष के विभिन्‍न विषयों को लेकर विद्यार्थी निरंतर शोध करते रहते हैं। सम्‍मेलन में जो पत्र पढ़े जाने थे, उनमें भी इन शोधों का हवाला दिया गया था। आईकास में इन दिनों गीता के सूत्रों में ज्‍योतिष के रत्‍न खोजने का प्रयास हो रहा है। आईकास के चैयरमेन ने एक सूत्र के आधार पर मरकर फिर से जिंदा होने वाले लोगों के बारे में बताया। 
इसके अलावा प्रश्‍न पद्धति, देश का आर्थिक भविष्‍य, ज्‍योतिष की जरूरत क्‍यों और ऐसे ही कई मुद्दों को लेकर शोध और चिंता का मिला जुला रूप देखने को मिला। मैंने और सुहासजी ने सबसे पीछे वाली कुर्सियों का चुनाव किया और शांति से बैठकर कार्यक्रम देखते रहे और परंपरागत भारतीय ज्‍योतिष की तुलना केपी सिस्‍टम से करते रहे। देखिए हम बैठे भी हैं... तकनीकी सत्रों के बीच एक बार फिर लंच हुआ, शाम को हाइ टी और रात को शानदार खाना। इस बीच ज्‍योतिषियों से मिलने का कार्यक्रम चलता रहा।

2,00,000 कुण्‍डलियों का संग्रह


bissa jiआईकास के अंतरराष्‍ट्रीय उपाध्‍यक्ष सतीश शर्मा जी ने कहा कि बीकानेर से आप अकेले नहीं आए हैं ये बिस्‍साजी भी आए हैं। यह चकित होने वाली बात थी, क्‍योंकि बीकानेर के अधिकांश ज्‍योतिषियों को मैं जानता हूं और उनमें किसी से शिवशंकर बिस्‍साजी की शक्‍ल नहीं मिल रही थी। मैंने विनम्रता से अपनी उलझन बता दी। बदले में मेरा शानदार इंटरव्‍यू हुआ। आखिर कृपा करके बिस्‍साजी ने बताया कि वे बीकानेर मूल के हैं लेकिन पहले कोलकाता (कलकत्‍ता वाले जमाने में) और बाद में मुंबई गए। अब वहीं बस गए हैं। 

मैं सुहासजी के साथ ही था, बातचीत में बिस्‍साजी ने कहा कि उनके पास उनके ग्राहकों की दो लाख कुण्‍डलियों का संग्रह है। बाकी सबकुछ पचाया जा सकता है, यानि गोली, गोला, तोप भी निगल लें, लेकिन पूरा तोपखाना कैसे मुंह में आएगा। सो बात निगल नहीं पाया। मैंने पांच सात या कह दें एक दर्जन बार घुमा घुमाकर बिस्‍साजी से पूछा कि आप दो लाख ही बोल रहे हैं, कम या अधिक तो नहीं। लेकिन बिस्‍साजी निश्चिंत थे। उन्‍होंने कहा पूरी दो लाख। खैर, पहला दिन समाप्‍त होने के साथ ही ज्‍योतिषी कमरों की ओर लौट आए। अगले दिन ज्‍योतिष के ईश्‍वरों में से एक ऋषि पाराशर के धाम के लिए निकलना था, सो लोग अपने बैग तैयार करने में जुटे थे। मेरे पास ज्‍यादा सामान नहीं था, जो था पैक ही था, सो मैं घूमने निकल आया। 

बाहर लॉबी में देखा कि कड़कड़ाती सर्दी में लॉबी में बिछे सोफे और कुर्सियों पर शानदार मजलिस जमी हुई है। बीच में बैठे थे बिस्‍साजी। मैं करीब पहुंचा तब तक पंद्रह बीस कुण्‍डलियां निपटा भी चुके थे। जयपुर के जौहरी बाजार के कुछ सुनार युवक भी घिसते घिसते ज्‍योतिषी बन चुके हैं। उनमें से चार पांच बार बार बिस्‍साजी का टैस्‍ट ले रहे थे, और बिस्‍साजी हर बार पास हो रहे थे। अच्‍छा खेल चल रहा था, मैं वहीं बैठ गया। उनकी रफ्तार देखकर मैंने अनुमान लगाया कि हो सकता है उन्‍होंने इतनी कुण्‍डलियां देख ली हों। रात को वहीं बारह बजे के बाद कमरे में पहुंच पाया।

4 टिप्‍पणियां:

  1. जयपुर के जौहरी बाजार के कुछ सुनार युवक भी घिसते घिसते ज्‍योतिषी बन चुके हैं।

    :)

    mai bhi thodi aisi jyotish hu..par kundli me nahi mai rashi se logo ke janne ki koshish karti hu.. rashi ke vishay me padhne me muje bahut dilchaspi raheti hai..mai har rashi valo ko bahut dhyan se padhti hu..

    aage ki bat likhne me vapas ek mahina na laga dena sidhdharthji hame intjar rahega...

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  2. conferences and seminars are producing astrologers/tantrik. itz really good, but think seriously that mass of this group is what actually doing (beside commercial exploitation)for the promotion of secret sciences.
    my aim is not to heart anybody. others may not convince with my verdict ion. they may plz leave this comment.
    good luck
    gopal raju
    (scientist, writer n occultist)
    www.astrotantra4u.com
    www.gopalrajuarticles.yolasite.com

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  3. यह बढ़िया रहा - "क्‍या करते हो सिद्धार्थ, तो मेरा जवाब था कि ज्‍योतिष करता हूं। सुहासजी ने कहा वो तो ठीक है, लेकिन करते क्‍या हो।"

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