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शनिवार, अक्टूबर 17, 2009

ऐसे तो अमीर अमीर बना रहेगा और गरीब, गरीब

maa_laxmi

स्थिर लग्‍न में लक्ष्‍मी पूजन की बात पर मेरे एक गुरूजी पंडित मंगलचंद पुरोहित की बात याद आ गई। मैंने उनसे फोन करके पूछा था कि इस साल दीपावली का श्रेष्‍ठ मुहूर्त क्‍या है। तो उन्‍होंने कहा कैसी पूजा करना चाहते हो। वैसा ही मुहूर्त बता देता हूं। मेरे लिए नया सवाल था और उनके लिए पुराना परिहास।

हालांकि ऐसे टैस्‍ट की आदत हो चुकी है लेकिन चौंकना लाजिमी था। मैंने जवाब दिया कि पूजन की विधि से मुहूर्त का क्‍या लेन-देन। तो उन्‍होंने हंसते हुए मुझे वह समय बता दिया जो मुझे अखबार में छापना था। रात बारह बजे के करीब ऑफिस से फ्री हुआ और सीधा पहुंचा उनके घर। वे शायद मेरा ही इंतजार कर रहे थे। उन्‍हें पता था कि शॉट मारा है तो बॉल पकड़ने के लिए चेला दौड़ेगा ही।

खैर, मैंने वापस सूत्र पकड़ लिया। पूछा कि आपने यह क्‍यों पूछा कि कैसी पूजा करना चाहते हो। तो वे बोले कि अगर जो मुहूत तुमने अखबार में छापा है उसी मुहूर्त में पूजा करोगे तो आगे बढ़ने का सपना देखना छोड़ दो। बात उलझ रही थी लेकिन वे जानबूझकर मुझे सोचने का मौका दे रहे थे।

मैंने अगला दांव रखा कि लक्ष्‍मीजी का पूजन तो करूंगा ही इसलिए कि आज जितना धन मेरे पास है अगले साल उससे कुछ अधिक ही हो।

तो उन्‍होंने कहा कि फिर स्थिर लग्‍न में पूजन क्‍यों चर लग्‍न में पूजन क्‍यों नहीं करते। लक्ष्‍मी तो खुद ही चंचला है उसे स्थिर क्‍यों करते हो।

मैंने वापस तर्क दिया कि लक्ष्‍मी को स्थिर करने के लिए ही तो पूजा करते हैं।

तो उन्‍होंने कहा कौनसी ऐसी लक्ष्‍मी तुम्‍हारे पास पड़ी है कि उसे स्थिर कर रहे हो।

अब कुछ खिड़की खुलने लगी। मैंने कहा कि इसका मतलब हुआ कि अगर लक्ष्‍मी को बढ़ाना है तो चर लग्‍न में लक्ष्‍मी पूजन करना चाहिए।

गुरूजी अब तो हंस रहे थे। उन्‍होंने कहा कि फिर लक्ष्‍मी का पूजन स्थिर लग्‍न में क्‍यों करते हैं।

मैं हतबुद्धि बस देख रहा था उन्‍हें। मैंने पूछा बताइए।

तो बोले लक्ष्‍मी पूजन की परम्‍परा सेठों यानि बहुत अमीर लोगों और राजाओं ने शुरू की। इसे एक तरह की दरबारी संस्‍कृति कह सकते हो। इसमें सेठ चाहता है कि उसके पास जितनी लक्ष्‍मी आ गई है वह अपने चंचल स्‍वभाव से वापस छोड़कर न चली जाए। इसलिए उसे जैसी है वैसी ही बने रहने के लिए स्थिर लग्‍न में पूजा करके मनाया जाता था। तब ज्‍योतिषी भी राजा या सेठों के ही हुआ करते थे। आम आदमी तो कम्‍प्‍यूटर के आविष्‍कार के बाद कुण्‍डली दिखाने लगा है। पहले कहां इतने चोंचले हुआ करते थे। तो मुहूर्त बनाते समय ज्‍योतिषियों ने लिख दिया कि लक्ष्‍मी की पूजा स्थिर लग्‍न में करो। अब जिसके पास अकूत धन है वह स्थिर लग्‍न में पूजा करे तो ठीक लेकिन जिसके पास पैसा है ही नहीं या बहुत कम है वह भी स्थिर लग्‍न में पूजा करेगा तो लक्ष्‍मी के बढ़ने की संभावना कहां रखी। अब कोई सोचता तो है नहीं बस लीक पीट रहे हैं। शास्‍त्रों में लिखा है सो स्थिर लग्‍न में पूजा करो। अब तुम्‍हारे पास धन नहीं है तो आगे भी यही स्थिति बनी रहेगी और है तो भी। बदलाव का तो तुम खुद ही विरोध कर रहे हो।

इसके बाद एक और एपीसोड हुआ।

मैंने अगले दिन अपने रेजिडेंट एडीटर से बात की और मंगलचंदजी के नाम से यह प्रश्‍न खड़ा करते हुए इस पर एक लेख अखबार में दे दिया। तो इसका असर यह हुआ कि छोटी काशी बीकानेर के बाकी के कागजी ज्‍योतिषी आंय-बांय-शांय बकने लगे। मैंने इसका बड़ा आनन्‍द लिया। एक राज ज्‍योतिषी टाइप के पंडितजी के तो मैंने भी मजे लिए। वे अखबारों में बहुत छपते थे, सो उन्‍हें लोगों ने व्‍यंग्‍य में राजज्‍योतिषी की उपाधि दे दी है। वास्‍तव में उनका प्राथमिक ज्ञान भी संदेह के घेरे में है। मैंने एक बंदे से कहा कि उन्‍हें फोन लगाए और पूछे कि अखबार में तो स्थिर लग्‍न में पूजा को खराब बताया है क्‍या किया जाए। तो राज ज्‍योतिषीजी ने कहा कि जब मन आए तब पूजा कर लो। लक्ष्‍मी तो माता है आशीर्वाद देंगी ही।

हम दोनेां हंसते हुए दोहरे हो गए थे...

आपका क्‍या ख्‍याल है...

स्थिर लग्‍न में पूजा करेंगे ताकि जितनी लक्ष्‍मी आपके पास है उतनी ही बनी रहे या

चर लग्‍न में पूजा करेंगे ताकि जितनी लक्ष्‍मी है उससे कम या ज्‍यादा हो, हां कम होने के चांसेज भी हैं। भई उसे चलायमान कर रहे हैं आ भी सकती है और जा भी सकती है या

द्विस्‍वभाव लग्‍न में पूजा करेंगे ताकि कभी आए कभी जाए बस काम चलता रहे :)


स्‍वामी नारायणजी ने बताया:

मेरा सौभाग्‍य है कि हमारे परम गुरूजी स्‍वामीनारायणन् जी इन दिनों बीकानेर में है। मैंने उन्‍हें अपना ब्‍लॉग और पिछले दिन खड़ा किया गया प्रश्‍न बताया। कल सुबह उन्‍होंने पोस्‍ट देखी लेकिन कुछ कहा नहीं लेकिन आज शाम पांच बजे के आस-पास उनका फोन आया और उन्‍होंने कहा कि लक्ष्‍मी पूजन हमेशा स्थिर लग्‍न में ही होगा। इसका कारण यह है कि पूजन दो स्‍तर पर होता है। पहले भाग में लक्ष्‍मी का आह्वान होता है और दूसरे भाग में उनसे घर में ही स्थिर बने रहने की प्रार्थना की जाती है। इसलिए चाहे जातक धनवान हो या निर्धन उसे स्थिर लग्‍न में ही पूजा करनी चाहिए। स्‍वामीजी ने कहा कि निर्धन को इसलिए कि उसे धन की जरूरत है और धनवान को इसलिए क्‍योंकि धन की लालसा कभी खत्‍म न होने वाली है। अब तक जिन जातकों ने मेरे लेख को पढ़ा है और उपापोह की स्थिति में आए हैं उनसे क्षमा मांगते हुए प्रार्थना करता हूं कि वे स्थिर लग्‍न के दौरान ही पूजन करें। अभी रात करीब साढ़े नौ बजे तक पूजन किया जा सकता है और इसके बाद रात को सिंह लग्‍न होगा। वह भी स्थिर लग्‍न है। यानि रात दो से चार बजे के बीच पूजन कर लक्ष्‍मीजी को प्रार्थना की जा सकती है।

स्‍वामीजी ने पंडित डी.के. शर्मा जी के श्री वाले सिद्धांत के बारे में भी स्‍पष्‍ट किया है। उसे मैं बाद में अलग पोस्‍ट में दूंगा।

12 टिप्‍पणियां:

  1. आपने तो दुविधा मैं डाल दिया |

    एक शंका का निवारण कीजिये ... प्रदोष काल मैं लक्ष्मी पूजन कैसा रहता है ?

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  2. बचपन मे मराठी की एक कहानी पढ़ी थी " पैश्या पासी पैसा येतो " मतलब जिसके पास पैसा होता है उसीके पास पैसा आता है सो लक्ष्मी पूजन भी वे ही करते हैं । मैने एक दिन बैंक मे लक्ष्मीपूजन करने वाले हमारे मैनेजर से सवाल किया " सर कल तो यह सब चला जायेगा फिर यह पूजन क्यों और आपको तो उतनी ही पगार मिलेगी ? तो उन्होने कहा "बेटा यहाँ उल्टा गणित है जितनी लक्ष्मी जायेगी उससे ज़्यादा आयेगी मतलब हम जितना कर्ज़ा बाँटेंगे उतना ब्याज़ आयेगा । " बढ़िया लगी आपकी पोस्ट ।

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  3. हमें तो आपकी यह बात अच्छी लगी
    "द्विस्‍वभाव लग्‍न में पूजा करेंगे ताकि कभी आए कभी जाए बस काम चलता रहे :) "

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  4. आपके गुरू जी भी मेरे पिताजी की तरह ही मौलिक चिंतन पर ही विश्‍वास रखते होंगे .. अच्‍छी लगी उनकी वैज्ञानिक सोंच .. और आपकी पोस्‍ट भी !!

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  5. बहुत ही अच्छी और नयी बात बताई आपने!वैसे कौनसा मुहूर्त सही है?

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  6. सिद्धार्थ जी, आम जनमानस तो इस विषय में पूर्णत: अनभिज्ञ है ही ओर शायद आप भी उसी भ्रम में हैं---जो ये सोचते हैं कि दीपावली लक्ष्मी (धन) से संबंधित कोई पर्व है । चारों वेद,पुराण,शास्त्र,उपनिषद इत्यादि किसी में भी आपको इस पर्व के परिपेक्ष्य में लक्ष्मी का जिक्र तक नहीं मिलेगा.......वास्तव में इसदिन पूजन होता है "श्री" का । "श्री" का तात्पर्य किसी भी रूप में धन नहीं हैं,धन तो उसका कणतुल्य अंश मात्र है । सामान्यत" "श्री" शब्द श्रेष्ठता,मान,पद एवं मर्यादा का बोधक है,जिसमें लक्ष्मी के सभी अष्ट स्वरूप (अष्टलक्ष्मी)समाहित हैं। (आद्यलक्ष्मी,विद्या लक्ष्मी,सौभाग्यलक्ष्मी,धान्यलक्ष्मी, कामलक्ष्मी,विजयलक्ष्मी,भोगलक्ष्मी और योगलक्ष्मी)। इनमें भी कहीं धन का जिक्र तक नहीं हैं ।
    अब ऎसा कोन मूर्ख व्यक्ति होगा जो कि अपने जीवन में सौभाग्य,काम,भोग,योग और वीरता जैसे सदगुणों की स्थिरता नहीं चाहेगा....
    जीवन में इन के स्थायित्व हेतु ही दीपावली पूजन में स्थिर लग्न की महता कही गई है ।
    (शीध्र ही "श्री" शक्ति के बारे में विस्तार से अलग एक पोस्ट के जरिए स्पष्ट करने का प्रयास करूँगा)

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  7. धन्यवाद
    आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !

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  8. भाई बचपन में मैंने एक कहानी पढ़ी थी. पैसा पैसे को खींचता है वाली. नौकर ने मालिक की तिजोरी में अपने पैसे का कटिया लगाया और उसका पैसा भी जाता रहा. बाक़ी आप समझ ही गए होंगे! :)

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  9. लक्ष्‍मी तो ज्‍योतिर्विदों के पैरों के निशान सहलाती है.. दीपोत्‍सव की शुभकामनायें।

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  10. पंडित डी के शर्मा जी आप सही कह रहे हैं। मैं आपकी बात को मानता हूं लेकिन आम जनमानस में जो बैठा हुआ है उसे ही सुधारने की कोशिश कर रहा हूं। वैसे मुझे जो बताया गया है उसमें यह बात अधिक महत्‍वपूर्ण है कि लक्ष्‍य की प्राप्ति कराने वाली देवी लक्ष्‍मी है। शायद इसी वजह से भगवान राम ने लक्ष्‍य पूरा करने के बाद लौटने पर मां लक्ष्‍मी की पूजा की थी। वर्तमान में भी जो लोग कि विशेष लक्ष्‍य का पीछा कर रहे हैं उन्‍हें देवी लक्ष्‍मी की आराधना करनी चाहिए।

    अन्‍य सवालों के बारे में मेरे पास एक है कि मैं खुद स्‍पष्‍ट नहीं बता सकता कि धन की देवी की पूजा किस समय करनी चाहिए। लेकिन राज ज्‍योतिषी महाराज की बात को ही कोट करना चाहूंगा कि कभी भी लक्ष्‍मी की पूजा कर लो। वे तो मां हैं कभी भी पूजा करने से न तो रुष्‍ट होंगी और न आशीर्वाद देने में कोई कसर रखेंगी।

    बाकी बात अगली पोस्‍ट में...

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  11. जो पाठक यह लेख पढ़कर जा चुके हैं उन्‍हें प्रार्थना है कि दोबारा इस लेख को पढ़ लें। कम से कम रात नौ बजे से पहले तक...

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