इस बारे में बताने से पहले मैं बीकानेर की आबोहवा के बारे में बताना चाहूंगा। मैंने अपने विद्यार्थियों को भी यही बताया था। बीकानेर उत्तरी पश्चिमी राजस्थान का बिल्कुल सूखा प्रदेश है। किसी जमाने में यहां पाताल तोड़ कुएं खोदकर पानी निकाला जाता था। तापमान शून्य के करीब और पचास डिग्री तक पहुंचता है। ऑफीशियली तो यह शून्य से 49.5 डिग्री तक ही गया है, लेकिन बाहर सड़क पर इससे कहीं अधिक होता है। हवा में नमी एक प्रतिशत से पचास प्रतिशत तक होती है। साल में कभी-कभार सत्तर या अस्सी प्रतिशत तक पहुंचती है। वह भी बारिश के ठीक बाद। बारिश के मौसम में बीकानेर सबसे सुहावना स्थान है, क्योंकि यहां धोरों में पड़ी बारिश की बूंदें ठण्डी हवाएं लेकर आती हैं, उमस नहीं। इसके अलावा खुला स्थान। पिछली जनगणना तक तो यहां बहुत से इलाकों में सौ लोग भी प्रति एक किलोमीटर में नहीं थे। शहर के बीचों-बीच की आबादी को छोड़ दें तो कॉलोनियों में अब भी कमोबेश ऐसी ही स्थिति लगती है।
अब बात करते हैं यहां की पुरानी हवेलियों की। इनकी बात इसलिए कि मॉर्डन साइंस आमतौर पर अनुभव से मिले परम्परागत ज्ञान को नकारने की कोशिश करता है। मैं किसी एक आदर्श हवेली के बारे में बात करूं तो इसका अग्र भाग जमीन से करीब चार फीट ऊंचा मिलेगा। पांच-सात सीढि़यां चढ़कर जब आप घर में दाखिल होते हैं उससे पहले आपको बरामदा दिखाई देगा। घर के मुख्य द्वार के आगे कुछ स्थान को छोड़ दिया जाता है। इसके बाद आती है साळ। इसे आमतौर पर दीवानखाने या ड्राइंगरूम की तरह काम में लेते हैं। अगर पूर्वमुखी हवेली है तो घर में घुसते ही बांयी ओर चौका मिलता है। यह खुला होता है। आंगन एक से डेढ़ फीट तक नीचा और घर के बीचों बीच मिलेगा। आंगन से पहले दीवानखाने के नीचे एक गुंभारिया या अंडरग्राउंड होता है। इसका एक दरवाजा घर के अंदर और एक दरवाजा बाहर गली में खुलता है। दांयी ओर बने दीवानखाने के ठीक पीछे पूजाघर और परिण्डा यानि मटकी रखने का स्थान मिलेगा। इसके बाद भीतर की ओर तीन कमरे एक कतार में। इनमें से दक्षिणी पश्चिम दिशा में एक ओरा होता है। आमतौर पर इसे मास्टर बैडरूम की तरह इस्तेमाल किया जाता है। रसोई और मास्टर बैडरूम के बीच सीढि़यां मिलेंगी। एक और बात घर में कहीं भी लैट्रिन नहीं मिलेगा। इसके लिए अलग से बाड़ा यानि ऐसा स्थान होगा जो घर से बिल्कुल जुदा होगा।
बीकानेर में पिछले कुछ सालों में जो नए घर बन रहे हैं उनमें अंडरग्राउंड नहीं बनाया जा रहा है। इसका प्रमुख कारण है सीलन। इंदिरा गांधी नहर के कारण घरों में बेतहाशा पानी आता है। यह पानी नाली और गली में बिखरता है। अंतत: सीलन का कारण बनता है। पहले के जमाने में अंडरग्राउंड में सीलन की समस्या कम थी।
भई अपन तो बीकानेर नहीं गए। पर इतना जरूर जानते हैं कि पुराने समय में मकान मौसम के मिजाज के हिसाब से बनाए जाते थे। ये सज है कि 7 की जगह 12-14 फुट की छत होने पर गर्मी कम लगती है। घर को बाहर की सड़क से कुछ उंचा भी होना चाहिए। जहां तक अंडरग्राउंड की बात है वो सीलन वगैरह की स्थिती जानकर ही बनानी चाहिए। हो सकता है आपके शहर के लिए क्या सही होगा इसकी जानकारी भवन निर्माण विभाग से सही मिल सके। हो सकता है उन्होने पूरे जिले का सर्वे किया हो औऱ उसके हिसाब से नक्शे और घर बनाने की सावधानियां निर्धारित कर रखी हों। वैसे इस बात की सौ फीसदी गारंटी है, क्योकि दिल्ली की मिट्टी की हर सेंटीमीटर की जांच हो चुका है. ये अलग बात है कि जो अच्छे सरकारी काम होते हैं उनकी तरफ जनता ध्यान नहीं देती। मै अपना मकान बनवाने जा रहा हूं औऱ मेरे घर की छत भी कम से कम 10 फुट से ऊपर ही होगी।
जवाब देंहटाएंआपने तो एक उदाहरण से लगभग सभी घरों का वर्णनं कर दिया ,पहले के घरों में मुख्य दरवाजे,सीढियां ,पलिंडा और रसोई का एक निश्चित क्रम होता था जो वास्तु के हिसाब से भी सही था!फिर घर में आटा चक्की और मूसल रखने का भी विधान था.....बहुत अच्छी जानकारी दी आपने!!
जवाब देंहटाएंये भी एक जानकारी रही!
जवाब देंहटाएंएक अच्छी जानकारी
जवाब देंहटाएंजब ग्राउंड होगा तभी तो अंडरग्राउंड होगा.
जवाब देंहटाएंजानकारी बढाती रचना
मॉर्डन साइंस आमतौर पर अनुभव से मिले परम्परागत ज्ञान को नकारने की कोशिश करता है।
जवाब देंहटाएंयही तो विडंबना है .. यदि माडर्न साइंस परंपरागत ज्ञान के साथ तालमेल बनाकर चलता .. तो लोगों की जीवनशैली बहुत ही अच्छी होती !!
achchhi jankari.
जवाब देंहटाएंअंडरग्राउंड हो तो जगह बहुत बच जाती है,कारे वगेरा भी खडी करने के लिये, ओर गर्मी से राहत पाने के लिये भी जरुरी है, लेकिन अंडरग्राउंड बनाने का तरीका ठीक होना चाहिये यनि ईंट नही सिमेंट की दिवारे हो, फ़र्श भी मोटी तह का हो, ओर हवा आने जाने की उचित व्यव्स्था हो तो अंडरग्राउंड बहुत काम आता है.
जवाब देंहटाएंक्या ग्राउंड फ्लोर और उपरी फ्लोर के रहने वालों पर वास्तु का प्रभाव पड़ने में कोई अंतर होता है। यह सवाल बेसमेंट में रहने वालों के बारे में भी पूछा जा सकता है।
जवाब देंहटाएंVstutah yah ham logon ka dayitva hai ki ham Modern Scince ki research se apney siddhanton ko sahi sabit karen jaisa ki mainey apney BHU-NABH ANTARGAT waley post mey kiya hai.
जवाब देंहटाएंIsi prakar Modern Sc. ne prove kiya ki pahley MURGI hui anda bad me aaya{14.7.10 ko ek post aditijohri.blogspot.com} dwara hamarey VAIDIK-Siddhanton ki hi PUSHTI hui us per mainey apney comment me 13.9.10 ko prakash dala jisey writter Dr.ney bhi thik man liya.Jyotish me intrested logon ko aagey badh kar Modern research ko apne favour me sahi sidh karna chahiye na ki Ilzam lagana.
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