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गुरुवार, अक्तूबर 13, 2011

पाखण्‍डी तर्क और ईश्‍वर की आवधारणा

एक नास्तिक प्रोफेसर दर्शनशास्‍त्र की कक्षा में अपने छात्रों से चर्चा कर रहे थे। विषय था ईश्‍वर के संबंध में विज्ञान की समस्‍या। प्रोफेसर ने नए विद्यार्थियों में से एक को खड़ा किया और पूछा...

प्रोफेसर : तो क्‍या तुम ईश्‍वर में यकीन करते हो?

विद्यार्थी : बिल्‍कुल, सर।

प्रोफेसर : क्‍या ईश्‍वर अच्‍छे हैं?

विद्यार्थी : यकीनन।

प्रोफेसर : क्‍या ईश्‍वर में सभी शक्तियां निहित हैं?

विद्यार्थी : हां।

प्रोफेसर : मेरा भाई कैंसर से मर गया, उसने ईश्‍वर से खुद को बचाने की प्रार्थना की थी। हम किसी आम व्‍यक्ति को भी पुकारें तो वह मदद के लिए आता है, लेकिन मेरे भाई की सहायता के लिए ईश्‍वर नहीं आए।

विद्यार्थी चुप रहा...

प्रोफेसर : तुम्‍हारे पास कोई जवाब नहीं है ?, ठीक है मेरे युवा दोस्‍त दोबारा शुरू करते हैं, क्‍या ईश्‍वर अच्‍छे हैं?

विद्यार्थी : हां।

प्रोफेसर : क्‍या शैतान अच्‍छा है?

विद्यार्थी : नहीं।

प्रोफेसर : शैतान कहां से आते हैं?

विद्यार्थी : ईश्‍वर के जरिए...

प्रोफेसर : बिल्‍कुल सही, बेटा, बताओ क्‍या दुनिया में बुराई है?

विद्यार्थी : हां।

प्रोफेसर : ईश्‍वर ने हर चीज बनाई है, और बुराई हर जगह है, क्‍यों ?

विद्यार्थी : हां।

प्रोफेसर : तो बुराई को किसने जन्‍म दिया ?

(विद्यार्थी ने कोई जवाब नहीं दिया)

प्रोफेसर : दुनिया में बीमारी, मौत, घृणा और गंदगी जैसी भयावह चीजें भी हैं?

विद्यार्थी : हां, सर।

प्रोफेसर : उन्‍हें किसने बनाया है?

(विद्यार्थी के पास कोई जवाब नहीं था)

प्रोफेसर : विज्ञान कहता है कि दुनिया को महसूस करने के लिए आपने पास पांच संवेदक हैं। इन्‍हीं से आप अपने आस पास की दुनिया को देखते और समझते हैं। बेटा, बताओ क्‍या तुमने कभी ईश्‍वर को देखा है?

विद्यार्थी : नहीं, सर।

प्रोफेसर : हमें बताओ, क्‍या तुमने कभी ईश्‍वर की आवाज सुनी है ?

विद्यार्थी : नहीं, सर।

प्रोफेसर : क्‍या तुमने उसे कभी महसूस किया है, उसका स्‍वाद या सुगंध ली है ? अपने किसी भी जैविक संवेदक से ईश्‍वर को महसूस किया है?

विद्यार्थी : नहीं, सर। मेरा ऐसा कोई अनुभव नहीं है।

प्रोफेसर : और तुम, अब भी ईश्‍वर में यकीन करते हो ?

विद्यार्थी : हां।

प्रोफेसर : अनुभव से प्राप्‍त ज्ञान, स्‍वाद और प्रदर्शन के तरीकों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि ईश्‍वर का कोई अस्तित्‍व ही नहीं है। इस पर तुम क्‍या कहोगे, बेटा ?

विद्यार्थी : कुछ नहीं। मैं केवल उस पर विश्‍वास करता हूं।

प्रोफेसर : हां, विश्‍वास। और यही विज्ञान के साथ समस्‍या है।

विद्यार्थी : प्रोफेसर, क्‍या उष्‍मा (HEAT) जैसी कोई चीज होती है ?

प्रोफेसर : हां।

विद्यार्थी : और शीत (COLD) जैसी कोई चीज होती है ?

प्रोफेसर : हां।

विद्यार्थी : नहीं, शीत कुछ नहीं होती।

(अब कक्षा में गंभीरता आ गई)

विद्यार्थी : सर, आपके पास उष्‍मा हो सकती है, बहुत सारी उष्‍मा या कम उष्‍मा, लेकिन शीत जैसा कुछ नहीं होता, शून्‍य से नीचे के तापमान पर जाया जा सकता है, लेकिन एक सीमा के बाद वहां से भी आगे जाने की गुंजाइश नहीं है। शीत केवल उष्‍मा की अनुपस्थिति के बारे में जानकारी देता है। इसी कारण हम शीतलता को माप नहीं सकते। उष्‍मा ऊर्जा है, लेकिन शीतलता इसका विलोम नहीं है। शीतलता केवल उष्‍मा की अनुपस्थिति है।

(अब कक्षा में इतनी शांति थी, कि सुई के गिरने की आवाज भी सुन सकते थे)

विद्यार्थी : प्रोफेसर, अंधेरा क्‍या है, क्‍या ऐसी कोई चीज होती है ?

प्रोफेसर : हां, अंधेरा होता है, अगर अंधेरा न हो तो फिर रात क्‍या है ?

विद्यार्थी : आप एक बार फिर गलत हैं सर, अंधेरा किसी चीज की अनुपस्थिति के बारे में बताता है। आपके पास धीमी या तेज रोशनी हो सकती है, लेकिन आपके पास अंधेरा नहीं हो सकता। अगर आप अंधेरा बना सकते तो अंधेरे को अधिक या कम अंधेरे में भी तब्‍दील कर सकते। क्‍यों है ना ?

प्रोफेसर : तो, युवक तुम कहना क्‍या चाहते हो ?

विद्यार्थी : सर, मेरा मत है कि आपके दार्शनिक सिद्धांत में कुछ गलत है।

प्रोफेसर : गलत ? क्‍या तुम बता सकते हो कैसे ?

विद्यार्थी : सर, आप द्वैत के सिद्धांत पर काम कर रहे हैं। आप तर्क देते हैं कि यह जीवन है और यह मृत्‍यु है। अच्‍छे ईश्‍वर हैं और बुरे ईश्‍वर हैं। आप ईश्‍वर को इस तरह देख रहे हैं जैसे किसी परिमित वस्‍तु को देखते हैं, जिसे हम नाप या माप सकते हैं। सर, विज्ञान तो एक विचार तक की व्‍याख्‍या नहीं कर सकता। विज्ञान इलेक्ट्रिसिटी और मैग्‍नेटिज्‍म का इस्‍तेमाल करता है, लेकिन कभी इन्‍हें देखा नहीं है। हम अगर मृत्‍यु को जीवन के विलोम के रूप में देखते हैं तो इस तथ्‍य को नकार देते हैं कि मृत्‍यु का कोई अस्तित्‍व नहीं है, यह केवल जीवन की अनुपस्थिति है।

अब मुझे बताएं प्रोफेसर, आप जिन छात्रों को पढ़ा रहे हैं, क्‍या वे बंदरों का विकसित रूप हैं ?

प्रोफेसर : अगर तुम प्राकृतिक उद्वविकास प्रक्रिया की बात कर रहे हो तो, हां, मैं उन्‍हीं बंदरों को पढ़ा रहा हूं।

विद्यार्थी : क्‍या आपने कभी उद्वविकास को अपनी आंखों से देखा है ?

(प्रोफेसर ने अपना सिर हिलाया और मुस्‍कुराए, अब वे समझ रहे थे कि बह का विषय किस ओर जा रहा है)

विद्यार्थी : अब जबकि किसी ने भी उद्वविकास की प्रक्रिया को नहीं देखा है और हम इसे साबित भी नहीं कर सकते, तो कहीं ऐसा तो नहीं है कि आप हमें केवल अपने विचार पढ़ा रहे हैं, सर ?, आप प्रोफेसर हैं या धर्मप्रचारक?

(कक्षा में खुसफुसाहट शुरू हो गई)

विद्यार्थी : कक्षा में क्‍या कोई ऐसा है जिसने प्रोफेसर का दिमाग देखा हो?

(कक्षा में जोरदार ठहाका गूंजा)

विद्यार्थी : कक्षा में किसी ने प्रोफेसर के दिमाग को सुना है, महसूस किया है या किसी ने प्रोफेसर के दिमाग को दुआ या सूंघा है?, ऐसा कोई नहीं है जिसने ऐसा किया हो। ऐसे में विज्ञान के स्‍थापित सिद्धांतों के अनुसार हम कह सकते हैं सर, कि आपके पास दिमाग नहीं है। मैं पूरे आदर के साथ पूछना चाहूंगा कि ऐसे में हम आपके भाषण पर कैसे यकीन करें?

(अब कक्षा पूरी तरह शांत थी, प्रोफेसर उसे विद्यार्थी के भावहीन चेहरे को ताक रहे थे)

प्रोफेसर : मुझे लगता है कि तुम्‍हें इसे विश्‍वास के आधार पर मानना चाहिए, बेटा।

विद्यार्थी : यही बात मैं कह रहा हूं... इंसान और ईश्‍वर के बीच का संबंध भी विश्‍वास पर आधारित है। इसी से सभी चीजें चल रही हैं और जीवित हैं।

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मैंने फेसबुक पर कहीं ये स्‍टोरी पढ़ी थी। मूलत: अंग्रेजी के इस पीस को हिन्‍दी में अनुवाद किया है। उम्‍मीद है आपको पसंद आया होगा। पिछले कई दिनों से फेसबुक पर छद्म रेशनलिस्‍ट ज्‍योतिष को लेकर ऐसे ही भ्रम पैदा कर रहे हैं। ज्‍योतिष की शब्‍दावली और सामान्‍य शब्‍दावली के अंतर को लेकर कई लोग खुद को आम आदमी का समर्थक और सही किताब बेचने वाला साबित करने की कोशिश कर रहे हैं। उनका कथन है कि फलित ज्‍योतिष है ही नहीं। यह लेख उसका सटीक जवाब है।

फेसबुक का यह आलेख अंत में कहता है कि यह वार्ता देश के पूर्व राष्‍ट्पति मिसाइलमैन एपीजे अब्‍दुल कलाम (विद्यार्थी) और उनके प्रोफेसर के बीच हुई थी। मैं नहीं जानता कि डॉ. कलाम ज्‍योतिष को मानते हैं या नहीं, लेकिन ईश्‍वर और उसमें विश्‍वास को लेकर जो करारा जवाब है, ठीक यही जवाब ज्‍योतिष को लेकर भी है। आप क्‍या कहते हैं...

2 टिप्‍पणियां:

  1. koi eisi taqat jroor hei jis pr hum agar apni atma se schey dil se yakeen krte hein to humarey kam hotey hein us taqat ka nam hi parmatma hei koi usey allah ke roop mein dekhta hei koi jesus ke roor mein ye sb ka apna apna nazriya hei pr koi eisi shkti jroor hei jisey yad krne pr humarey kam hotey hein ... mere pas eisey bahut se experiences hein

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