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बुधवार, नवंबर 09, 2011

शक्तिशाली औजार है ओमेन

एक ज्‍योतिषी जब किसी कुण्‍डली का विश्‍लेषण करता है तो पूर्व में तय किए गए सिद्धांतों और गणितीय गणनाओं के अतिरिक्‍त उसके पास भविष्‍य में झांकने के लिए एक और महत्‍वपूर्ण औजार होता है। इसे कहते हैं ओमेन। किसी भी व्‍यक्ति अथवा व्‍य‍वस्‍था के निकट भविष्‍य की जानकारी देने के लिए प्रकृति लगातार संकेत देती रहती है। इन संकेतों को एक ज्‍योतिषी अपने अंतर्ज्ञान से पकड़ पाता है। पूर्व में जहां संकेतों को ज्‍योतिषीय गणनाओं से भी अधिक महत्‍व दिया जाता रहा है, वहीं वर्तमान दौर में हम संकेतों को दरकिनार कर केवल कुण्‍डली से निकाले जाने वाले फलादेशों पर ही निर्भर हो गए हैं। ओमेन को समझाने के लिए दक्षिण के प्रसिद्ध ज्‍योतिषी प्रोफेसर के.एस. कृष्‍णामूर्ति ने अपनी पुस्‍तक फण्‍डामेंटल प्रिंसीपल ऑफ एस्‍टोलॉजी में एक उदाहरण दिया है। पिछले कई दशकों में ओमेन को समझाने के लिए इसे सबसे शानदार उदाहरण माना गया है। इस उदाहरण से यह भी पता चलता है कि ओमेन को समझने के लिए हमें प्रकृति को समझने की अपनी दृष्टि भी विकसित करनी होगी।

‘‘एक ज्‍योतिषी अपने शिष्‍यों को ज्‍योतिष का पाठ पढ़ा रहा था। इसी दौरान उसके पास एक व्‍यक्ति दौड़ता हुआ आता है और बताता है कि उसकी पत्‍नी उसे छोड़कर जा चुकी है। ठीक उसी समय ज्‍योतिषी की पत्‍नी कमरे में आती है और बताती है कि कुएं से पानी निकालने के दौरान रस्‍सी टूट गई और बाल्‍टी कुएं में जा गिरी है। ज्‍योतिषी अपने शिष्‍यों से पूछते हैं कि व्‍यक्ति के सवाल और अभी मिले संकेत से क्‍या अर्थ लगाए जा सकते हैं। इस पर सभी शिष्‍य एक मत थे कि दोनों का संबंध बनाने वाली रस्‍सी के टूट जाने का अर्थ है कि जातक की पत्‍नी लौटकर नहीं आएगी। ज्‍योतिष गुरु मुस्‍कुराए। उन्‍होंने कहा नहीं, ऐसा नहीं है। हकीकत में पानी से पानी को अलग करने वाला तत्‍व (रस्‍सी) समाप्‍त हो गया है। ऐसे में पानी फिर से पानी में जा मिला है। इससे संकेत मिलता है कि जातक की पत्‍नी शीघ्र लौट आएगी। ज्‍योतिषी ने जातक से कहा कि वह घर जाए, उसकी पत्‍नी शीघ्र लौटने वाली है। उसी दिन शाम तक जातक की पत्‍नी लौट आई।’’

हम आम जिंदगी में भी रोजाना ऐसे संकेतों से रूबरू होते हैं। घर से निकलते ही मिलने वाले संकेतों से हमारा अवचेतन स्‍वत: कयास लगाने लगता है कि आज का दिन कैसा जाएगा। बस अंतर यह है कि यहां हमारा अवचेतन काम कर रहा होता है। वह हमें अपने तरीके से समझाने की कोशिश करता है कि भविष्‍य के क्‍या संकेत हैं। संकेतों को भी ज्‍योतिषियों ने संकेतों के तौर पर इस्‍तेमाल करना शुरू किया होगा, कालान्‍तर में उन्‍हीं संकेतों को शकुन और अपशकुन के तौर पर विकृत रूप से इस्‍तेमाल किया जाने लगा। जबकि ये महज जातक के भविष्‍य का संकेत मात्र हैं, न कि शकुन अथवा अपशकुन देने वाले तत्‍व की समस्‍या।

शकुन और अपशकुन

पंडित नेमीचंद शास्‍त्री ने भद्रबाहु संहिता में ऐसे ही संकेतों का विस्‍तार से वर्णन किया है। हालांकि इस संहिता का अधिकांश भाग मण्‍डेन से संबंधित है। यह प्रकृति के संकेतों से प्रांत, स्‍थान विशेष, राष्‍ट्र अथवा राजा से संबंधित सवालों के जवाब देते हैं, लेकिन इनमें भी कुछ संकेत ऐसे भी बताए गए हैं जिन्‍हें हम आमतौर पर जिंदगी में देखा करते हैं। हर्षचरित में बाण शत्रुओं को मिल रहे खराब संकेतों के बारे में जानकारी देते हैं। मसलन, दिन में सियार मुंह उठाकर रोने लगे, जंगली कबूतर घरों में आने लगे, बगीचों में असमय फूल खिलने लगे, घोड़ों ने हरा धान खाना बंद कर दिया, रात में कुत्‍ते मुंह उठाकर रोने लगे, महलों के फर्श से घास निकल आई। ऐसे सभी संकेत वास्‍तव में बाण ने यह बताया कि शत्रुओं को अपनी पराजय संकेतों में दिखाई देने लगी थी। एक सामान्‍य व्‍यक्ति भी घर से निकलते समय दूध का सामने आना, सफाईकर्मी का सामने पड़ना, छींक आना या ऐसे सैकड़ों लक्षण जानता है। पीढि़यों से ये संकेत हमारी मदद करते रहे हैं और आज भी भविष्‍य का सटीक संकेत देने का प्रयास करते हैं।

प्रश्‍न ज्‍योतिष में ओमेन

प्रश्‍न कुण्‍डली से फलादेश देने की विधियों में ओमेन की सहायता प्रमुखता से ली जाती रही है। प्रश्‍नकर्ता के ज्‍योतिषी के पास पहुंचने और उसके उठने बैठने की रीतियों से ही सवाल का अधिकांश जवाब मिल जाता है, बाद में प्रश्‍न कुण्‍डली से अगर संकेतों की सहायता कर रहे योग मिल रहे हों तो सटीक उत्‍तर मिलता है। प्रश्‍नकर्ता के बोले गए शब्‍दों में प्रथम शब्‍द, उसका अपने शरीर के किस अंग पर स्‍पर्श है, उसके चेहरे की दिशा किस ओर है, उसकी नासिका का कौनसा स्‍वर चल रहा है, प्रश्‍नकर्ता की शारीरिक और मानसिक चेष्‍टाएं प्रश्‍नकर्ता के प्रश्‍न का सहायक अंग मानी गई हैं। ऐसे में जातकों को सलाह दी जाती है कि प्रश्‍नकर्ता ज्‍योतिषी के पास जाते समय फल, पुष्‍प, मांगलिक पदार्थ और द्रव्‍य हाथ में लेकर ज्‍योतिषी के पास जाएं और पूर्वमुख होकर प्रणाम कर अल्‍प शब्‍दों में अपना प्रश्‍न रखे।

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यह लेख राजस्‍थान पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। इसका लिंक है http://epaper.patrika.com/16076#p=page:n=10:z=2

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