अंग लक्षण और शारीरिक चेष्टाएं
किसी व्यक्ति को देखने के साथ ही हमारे विचार बनने लगते हैं। चाहे वह अजनबी हो या चिर परिचित। हम कई लोगों के बारे में बिना उनसे बात किए या बिना उनकी बातों से सहमत या असहमत हुए भी धारणाएं बना लेते हैं। अधिकांशत: ये धारणाएं सत्य साबित होती हैं और हम सहजता से कह देते हैं कि मैं तो देखते ही पहचान गया था, लेकिन कई बार धारणाएं टूटती हैं, तब हमें आश्चर्य होता है कि मैं तो कुछ और समझ रहा था और यह व्यक्ति उससे हटकर निकला।
ऐसा क्या है जो हमें पूर्व में धारणा (Opinion) बनाने के लिए बाध्य करता है और बाद में उस पर टिके रहने के लिए भी। ये हैं हमारी शारीरिक चेष्टाएं (body language) और शारीरिक लक्षण (physical signs)। कोई जातक ऐसा हो सकता है कि किसी के कोई काम का न हो, लेकिन उसकी स्वीकार्यता हर जगह होती है। वहीं कुछ अन्य लोग दूसरों के लिए लाख उपयोगी होने के बावजूद लोगों के दिल में वैसी जगह नहीं बना पाते हैं, जैसी उनके काम को देखते हुए होनी चाहिए।
इसके लिए हमारी शारीरिक चेष्टाएं और शारीरिक लक्षण जिम्मेदार हैं। ये हमारे मन में चल रही गतिविधि को बिना हमारी इच्छा के इस प्रकार व्यक्त कर देते हैं कि सामने वाला व्यक्ति सहजता से उन्हें भांप लेता है। इसके लिए किसी विशिष्ट अंतर्ज्ञान (Intutive ability) की आवश्यकता भी नहीं होती।
शरीर के विशिष्ट लक्षणों को अत्यंत शुभ माना जाता है। एक प्रसंग में नन्द महाराज के एक मित्र भगवान् कृष्ण (Lord Krishna) के शुभ शारीरिक लक्षणों के विषय में बताते हैं। श्रीकृष्ण के शरीर में बत्तीसों शुभ लक्षण मौजूद हैं। बालकृष्ण के सात स्थानों यानी आंखों, हथेलियों, तलवों, तालू, होंठ, जीभ तथा नाखूनों पर लालिमा है। उनके तीन अंग कमर, मस्तक तथा वक्ष स्थल अत्यंत विस्तृत हैं। इसी तरह शरीर के तीन अंग वाणी, बुद्धि तथा नाभि अत्यंत गहरे हैं। उनके पांच अंग नाक, बाहें, कान, मस्तक तथा जांघे उन्नत हैं। उनके पांच अंगों त्वचा, सिर व अन्य अंगों के बाल, दांत तथा अंगुलियों के पोर सुकोमल हैं।
यह समुच्चय महापुरुषों (Mahapurusha) के ही शरीर में देखा जाता है। उसके हथेली में कमल के फूल तथा चक्र के चिन्ह हैं और उसके पैरों के तलवों में ध्वजा, वज्र, मछली, अंकुश तथा कमल के चिन्ह हैं। इस तरह भगवान के शारीरिक लक्षणों का वर्णन किया गया है। साथ ही बताया गया है कि सामान्य पुरुषों में ऐसे लक्षण दिखाई देने पर उनमें भी ऐसी दिव्यता होती है। हो सकता है सभी जातकों में ये सभी लक्षण न मिले, लेकिन जितने भी लक्षण मिलते हैं, उतनी ही अधिक शुभता बताई गई है। यकीनन सर्वश्रेष्ठ और पूर्ण तो ईश्वर (Ishwar) ही होंगे।
श्रीराम (Lord Rama) स्तुति में हम गाते हैं कि ‘सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारु अंग विभूषणम्। आजानुभुज शर-चाप-धर, संग्राम जित-खर-दूषणम्।।’ सिर पर मुकुट, कानों में कुण्डल, भाल पर तिलक जैसे अंग लक्षणों के साथ आजानुभुज यानी घुटने से भी नीचे तक जाती भुजाएं और हाथों में तीर धनुष लिए राम आसानी से बुरे लोगों का खात्मा कर देते हैं।
इस स्तुति में अंग लक्षणों का वाचन करने के साथ ही हमें भान हो जाता है कि जो ऐसा वीर योद्धा (Great warrior) होगा, वह सहज ही शत्रुओं और बुरे लोगों का नाश कर देगा। इसमें लक्षणों के साथ श्रीराम की शारीरिक चेष्टाएं भी झलकती हैं। हनुमान चालीसा में भी हनुमानजी के गुणों के वर्णन के साथ उनके लक्षणों और चेष्टाओं के बारे में जानकारी मिलती है। मसलन ‘कंचन बरन बिराज सुबेसा, कानन कुंडल कुँचित केसा॥ हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजे, काँधे मूँज जनेऊ साजे॥’
इसी तरह ‘सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा, विकट रूप धरि लंक जरावा॥ भीम रूप धरि असुर सँहारे, रामचंद्र के काज सवाँरे॥’ चालीसा के इन सूत्रों में लक्षण भी हैं और चेष्टाएं भी, जो हमें सहज ही विश्वास दिला देते हैं, कि भगवान श्रीराम के इस अनन्य भक्त में असीम क्षमताएं हैं।
हालांकि भारतीय सामुद्रिक शास्त्र में अंग लक्षणों और शारीरिक चेष्टाओं को लेकर बहुत अधिक विस्तार से जानकारी दी गई है, लेकिन पश्चिम में यह विधा अपेक्षाकृत नई है। करीब बीस वर्ष पहले ऑस्ट्रेलिया के एक चिंतक एलन पीज (Allan pease) ने अपनी पहली पुस्तक ‘बॉडी लैंग्वेज’ (Body language) में इसके बारे में विस्तार से लिखा। यह पुस्तक विश्व के अधिकांश देशों में चर्चित हुई। इसके साथ ही अंग लक्षणों और शारीरिक चेष्टाओं पर अधिक गंभीरता से अध्ययन शुरू हुआ।
इस पुस्तक में बताया गया है कि किस प्रकार किसी व्यक्ति की शारीरिक चेष्टाओं को हम नि:शब्द वार्तालाप (Non verbal communication) की तरह समझ सकते हैं। हालांकि इसमें अधिकांश पश्चिमी पद्धतियां और झूठ बोलने, आक्रामक होने, प्रणय निवेदन, अधिकार भावना जैसे मूल स्वभावों के बारे में ही दिया गया है। भारतीय सामुद्रिक शास्त्र (Samudrik Shashtra) में इससे कहीं आगे आकर वर्तमान अंग लक्षणों से सफल भविष्य कथन की पद्धति विकसित की गई है। हर जातक के चेहरे, शरीर और क्रियाकलापों में कई सूक्ष्म बातें होती हैं, जो उसे खुली किताब की तरह हमारे सामने पेश करती है, लेकिन इन्हें पकड़ पाना हर किसी के बस का नहीं होता। ऐसे में हम सामने पड़ी खुली किताब को भी नहीं पढ़ पाते हैं।
पुरुष जातक (Purush Jatakas)
पुरुष जातक के अंग लक्षण और शारीरिक चेष्टाओं के बारे में सामुद्रिक में विस्तार से दिया गया है। इसके अनुसार उत्तम पुरुष की मुखाकृति दृढ़ होती है, जबड़ा चौड़ा, ठुड्डी सुंदर उभार लिए हो पर होंठों से आगे निकली न हो, आंखें सीधी, तेज, गर्दन हल्की ऊपर उठी हुई, बाल करीने से जमे, पुष्ट ग्रीवा, होंठ सरल, रक्तिम, स्निग्ध और मृदु होने चाहिए, दांत पूरे बत्तीस (32) सर्वश्रेष्ठ होते हैं, जीभ सामान्य लंबाई लिए हो और पतली, स्वच्छ, गुलाबी व सरल कोणिक होनी चाहिए। उनके हाथ घुटनों तक लंबे, छाती चौड़ी, पैर मजबूत और तलुवे चिकने होने चाहिए।
ये अंग लक्षण सामान्य अंग लक्षण है। इनके अलावा शरीर के विभिन्न हिस्सों पर मस्से, तिल, दाग, चक्र, शंख, व्रण और रेखाओं के अनुसार भी फलादेश किए जाते हैं।
मसलन केवल ललाट (Forehead) के आधार पर तीन प्रकार के पुरुष बताए गए हैं।
उन्नत ललाट - सौभाग्य एवं धनवृद्धि का सूचक है। ऐसा मस्तक व्यक्ति को तेजस्वी तथा बुद्धिमान दर्शाता है।
दबा हुआ ललाट - यदि किसी व्यक्ति का माथा मध्य में दबा हुआ हो, मस्तक उभरा हुआ तथा बाल छोटे हों वह बड़ा भाग्यवान होता है। समाज में सम्मान पाता है तथा कुशाग्र बुद्धि होता है।
मोटे ललाट छोटे बाल - जिस व्यक्ति का सिर मोटा हो, मस्तक उभरा हुआ तथा बाल छोटे हों, वह भाग्यवान होता है। समाज में सम्मान पाता है तथा कुशाग्र बुद्धि होता है।
खल्वाट - यानी किसी व्यक्ति के सिर के अग्र भाग में बाल न हों और बालों की लहर पीछे की ओर हो, वह व्यक्ति धनवान, युक्तिशील, चतुर तथा प्रत्येक कार्य में सिद्धि पाने वाला होता है।
इसी प्रकार लंबी नासिका जो अग्रभाग से छोटी हो, ऐसा व्यक्ति अहंकारी होता है। हर काम स्वार्थ एवं चतुराई से करता है। जिस व्यक्ति की नासिका आगे से बड़ी हो तथा नथुने कुछ खुले हो, वह धनवान, समाज में प्रतिष्ठा पाने वाला तथा स्त्री पक्ष की ओर से अधिक सुख भोगने वाला बताया गया है।
स्त्री जातक (Stri Jatakas)
स्त्री जातक (Women) के संबंध में विवाह को लेकर विचार किया गया है। कई पुस्तकों में यह माना गया है कि जैसे लक्षण उत्तम पुरुषों में बताए गए हैं, वैसे ही लक्षण स्त्रियों में भी उत्तम हैं। इसके साथ ही विवाह के लिए चुनी जाने वाली स्त्री को लेकर अलग से कई ग्रंथों में बताया गया है। सुंदरता के लक्षण जहां कालिदास की नायिका से मिलते जुलते हैं। साथ ही कुछ सौभाग्यदायी लक्षणों को भी अंग लक्षणों में जोड़ा गया है।
ऐसी स्त्री के शरीर पर बाल न्यून होने चाहिए, वह चलते समय अपने पैरों से रेत न उड़ाए, आवाज धीमी और मधुर हो। चूंकि आदिकाल से पुरुष को शिकारी (Hunter) की और स्त्री को घर संभालने वाली (Nest defender) भूमिका मिली है, उसी क्रम में अंग लक्षण और शारीरिक चेष्टाएं भी चाही गई है। किसी समय जब स्त्री सत्तात्मक परिवार रहे होंगे, तब हो सकता है कि स्त्रियों के कोमल एवं आज्ञाकारी होने की जरूरत कम महसूस हुई हो, लेकिन पिछले कई सौ सालों में स्त्रियां पुरुष समाज में कई बार भले ही सत्ता पर काबिज हुई हों, लेकिन कभी स्त्री सत्ता आधारित समाज नहीं बन पाया है। ऐसे में स्त्रियों के वही गुण श्रेष्ठ बताए गए हैं, जिनसे वे अधिक से अधिक उपयोगी सिद्ध हो सकें।
चेष्टाओं में सुधार की संभावना
(Modification in body language)
जातक अंग लक्षणों (Physical signs) को साथ लेकर पैदा होता है। शरीर का नैसर्गिक विकास जैसा होना है, वैसा ही होगा, उनमें बदलाव नहीं किया जा सकता। कुछ हद तक प्लास्टि सर्जरी या ऐसे ही उपचार कर सुधार कर भी लिया जाए, तो भी अधिकांश लक्षण ज्यों के त्यों ही रहते हैं। ऐसे में शारीरिक चेष्टाओं (Body language) में सुधार कर व्यक्ति अपना भाग्य बदल सकता है। पातंजलि के हठ योग में शारीरिक चेष्टाओं को नियमित और संतुलित करने के लिए कई आसन और प्राणायाम की जानकारी दी गई है। इससे उत्तम पुरुष की चेष्टाओं को अभ्यास के द्वारा हासिल किया जा सकता है।
खराब शारीरिक चेष्टाओं में झुककर बैठना, गर्दन झुकाकर खड़े होना, पैर घिसटते हुए चलना, बैठे हुए या बातचीत के दौरान अपने ही पांवों को पकड़े रखना, बोलते समय मुंह से थूक उछलना, भौंहों को लगातार तनाव में रखना, कर्कश आवाज में बोलना, अधिकांशत: लेटी हुई या सहारे वाली अवस्था में रहना जैसी चेष्टाएं शामिल हैं। योग करने से इन चेष्टाओं में तेजी से सुधार होता है। अगर चेष्टाएं बहुत अधिक प्रभावी बना ली जाएं, तो लक्षणों के खराब प्रभाव को बहुत हद तक दूर किया जा सकता है।
इस विषय पर पुस्तकें भी देखी हैं मैंने .
जवाब देंहटाएंआप एन काफी संक्षिप्त में इनकि महत्ता के बारे में जानकारी दी है.
'फेस रीडिंग ' या पर्सनेलिटी विश्लेषण 'को तो वैज्ञानिक आधार भी मिला है.
अक्सर देखा गया है कि साक्षात्कार में मूल्यांकन करते समय इसलिए भी पर्सनेलिटी को भी आँका जाता है.
तमाम बातें पता चला चलीं। लेकिन यह भी लगा कि इस तरह के मानक उन लोगों के मन में हीन भाव पैदा करते होंगे जो साधारण लोग हैं। या जिनमें कुछ कमी है इन मानकों के हिसाब से।
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक और आकर्षक विषय है ये| मुझे ध्यान है मेरे दादाजी के पास साल छह महीने में एक साधू महाराज आया करते थे और घर से कुछ दूर बने घेर में ही दादाजी के साथ एक दो दिन रुकते थे| मैं बहुत छोटा था उस समय, जब उनके लिए भोजन लेकर जाता था तो वो कभी कभी इस विषय में कुछ कुछ बताते थे| समझ तो खैर हमें क्या आनी थी लेकिन 'आजानुभुज' का शाब्दिक अर्थ तभी जाना था|
जवाब देंहटाएंपोस्ट पढ़कर अच्छा लगा और शुक्ल जी की टिप्पणी पढ़कर एक और आयाम दिखा, हीन भावना भी जागृत हुई :)
ललाट हमारा ठीकठाक साइज का है। खल्वाट नहीं था। पर समय किये दे रहा है - बिना बैंकबैलेंस बढ़ाये! :-(
जवाब देंहटाएंसंसार के बुद्धिजीवियों में श्रेष्ट माने जाने वाले भौतिकी के प्रोफ़ेसर स्टेफन हाकिंग की सुन्दरता के बारे में क्या विचार हैं आपके
जवाब देंहटाएंपंडित ललित मोहनजी कुर्तक किसी भी क्षेत्र में कभी भी पेश किया जा सकता है। अगर आपको विश्वास न हो तो दो दो हाथ करने के लिए कभी स्टीफन हॉकिंग्स को खड़ा कर लीजिए।
जवाब देंहटाएंकई मूर्ख जातक भी आते हैं मेरे पास। मैं कहता हूं कि फलां दौर खराब था आपका, बोलते हैं आर्थिक और सामाजिक रूप से बहुत दबाव तो झेला लेकिन मन मजबूत रहा, फिर उनको दूसरा दौर बताता हूं जब मानसिक रूप से व्यथित थे, तब कहते हैं उन दिनों पैसों की समस्या नहीं थी।
दो अलग अलग बिंदुओं को मिला देने से कोई प्वाइंट प्रूव नहीं हो सकता...
जोशी जी ,शायद अपनी बात के प्रतिकूल कोई भी टिपण्णी शीघ्र विचलित कर देती है आपको.तभी बात का रुख ही मोड़ दिया आपने.मेरे कहने का अर्थ मात्र यह था की हर मनुष्य ईश्वर की अपने समय में बनायीं गयी श्रेष्ट कृति है.उठने बैठने ,बोलने बतियाने में सभ्यता तलाशना कुछ कथित अभिजातीय वर्ग के दिमाग की उपज है,खुद को श्रेष्ट साबित करने के लिए.शारीरिक लक्षणों की बात करें तो प्रभु श्री राम परम विद्वान् श्रेष्ट रावण के समक्ष कहीं नहीं थे.व्रगोत्तम परिवार से सम्बंधित रावण श्रेष्ट ब्राहमण व श्रेष्ट क्षत्रिय का रूप था.किन्तु उसके कर्मों ने उसे राम से बहुत छोटा बना दिया.इसी प्रकार संसार के ह्रदय पर राज करने वाले कृष्ण सांवले व छोटी कद काठी के थे.वहीँ दूसरी और अभिजातीय परिवार से ताल्लुक रखने वाला दुर्योधन रूप रंग,एवम राज परिवार के संस्कारों से परिपूर्ण था. श्री लाल बहादुर शाश्त्री व बापू गाँधी कहीं से भी आपके इस लेख में कही बातों के अनुसार योग्यता नहीं रखते थे,किन्तु आज भी उनका स्थान महापुरुषों में है,वहीँ दूसरी ओर ईराक का रजा सद्दाम हुसैन अभिजातीय (कथित)वर्ग की सभी शर्तों से परिपूर्ण था.उसके उठने बैठने ,बोलने ,खाने पीने,हर बात में एक क्लास झलकता था,और आपके लेख की सारी शर्तों को भी वह पूरा करता था. तो क्या आप उसे गाँधी जी ,या शास्त्री जी से ऊंचा मान देते हैं.
जवाब देंहटाएंकहने का तात्पर्य यह है जोशी जी की इंसान को उसकी सोच और उसका व्यवहार श्रेष्ट बनाते हैं ना की हाथ में काँटा चम्मच पकड़ने की कला.प्रभु श्री राम को मर्यादा पुरुशोत्तम उनके उनके जीने की स्टायलीस्ट कलाओं के कारण नहीं अपितु जीवन के मूल्यों के प्रति उनकी अप्रोच के कारण कहा जाता है.रूप रंग सब ईश्वर की देन है.प्लास्टिक सर्जरी द्वारा,पर्सनैलिटी डवलपमेंट की क्लास्सेस ज्वाइन करके आप तो शायद उस वर्ग में आ सकते हैं ,किन्तु मात्र दो जून की रोटी की चिंता करने वाला नहीं. मनुष्य अपने ज्ञान ,अपने व्यवहार के कारण श्रेष्ट बनता है न की मांस के लोथरों से बने नश्वर शरीर की कुछ मोहक अदाओं के कारण.
दुनिया को अपने प्रभाव से दहलाने वाला हिटलर ,अंग्रेजों की सबसे संगठित सेना को देश से चले जाने को मजबूर कर देने वाले गांधी जी,और क्रिकेट की दुनिया पर राज करने वाले सचिन कहीं से भी आजानुभुज नहीं हैं भैया.गुण महत्वपूर्ण है न की लक्ष्ण.शेर के लक्षणों की हुबहू नक़ल कर भी सियार ,सियार ही रहता है,व सियार की मांद में पल कर,शियार जैसी शक्ल होने के बावजूद भी शेर शेर ही रहेगा .
दुख की बात है ललितमोहनजी, आपने विषय से संबंधित मेरी प्रतिटिप्पणी को निजी टिप्पणी मान लिया। ठीक है मैं अपनी बात लिखने से पहले स्पष्ट कर देता हूं कि जो भी कहा है और अब कहूंगा, वह सभी इसी पोस्ट से संबंधित है, किसी व्यक्ति से नहीं...
जवाब देंहटाएंअब आपकी टिप्पणी की बात, आप अब भी वहीं चमड़ी पर उलझे हुए दिखाई देते हैं। अंग लक्षण कहीं भी चमड़ी या हाड मांस नहीं है। अगर मैं कहूं कि एटीट्यूड में सुधार कर हम अपने भाग्य को बदल सकते हैं तो आप तुरंत सहमत हो जाएंगे, लेकिन जब मैं यह कहता हूं कि आप अपनी शारीरिक चेष्टाओं (मैंने अंग लक्षण को शारीरिक चेष्टाओं से अलग रखा है, आप दोबारा पढ़ेंगे तो ही समझ पाएंगे) में सुधार कर भाग्य सुधार सकते हैं। हल्की फुल्की भाषा में शारीरिक चेष्टाओं को बॉडी लैंग्वेज भी कह सकते हैं, लेकिन वास्तव में शारीरिक चेष्टाएं इससे भी अधिक है। पहले अंदर सुधार करना होगा, तभी बाहर सुधार आएगा। भले ही सियार शेर नहीं बन सकता, लेकिन इंसान कुछ कुछ इच्छाधारी सांप की तरह है, वह किसी भी रूप में बदल सकता है।
सद्दाम हुसैन, ओसामा बिन लादेन, हिटलर, चे ग्वेवेरा, स्टालिन या कह दें रावण को इसीलिए भ्रष्टा जा रहा है क्योंकि वे हार गए, अगर वे जीतते तो हम दूसरा ही इतिहास पढ़ रहे होते और पूजे जाने वाले देवता भी अलग ही होते...
आज आप जो हैं वह आपके पैदा होने से अब तक आपके पोषण (मानसिक और शारीरिक) का नतीजा है। अब इसमें बदलाव या सुधार करना है तो आपका निजी प्रयास ही हो सकता है।
सोच की दिशा बदलने का अंतर है...
ईश्वर की बनाई सृष्टि की बात करें तो अनुकूल अंग लक्षण मिलना या न मिलना अथवा शारीरिक चेष्टाओं से भाग्य को सुधारने की कोशिश भी ईश्वर की ही इच्छा हो सकती है। यहां तक कि मेरा लेख लिखना और आपका कमेंट करना भी उस सत्ता के प्रभाव से बाहर नहीं है...
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