गुरुओं से सीखे हुए ज्ञान और हजारों साल पुरानी भारतीय ज्योतिष पद्धति का
मैं यहां ज्योतिष के फलादेश प्रकरण में जाने से पूर्व कुछ गणित और कुछ ग्रहों नक्षत्रों और भावों के संबंध में बात करना चाहूंगा।
गणित
ज्योतिष की गणित का प्रादुर्भाव इसके फलादेश पक्ष से हजारों साल पहले हो चुका था। शुरूआत में ज्योतिषीय गणनाओं के माध्यम से ग्रह नक्षत्रों की चाल और अंतरिक्ष (यूनिवर्स) के गूढ तथ्यों को समझने के लिए किया जाता था कालान्तर में कई स्तरों पर ग्रह नक्षत्रों की चाल का विश्लेषण कर उन्हें परिशुध्द किया गया। उपनिषदों में भी गणित का अधिकांश भाग एस्टरोनॉमी को समझने तक ही सीमित रखा गया बाद में फलादेश पध्दति में इन खोजे गए रहस्यों को शामिल किया गया कुछ का मानना है कि रुद्राष्टकाध्यायी में इसके बारे में स्पष्ट लिखा गया है और कुछ का मानना है कि गीता में भी इसके बारे में उल्लेख किया गया है लेकिन यह सब गूढ अर्थों में है जो भी हो वर्तमान की फलादेश पध्दति को देखा जाए तो अब के ज्योतिषी कहीं आगे निकले नजर आते हैं हालांकि इन सालों में इक्का दुक्का लोगों को छोडकर किसी ने भी इस पक्ष में अनुसंधान कार्य नहीं किया है लेकिन जिसने भी समझा है कुछ अधिक समझा है किसी ने पाश्चात्य गणनाओं को शामिल किया है तो किसी ने कई तरह की गणन पध्दतियों को आजमाया है आधुनिक ज्योतिषियों में गिने चुने योगों और सीधी भविष्यवाणियों के बजाय स्वातंत्रय की संभावना (फ्रीडम ऑफ विल) और प्रेक्षणों की समझ पर अधिक ध्यान केन्द्रित किया है पुरानी पध्दतियों को देखा जाए तो स्पष्ट होता है कि गणनाओं को तभी तक पुष्ट किया गया जहां तक मुहूर्त सही निकलता हो इसके बाद इन्हें नहीं छेडा़ जाता व्यक्तिगत कुण्डलियां इनको समझने के लिए जन्मकालीन लग्न उसके साथ गोचर और वर्तमान कुण्डली की भूमिका कतिपय अधिक महत्वपूर्ण समझी जाती है इसके साथ ही कुण्डली का शुध्दिकरण भी महत्वपूर्ण है।
शुध्दिकरण
इस बारे में अब भी ज्योतिषियों में मतभेद बने हुए हैं किसी को लगता है कि मां के प्लेसेन्टा से अगल होना ही जन्म है तो किसी को लगता है गर्भ से बाहर आना जन्म है तो कोई पहली सांस को जन्म का सूचक मानता है कुछ ज्योतिषी इससे भी आगे निकले और उन्होंने कहा कि बीज पडने का वक्त ही जन्म है।
मैं यहां ज्योतिष के फलादेश प्रकरण में जाने से पूर्व कुछ गणित और कुछ ग्रहों नक्षत्रों और भावों के संबंध में बात करना चाहूंगा।
गणित
ज्योतिष की गणित का प्रादुर्भाव इसके फलादेश पक्ष से हजारों साल पहले हो चुका था। शुरूआत में ज्योतिषीय गणनाओं के माध्यम से ग्रह नक्षत्रों की चाल और अंतरिक्ष (यूनिवर्स) के गूढ तथ्यों को समझने के लिए किया जाता था कालान्तर में कई स्तरों पर ग्रह नक्षत्रों की चाल का विश्लेषण कर उन्हें परिशुध्द किया गया। उपनिषदों में भी गणित का अधिकांश भाग एस्टरोनॉमी को समझने तक ही सीमित रखा गया बाद में फलादेश पध्दति में इन खोजे गए रहस्यों को शामिल किया गया कुछ का मानना है कि रुद्राष्टकाध्यायी में इसके बारे में स्पष्ट लिखा गया है और कुछ का मानना है कि गीता में भी इसके बारे में उल्लेख किया गया है लेकिन यह सब गूढ अर्थों में है जो भी हो वर्तमान की फलादेश पध्दति को देखा जाए तो अब के ज्योतिषी कहीं आगे निकले नजर आते हैं हालांकि इन सालों में इक्का दुक्का लोगों को छोडकर किसी ने भी इस पक्ष में अनुसंधान कार्य नहीं किया है लेकिन जिसने भी समझा है कुछ अधिक समझा है किसी ने पाश्चात्य गणनाओं को शामिल किया है तो किसी ने कई तरह की गणन पध्दतियों को आजमाया है आधुनिक ज्योतिषियों में गिने चुने योगों और सीधी भविष्यवाणियों के बजाय स्वातंत्रय की संभावना (फ्रीडम ऑफ विल) और प्रेक्षणों की समझ पर अधिक ध्यान केन्द्रित किया है पुरानी पध्दतियों को देखा जाए तो स्पष्ट होता है कि गणनाओं को तभी तक पुष्ट किया गया जहां तक मुहूर्त सही निकलता हो इसके बाद इन्हें नहीं छेडा़ जाता व्यक्तिगत कुण्डलियां इनको समझने के लिए जन्मकालीन लग्न उसके साथ गोचर और वर्तमान कुण्डली की भूमिका कतिपय अधिक महत्वपूर्ण समझी जाती है इसके साथ ही कुण्डली का शुध्दिकरण भी महत्वपूर्ण है।
शुध्दिकरण
इस बारे में अब भी ज्योतिषियों में मतभेद बने हुए हैं किसी को लगता है कि मां के प्लेसेन्टा से अगल होना ही जन्म है तो किसी को लगता है गर्भ से बाहर आना जन्म है तो कोई पहली सांस को जन्म का सूचक मानता है कुछ ज्योतिषी इससे भी आगे निकले और उन्होंने कहा कि बीज पडने का वक्त ही जन्म है।
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