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गुरुवार, अप्रैल 28, 2011

जातक की भुजिया चखने की बीमारी

जो जातक पहली बार कुण्‍डली दिखाता है वह इतना जैनुइन होता है कि उसे जो कुछ बताते हैं वह सटीक पड़ता हुआ महसूस होता है। मैं यहां कह रहा हूं कि महसूस होता है। कई बार फलादेश सटीक होते हैं तो कई बार जातक भी 'हां' कहने की मुद्रा में ही रहता है। दूसरी तरफ ऐसे जातक होते हैं जो सैकड़ों ज्‍योतिषियों को कुण्‍डलियां दिखा-दिखाकर और चूरण छाप किताबें पढ़कर ऐसे हो जाते हैं कि उन्‍हें डील करने और कुतुबमीनार से छलांग लगा देने में कोई खास अन्‍तर नहीं लगता। ऐसे जातक भाग्‍य के भरोसे ही सबकुछ पा लेने की हसरत पालने लगते हैं। इसी से शुरू होता है एक के बाद दूसरे ज्‍योतिषी के दहलीज पर कदम रखने का सिलसिला, जो कुण्‍डली के फट जाने पर भी नहीं रुकता।

 मैं अपनी बात स्‍पष्‍ट करने से पहले कुछ बात बीकानेरी भुजिया के बारे में बताना चाहूंगा। बीकानेर में भुजिया मोठ की दाल के बनते हैं। मोठ की दाल उत्‍तरी पश्चिमी राजस्‍थान की विशिष्‍ट दाल है। जाहिर है कि यह दाल देश के अन्‍य हिस्‍सों में पैदा नहीं होती। इस दाल से भुजिया बनाने के कई तरीके हैं। शुद्ध दाल के भुजिया, दाल में थोड़ी या अधिक मात्रा में चावल मिलाकर बनाए गए भुजिया, मुल्‍तानी मिट्टी मिलाकर बनाए गए भुजिया। मसालों और उपयोग में ली जाने वाली सामग्री के अलावा बनाने के तरीकों के आधार पर भी भुजिया चार तरह के होते हैं। महीन, तीन नम्‍बर, मोटे और डूंगरशाही। मसालों और आधारभूत उत्‍पादों के वैरिएशन और बनाने के इतने तरीकों के चलते हर भुजिया कारीगर की अपनी शैली बन जाती है। ऐसे में बीकानेरी लोग हमेशा एक ही दुकान के भुजिया खाने के बजाय अलग-अलग दुकानों के भुजिया चखते रहते हैं। 

Bhujia

ये तीन नम्‍बर भुजिया हैं... एक क्‍वालिटी इससे महीन और एक क्‍वालिटी इससे मोटी होती है...

अलग-अलग ज्‍योतिषियों के पास जाने वाले जातकों को मैं ऐसे ही भुजिया चखने वाले लोगों की श्रेणी में रखता हूं। पहली बार किसी ढंग के ज्‍योतिषी के पास पहुंचकर उपचार कर लेने वाले जातक को अपनी जिंदगी में प्रभावी बदलाव दिखाई देते हैं तो वह बार-बार उसी ज्‍योतिषी के चक्‍कर लगाना शुरू कर देता है। आखिर एक दिन वह ज्‍योतिषी हाथ खड़े कर देता है। जातक को भी ज्‍योतिषी का पुराना उपचार और उससे आए बदलाव उकताने लगते हैं। ऐसे में वह दूसरे ज्‍योतिषी के पास जाता है। दूसरा ज्‍योतिषी दूसरे कोण से कुण्‍डली देखता है। नए उपचार बताता है और उससे होने वाले नए लाभ बताता है। कई दिन में दूसरे ज्‍योतिषी का स्‍वाद भी 'जीभ' खराब करने लगता है तो जातक तीसरे, चौथे और ऐसे बहुत से ज्‍योतिषियों के पास जाता रहता है। इस बीच जातक को लगता है कि उसे भी कुण्‍डली की समझ पड़ने लगी है। आखिर अपनी कुण्‍डली का विश्‍लेषण करने के लिए वह एक किताब खरीद लाता है। अगर बहुत महंगे ज्‍योतिषियों से पाला पड़ा हुआ होता है तो वह शानदार और महंगी किताबें खरीदता है और अगर सस्‍ते और मुफ्त के ज्‍योतिषियों से लाभान्वित हुआ होता है तो सौ या दो सौ रुपए की किताबें खरीदकर 'पढ़ाई' शुरू कर देता है। इसके बावजूद फलादेश न कर पाता है न समझ पाता है, लेकिन प्राथमिक ज्ञान हासिल करने के बाद नए ज्‍योतिषियों से बहस करने के लिए तैयार हो जाता है।

करीब बीस ज्‍योतिषियों के चक्‍कर लगाने और पांच चूरण छाप ज्‍योतिष की किताबें पढ़ने के बाद मेरे पास फटी हुई कुण्‍डली लेकर पहुंचे जातक को देखकर ही मेरा माथा ठनक जाता है। अपने अंतर्ज्ञान से मुझे पहले ही भान हो जाता है कि अब यह कई दिन तक मुझे खून के आंसू रुलाएगा। ऐसे जातक आमतौर पर क्‍या सवाल करते हैं, इसकी एक बानगी आप भी देखिए...

- मेरी तुला लग्‍न की कुण्‍डली है, बुध की दशा में गुरु का अन्‍तर कैसा जाएगा। (भैया जैसा किताब में लिखा है वैसा ही जाएगा...)

- फलां सिंहजी ने उपचार बताया था, उससे पहले तो फायदा हुआ, लेकिन अब उपाय बेअसर साबित हो रहे हैं (फलासिंह जी को ही वापस जाकर क्‍यों नहीं पूछते)

- मेरा 2000 से 2007 तक का पीरियड को शानदार गया, लेकिन पिछले चार साल से कोई खास लाभ नहीं हो रहा है... शायद उपचार काम नहीं कर रहे (क्‍या अच्‍छा समय हमेशा बना रहेगा, या रोज लॉटरी खुलेगी)

- फलां किताब में लिखा है कि शनि और सूर्य साथ होने से मेरी अपने पिता से लड़ाई रहेगी, लेकिन मेरी तो उनसे बातचीत ही नहीं होती (तो शनि और सूर्य के सम्‍बन्‍ध को ढंग से समझने के लिए और किताबें पढ़ने की जरूरत है)

- थोड़ा बहुत समय बीच में ठीक गया था, लेकिन प्रभावी उपचार नहीं होने से मेरा पूरा समय अच्‍छा नहीं जा रहा (मैं ब्रह्मा हूं आओ पूरा समय ठीक कर देता हूं, बताओ कहां-कहां गड़बड़ लग रही है)

- काम तो कोई नया शुरू नहीं किया, यही नौकरी है, लेकिन पैसा कब होगा मेरे पास (जादू की छड़ी घुमाने भर की देरी है, जब पात्र ही नहीं होगा तो ऊपर वाला भी नेमत नहीं बरसा पाएगा)

- ये मेरी पत्‍नी की कुण्‍डली है, वह हमेशा घर में तनाव बनाए रखती है (और आपकी कुण्‍डली क्‍या कहती है --- एक हाथ से ताली बजाकर दिखाओ)

इसके अलावा कुछ सवाल ऐसे होते हैं जिनका दूसरा छोर कहीं नहीं होता जैसे -- आप ही कुछ बता दो, -- आपको मेरी कुण्‍डली में क्‍या दिखाई देता है, -- मेरे भाग्‍य में क्‍या लिखा है, -- फलां सिंहजी ने यह बताया था, वह अब तक तो नहीं हुआ, आपका क्‍या कहना है, -- आपने अब तक जितना अध्‍ययन किया है उसके अनुसार जो भी समझ में आए सब बता दो (ये आमतौर पर फोकटिया जातक होते हैं, इन्‍हें बताया जाए कि एक प्रश्‍न का जवाब ग्‍यारह सौ रुपए मात्र है तो दोबारा जिंदगी में दिखाई नहीं देंगे)

भुजिया चखने के इन मरीजों का आज तक मुझे तो कोई इलाज नहीं मिला है, आपके पास कोई इलाज हो तो बताइएगा.. मुस्‍कान 

15 टिप्‍पणियां:

  1. मुझे तो सच मे भुजिया देख कर मुंह मे पानी आ गया

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  2. भुजिया और जातक- बड़ा करारा मगर कुरकुरा स्वाद रहा पूरी पोस्ट का... :)


    जबरदस्त विश्लेषण!!

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  3. बहुत बढ़िया लिखा,, मजा आ गया, ज्योतिषिय जातकों के बारे में तो जो आपने लिखा वो सही ही होगा,, , पर भुजिया के प्रकारों के बारे में जानकर बढ़िया लगा,, अब तो बीकानेर से आने वाले भाइयों से चारों तरह की भुजिया मंगवा कर ही रहा जाएगा,,,।

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  4. अरुण प्रकाश जी ने कहा...


    आप ने तो हद ही कर दी ज्योतिष को भजिया ही बना डाला लेकिन ज्योतिषियों के
    बारे में क्या कहेगे जो अलग अलग रत्न उपाय जैसे काले भैंसा को काला चना
    खिलाये बन्दर को गुड व गैया को गेहूं दे ताम्बे के सिक्के बहते पानी में
    डाले चूल्हे की राख को दूध से ठंढा करे (क्या ये सब उपाय आज संभव है ख़ास
    तौर से बड़े शहरों में )आदि आदि बता कर माथा खराब करते है
    दो ज्योतिशाचार्यो के उपाय एक जैसे नहीं होते यही मुख्य गड़बड़ी है जहा
    तक जातको का प्रश्न है जो एक बार भजिया चखा वह तो दुकानों के चक्कर
    लगाएगा ही मै खुद ही भुक्तभोगी हूँ आज तक किसी jyotishagyo द्वारा सही
    तरह से रत्नों की प्राण प्रतिष्ठा ही करते नहीं देखा और ना ही गृह जप /या
    इष्ट की विशेष पूजा पर ही बल देते हुए कोई सलाह देते ही देखा है या तो
    पन्ना पुखराज नीलम पहनाने की बात होगी या यही घिसे पिटे उपाय सबसे ज्यादा
    ज्योतिष का कबाड़ा व भजिया का स्वाद खराब ये टी वी वाले बाबा ज्योतिषी कर
    रहे है स्वयं ही ढपोरशंख की तरह कई माला व त्रिपुंड लगाए तथा कई रत्नों
    की अंगूठी हाथ में पहन कर ये क्या सटीक उपाय बता सकते है मुझे तो यह ताना
    बाना ही हास्यास्पद लगता है लेकिन ये भजिया चखने वाले भी जरूरी है दूकान
    दारो के लिए परेशानी यह है की ज्यादा प्रश्न किसी एक्सपर्ट से ना पूछो वो
    चाहे डाक्टर हो अभियंता हो या ज्योतिष का जानकार सभी को मूर्ख व अल्पग्य
    श्रोता ही पसंद आते है।

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  5. डॉ. अखिलेश मिश्रा जी ने कहा...

    Very True , I have great respect for astrology , and since last 20 years I was continuing my practice , but now I have discontinue , because Bhujia type people screwed me lot , so your story is very true and Astrological lover should not give a hard time to An Astrologers.


    Dr Mishra
    Toronto

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  6. इष्‍ट देव सांस्‍कृताययन ने बज पर लिखा...


    bhujiya chakhane ki bimari wale ye jatak sirf jyotishiyon ke paas hi nahi jate joshi ji, har peshevar ka pala inse padta hai. inka ilaj ek hi hai aur wo hai ki bina fee lie kundali chhun me paap lagta hai ji, pahle daxina rakh do.

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  7. अब यह नहीं समझ आ रहा कि जातकी को ध्यान दें या बीकानेरी भुजिया पर मन एकाग्र करें!
    बाकी हमारा अपना परिचय है कि दर्जा एक में भी नहीं पंहुचे हैं बतौर जातक और भुजिया के नाम पर जानते हैं हल्दीराम/बीकाजी को! :)

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  8. इष्ट देव जी की राय अनुकरणीय है। सही है ज्योतिष की पुस्तकों में भी हेतू के बारे में लिखा है। अगर आप फ्री कुंडली देखते हैं तो ज्योतिष का मजाक ही उड़ता है। जरूरतमंद की मदद हमेशा की जा सकती है, इसमे कोई शक नहीं।

    नितिन माथुर

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  9. wah wah...............kya majedaar post hai ..........aapko bahut bahut badhai................................

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  10. aapkee post se ek baar fir saf ho gya ki kisee bhee cheej kee ati vyakti ko uphasaspd bna detee hai aapka tark theek hai fir bhee khungree ki kripya aise logon ke prti bhee shanubhuti rakhen.mera vyktigt mt hai ki jyotish ya docter ke paas koi museebt jadaa heejata hai

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  11. प्रतिभा मिश्रा जी आप सही कहती हैं कि समय खराब आता है तभी लोग चिकित्‍सक या ज्‍योतिषी के पास जाते हैं, लेकिन एक बार समय में आंशिक सुधार होने या हमारी भाषा में कहूं कि गाड़ी के पटरी पर आ जाने के बाद भी कई लोग खाली समय का उपयोग ज्योतिषियों के यहां चक्‍कर निकालने में लगाते हैं।

    उन लोगों के बारे में आप क्‍या कहेंगी। अच्‍छा बताएं.. पिछली बार आप जब बीमार पड़ी थी तब क्‍या आपने मेडिकल की पढ़ाई शुरू कर दी थी। अगर नहीं तो ज्‍योतिष के प्रति लोगों का ऐसा दृष्टिकोण क्‍यों है कि एक बार समस्‍या आए और कोई ज्‍योतिषी उसका उपचार कर दे तो, जातक खुद किताबें लाकर पढ़ना शुरू कर देता है। विषय के विस्‍तार के लिए नहीं बल्कि खुद की कुण्‍डली देखने के लिए। अब वह उलझता जाता है और समस्‍या बढ़ाता है ज्‍योतिषी की :)

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  12. सिद्धार्थ जी आप भुजिया बनाने का ज्ञान कब से बाटने लगे, लगता हैं ज्योतिष में आपका इंटरेस्ट ख़तम हो गया ? शायद भुजिया और चाय की दुकान खोलने का प्लान कर रहे हैं ! आप दुकान खोलिए हम जरुर आयेंगे चाय पीने और आपकी भुजिया खाने !

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  13. कार्तिकेय जी उम्‍मीद है आप भी भुजिया चखने वाले जातकों में शामिल होने का ख्‍वाब नहीं रखते.... आप खुद एक ज्‍योतिषी है कभी भी मेरे घर चाय पीने और भुजिया खाने आ सकते हैं... लेकिन ज्‍योतिष के भुजिया तो आपको भी नहीं चखाउंगा।

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  14. जय हो महाराज की और भुजिया बीकानेर की।

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