मैं यह बात कह रहा हूं और मुझे इस पर पूरा विश्वास है। आपको यकीन नहीं होता, न सही लेकिन यह बात सत्य है, समझने की जरूरत है।
...तो मुझे अब ज्योतिष का अध्ययन छोड़कर अब तोता पालना चाहिए।
नहीं...
क्यों?
बताता हूं
अभी अधिक समय नहीं बीता है जब मीडिया पर फुटबॉल के साथ पॉल बाबा राज कर रहे थे। वर्ल्ड कप में शामिल हुई टीमों के विश्लेषकों और खेल के जानकारों को भले ही कोई जानकारी नहीं थी, लेकिन एक अदने से ऑक्टोपस ने खेल दर खेल सफल भविष्यवाणियां की। यह आसान काम नहीं था, लेकिन पॉल बाबा ने कर दिखाया। भारत में यह काम सैकड़ों वर्षों से होता रहा है, वह है तोते से भविष्यफल करवाने का। बहुत से लोग तोते वाले के पास जाते हैं, उसे दस या बीस रुपए देते हैं, तोते का मालिक तोते को पिंजरे से बाहर निकालता है, तोता तरतीब से फैलाए हुए कार्ड्स में से एक कार्ड का चुनाव करता है। तोते का मालिक उस कार्ड को हाथ में लेता है और पूछने वाले को उसका भविष्य बता देता है।
इस विधि को अंधविश्वास बोलने से पहले मैं ज्योतिष के ही एक दूसरे विषय के बारे में आपको जानकारी देना चाहूंगा। यह विधि पहले भी थी और आज भी है, लेकिन प्रोफेसर केएस कृष्णामूर्ति ने इस पर अधिकार के साथ लिखा और मेरे गुरुजी ने इसे विस्तार से समझाया। हो सकता है मैं आप तक इस विचार को सफलतापूर्वक पहुंचा पाउं।
इसे कहते हैं - - - - - - - - - - - - - - ओमेन
ज्योतिष की यह शाखा संकेतों के विज्ञान पर काम करती है। आपने पॉल (अरे अब पॉल बाबा की बात नहीं कर रहा मैं कह रहा हूं पॉल कोएलो) के बारे में सुना होगा। अरे वही एल्केमिस्ट वाले। उन्होंने अपने नॉवेल में लिखा कि जब हम किसी चीज को शिद्दत से चाहते हैं तो पूरी कायनात उसे हमसे मिलाने की साजिश करती है। (हां, आपको याद आ गया यह तो ओम शांति ओम फिल्म में था, लेकिन यकीन मानिए ओम शांति ओम में पॉल के उपन्यास से चुराया हुआ वाक्य है। इस फिल्म का दूसरा डॉयलॉग ऑरीजिनल हो सकता है 'मेरे दोस्त, पिक्चर अभी बाकी है')
हां, तो वापस बात करते हैं कि पॉल कोएलो के एल्केमिस्ट की। उन्होंने एक कीमियागर (रसायनों की मदद से सोना बनाने का प्रयास करने वाले) की सोने की खोज के साथ यह वाक्य जोड़ा था। इसका कांसेप्ट यह है कि पूरी सृष्टि के तार आपस में जुड़े हुए हैं। यदि हम दिल से चाहें तो सृष्टि हमें अपने इच्छित से मिलाने का जतन करती है।
बात उलझती जा रही है। मुझे थोड़ा आसान करना होगा।
इसे समझिए कि आपका चाहना और प्रकृति का चाहना एक ही बात है। इसे भले ही ऐसे मान लें कि जैसा प्रकृति चाहेगी वैसा ही आप चाहेंगे या जैसा आप चाहेंगे वैसा ही प्रकृति चाहेगी। या फिर दोनों ही बातें होती है, फर्क केवल इच्छाशक्ति का होता है। ओमेन आपकी या प्रकृति की इच्छा को समझने का विज्ञान है। अब ये संकेत कैसे मिलते हैं, कौन देता है, कितनी तीव्रता के होते हैं, कब मिलेंगे या क्या संकेत होंगे। इस बारे में कहीं भी स्पष्ट जानकारी नहीं है। बस संकेत होते हैं और इसे ग्रहण करने वाले होते हैं। उन्हें इंट्यूशनिस्ट या अंतर्ज्ञान प्राप्त कहा जाता है। पाल बाबा और तोता भले ही इन संकेतों को समझने की क्षमता नहीं रखते हैं, लेकिन इनके आस पास के लोग इन्हें अपने अवचेतन से समझ पाते हैं। कुछ इन्हें व्यक्त कर देते हैं तो कुछ नहीं कर पाते। अंतर्ज्ञान प्राप्त व्यक्तियों के लिए यह कतिपय आसान होता है, लेकिन जिन लोगों के पास प्रकृति (इसमें सजीव और निर्जीव दोनों शामिल हैं) के प्रति संवेदनशीलता का अभाव होता है, वे इसे समझ नहीं पाते हैं।
अब बात ज्योतिषीय दृष्टिकोण की...
भद्रबाहु संहिता की एक टीका पंडित नेमीचंद शास्त्री ज्योतिषाचार्य ने लिखी है। प्राचीन ग्रंथों का विशद संदर्भ देने वाले शास्त्रीजी ने प्राचीन भारतीय साहित्य (प्रमुख रूप से संस्कृत कथाओं) में संकेतों के माध्यम से वातावरण के जरिए निकट भविष्य के ईष्ट और अनिष्ट के बारे में संकेतों का उल्लेख किया है। उदाहरण के तौर पर
“शत्रुओं के हमले की सूचना मिलने के बाद नगर के क्षत्रियों को शीशे में अपने सिर कटे हुए नजर आने लगे, पशुओं ने भोजन त्याग दिया, मयूर ने नृत्य करना छोड़ दिया, महिलाओं को जल में अपनी छवि विधवाओं जैसी दिखाई देने लगी।”
और ऐेसे सैकड़ों संकेत।
वे साहित्य के इस प्रयास के साथ प्राचीन भारत में संकेतों से भविष्य कथन का महत्व बताते हैं। भद्रबाहु संहिता में भी संकेतों के जरिए भविष्य को जानने के सूत्र बताए गए हैं। प्रश्न ज्योतिष में भी संकेतों का प्रबल महत्व है। एक जातक ज्योतिषी के पास आता है, अपना सवाल पूछता है, उसके आने के तरीके, बैठने के तरीके, सवाल पूछने के दौरान ज्योतिषी का स्वर (इडा या पिंगला नाड़ी का चलना), जातक का स्वर, आस पास के माहौल में घट रही घटनाएं और प्राकृतिक घटनाएं सवाल का जवाब देना शुरू कर देती हैं। जातक जिस काल में प्रश्न करता है, उसी काल अवधि की कुण्डली बनाई जाती है। मान लीजिए कोई जातक 16 सितम्बर 2011 को सुबह 8 बजकर 56 मिनट पर एक प्रश्न पूछता है, तो उसकी कुण्डली कुछ इस तरह बनेगी।
यह उस प्रश्न की ही कुण्डली है। अब ज्योतिषी प्रश्न का भविष्य बताएगा। प्रश्न पूछने के दौरान चंद्रमा सातवें स्थान पर है, तो बहुत अधिक संभावना है कि प्रश्न व्यापार में साझेदार अथवा पत्नी के संबंध में हो सकता है। ज्योतिषीय दृष्टिकोण से यह जानकारी मिलने के साथ ही आस पास की घटनाओं से मिल रही जानकारी को इसमें समाहित करने पर हमें पुख्ता जवाब भी मिल जाएगा। चूंकि चंद्रमा केतू के नक्षत्र में विचरण कर रहा है अत: बारहवां भाव भी इसमें शामिल हो जाएगा। लग्न तुला और लग्नेश शुक्र का भी बारहवें स्थान पर होना, बाहरी संबंधों का सूचक है। इस तरह समय विशेष की कुण्डली हमें आगत के संकेत देती है और ओमेन (प्राकृतिक घटनाओं से मिले संकेत) हमें सटीक उत्तर देने में मदद करते हैं।
तो यह है ज्योतिष और ओमेन का संबंध.. अब मैं आमंत्रित करता हूं आपके सवाल।
- अगर आपको ओमेन समझ में आया है तो क्या इस लेख में और कुछ शामिल किए जाने की जरूरत है।
- अगर मेरी बात समझ से परे है तो आपको और क्या जानकारी की जरूरत है।
- क्या आपको भी वातावरण की घटनाओं से भविष्य के कभी संकेत मिले हैं।
- क्या आपको लगता है कि प्रकृति खुद हमें संकेत देती है।
और ऐसी ही ढेरों जिज्ञासाओं का मुझे इंतजार रहेगा। ईश्वर आपके दिन को मंगलमय बनाए...
पशु पक्षियों को भविष्य में होने वाली प्राकृतिक आपदाओं के संकेत मिलते हैं ऐसा सुना है और हाल ही में जब सुनामी आई थी उससे पूर्व हुए पशुओं के व्यवहार के परिवर्तन पर शोध भी किये हैं.इसलिए आप की बात से इनकार नहीं किया जा सकता .
जवाब देंहटाएं.......
मानव के संदर्भ में हम अन्य शब्दों में कहें तो जिसे हम मन की बात कहते हैं शायद वह ही हमने ऐसे संकेत देने में समर्थ होता है.
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ऐसा भी कहते सुना है कि अगर कोई व्यक्ति ऐसे संकेतों को भांप लेने में समर्थ हो तो उसे अपनी क्षमता के बारे में अन्य लोगों को बताना नहीं चाहिए ?
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BAHUT HI SANDAR JANKARI DI HAI AAPNEY
जवाब देंहटाएंMUZEY AAHHA HI NAHI APITU POORAN VISWAS HAI KI AAP AAGEY BHI ISI TARAH KI JANKARI DETEY RAHENGEY
AAL THE BEST DEAR
M K PUROHIT
SRI GANGA NAGAR
है ना । पशु पक्षियों से भारत में बहुत पहले से संकेत प्राप्त किये जाते रहे हैं । भूकत्प से २४ घण्टे पूर्व एक वशिेष प्रकार की चिडीया की गतिविधि में परिवर्तन आ जाता है । जापान में इसका वशिेष उपयोग किया जाता है । बारशि के पूव्र चीटिंयां अपने अण्डों को सुरक्षित स्थान पर चली जाती है । किसी अनहोनी से पूर्व कुत्तों का रोना प्रारम्भ हो जाता है ।
जवाब देंहटाएंपॉल कोएलो की अलकेमिस्थ का संक्षिप्त और सटीक विश्लेश्ण करने के लिए धन्यवाद. एक लंबे समय बाद आपकी लेखनी कुछ सार्थक लिख पाई हैं. वरना भाव, राशि, और कारक के गोरख धन्दे मे उलझा रखा था पाठकों को. सच पूछे तो दो चार लेन पढ़ते ही आपकी मैल डेलीट कर दिया करता था मैं तो. हमारे ज्योतिष् और परंपरागत शास्त्रों मे वेसे तो बिल्ली छीन्क अंग फड़कना कोयल कुत्ता और ना जाने क्या क्या भरा पड़ा हॅ. लेकिन ये सब बाहरी बातें हैं आंतरिक ऑमन निश्चित ही हमारे अवचेतन से आते हैं और स्वप्न भी. ओशो ने अपने पातंजल योग सूत्र मे पाँच प्रकार के स्वप्नो की बात कही है. क्या आप उस पर प्रकाश डालने का कष्ट करेंगे.
जवाब देंहटाएंपंकज जी आपकी कृपापूर्ण टिप्पणी के लिए हृदय से आभार व्यक्त करता हूं, हो सकता है आपको मेरे कई लेख पसंद नहीं आए होंगे। आप इस बारे में अवगत कराते हैं तो मुझे लेखनी में सुधार करने का मौका मिलता है। पिछले चार सालों में ढाई लाख से अधिक पाठकों ने मेरे इस ब्लॉग को पढ़ा है। हर तरह के जातकों और विषय में रुचि रखने वाले लोगों के अलग अलग तरह के विचार होते हैं। विषय के साथ न्याय करने का प्रयास करने के दौरान कई बार आपकी रुचि से परे भी चला जाता हूं। फिर भी भविष्य में प्रयत्न करूंगा कि ऐसा सार्थक लिखूं कि सभी को पसंद आए...
जवाब देंहटाएंआपकी टिप्पणी के लिए एक बार पुन: आभार...
पूर्ण रूप से सहमत हूँ. प्रकृति वही करती है जो हम चाहते हैं या हम वही करते है जो प्रकृति चाहती है. या फिर दोनों.... इसके कई आश्चर्यजनक अनुभव मुझे मिले लेकिन मैं इसे मात्र एक संयोग समझकर इग्नोर कर देता. लेकिन मन के एक कोने में वह प्रश्न बैठा रहता कि कैसे? और क्यों?
जवाब देंहटाएंज्योतिष का ज्ञान और इसके प्रति रूझान आज कल के वैज्ञानिक माहौल ने कुछ कम किया है लेकिन जिज्ञासु प्रवॄत्ति और कुछ संभावित घटनाओं का पूर्वानुमान इस तरफ आकर्षित करता है.
एक बेहतरीन लेख.
भई! हमें तो कभी कभी कुछ संकेत जैसा मिलता है... लेकिन कह नही सकता कि वे क्या होते हैं.. वहम या फिर कुछ और..
एक छोटा सी घटना बताना चाहूँगा. एक दिन एक परिचित का फोन आया. उसे मेरी जरूरत थी कुछ महत्वपूर्ण काम के सिलसिले में... लेकिन उस समय मैं घर जाने की तैयारी कर रहा था और मेरे पास समय बिल्कुल कम था. अतः हमने अपनी मजबूरी बताई. वह मान गया. लेकिन उसके बाद घर से फोन आया और एक जरूरी चीज खरीद लाने की पेशकश हुई. मै तुरन्त बाज़ार की तरफ गया. मन में आशंका थी कि कोई मिल न जाये.. अन्यथा ट्रेन छूट जायेगी. मेरे मार्केट जाते ही और उसी दुकान पर जहाँ से मुझे वह वस्तु मिल सकती थी वहाँ वह व्यक्ति मौजूद था जिसको मेरी मदद की जरूरत थी. मुझे आश्चर्य हुआ क्योंकि जब उसने मुझे फोन किया था तब वह काफी दूर था उसे भी एक फोन काल के माध्यम से वहा आना हुआ था और उस छोटे समय में हमने उसकी यथासम्भव मदद की. अब प्रश्न यह उठता है.. कि यह कैसे सम्भव है? क्या यह मात्र एक संयोग है? या फिर प्रकृति चाहती थी कि उसे मदद मिले?
ऐसी अनेक घटनाएं रोजाना कुछ व्यक्तियों के साथ होती हैं कुछ महसूस नही कर पाते और जो महसूस करते हैं वे समझ नही पाते..
कारण - अज्ञानता.